Sunday 29 March 2020

वायरस से ज्यादा वायरल हो रही हैं कोरोना के बारे में झूठी जानकारियां

महामारी के दौर में कु-सूचनामारी (इन्फोडेमिक) का खतरा


  • जागृति राय



तेलंगाना पुलिस ने बीते 17 मार्च को तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। उनपर आरोप है- कोरोना वायरस के संबंध में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाने का। उसी दिन राजस्थान से भी एक स्वास्थ्य कर्मी को वायरस के संबंध में गलत सूचना फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। दोनों ही मामलों में आरोप गलत सूचना फैलाने का है और माध्यम सोशल मीडिया है।

ये सिर्फ दो मामले हैं जिन में गिरफ्तारियां हुई हैं। इसके अलावा व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया साइट्स फेक न्यूज से भरे पड़े हैं। हालात यह हैं कि इन गलत सूचनाओं के फैलने की दर वायरस के फैलने के दर से भी ज्यादा है। नतीजा यह कि पुलिस और कई संस्थाओं को इन झूठी सूचनाओं का खंडन करने के लिए बयान जारी करने पड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, निजी अस्पताल से जुड़े और जानेमाने डाक्टर नरेश त्रेहन के नाम से एक आडियो व्हाट्सएप्प पर इतना घूमा कि उन्हें और मेदांता अस्पताल को आगे आकर खंडन करना पड़ा।



इसी तरह मुंबई के पुलिस कमिश्नर के नाम से लाकडाउन के बारे में दो आडियो सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प के जरिये इतना वायरल हो गया कि मुंबई पुलिस को खंडन जारी करना पड़ा और चेतावनी देनी पड़ी कि झूठी जानकारियां फैलानेवालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। 
    
कहने की जरूरत नहीं है कि कोरोना वायरस से संबंधित झूठी जानकारियां, फेक न्यूज का सोशल मीडिया पर बड़ी मात्रा में फैलना भारत समेत दुनिया के अनेक देशों लिए एक और अदृश्य चुनौती है। इस चुनौती की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ) ने कोरोना को महामारी (एपिडिमिक) घोषित करने से पहले ही सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस से संबंधित फैली गलत सूचनाओं को कु-सूचनामारी (इन्फोडिमिक) करार दिया है।

यह पहली बार नहीं है जब दुनियाभर में कोई महामारी फैली है। लेकिन यह पहली बार है कि महामारी सोशल मीडिया के दौर में फैली है। इससे पहले साल 2003 में सार्स महामारी दुनियाभर में फैली थी, लेकिन तब सोशल मीडिया का विस्तार और इस्तेमाल आज की तरह व्यापक नहीं था।

क्या होता है जब व्हाटसएप लोगों का भरोसा जीत लेता है
                 
व्हाट्सएप के हर फॉरवर्ड मैसेज के ऊपर फॉरवर्डेड लिखा होना और एक मैसेज को सिर्फ पांच बार भेजने तक सीमित करना, भारत में बढ़ते फेक न्यूज की समस्या को कम करने के लिए था। याद रहे कि साल 2018-19 में व्हाट्सएप पर फैलायी गयी अफवाहों के कारण कई निर्दोष लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद व्हाट्सएप में ये बदलाव किये गये थे। लेकिन लगता नहीं कि इससे कोई खास फ़र्क पड़ा है। कोरोना वायरस के फैलने के साथ भारत में इस महामारी को लेकर अफवाहों का बाजार एक बार फिर गर्म हो गया है।

देश भर में व्हाट्सएप्प और सोशल मीडिया के जरिये कोरोना को लेकर तरह-तरह की फ़र्जी जानकारियां, नीम-हकीम नुस्खे, डरावनी खबरें और कुप्रचार फैलाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, लाकडाउन के दौरान यह “खबर” फैलाई गई कि घर से बाहर नहीं निकलना है क्योंकि गैस छोड़ी जानेवाली है। इसी तरह यह झूठी जानकारी फैलाई गई कि गाँव के सिवान में या घर के बाहर दिया जलाकर रखने से कोरोना नहीं आएगा या यह कि थाली बजाने से वायरस भाग या मर जाएगा। यह भी कि लहसुन उबलकर पीने से कोरोना के विषाणु मर जायेंगे।

जाहिर है कि भारत जैसे विकासशील देश में महामारी और आपात चिकित्सा की स्थिति में फेक न्यूज, अफवाहों, झूठी जानकारियों और कुप्रचार की समस्या दोहरी चुनौती बनकर उभरी है। ऐसे में, फेक न्यूज के भारत में फैलने की वजहों पर चर्चा जरूरी हो जाती है। इन वजहों में पहला है, तकनीकी साक्षरता की कमी। भारत में बाजार की प्रतियोगिता ने सस्ते स्मार्टफोन और इंटरनेट तक लोगों की पहुंच आसान कर दी है। लेकिन नीति निर्धारक तकनीकी साक्षरता उस अनुपात में लोगों तक पहुंचाने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में, ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर आयी सूचनाओं को सच मान बैठते हैं और बिना जांचे आगे फॉरवर्ड कर देते हैं। कोरोना वायरस को लेकर गर्म पानी पीने और अदरक खाने जैसी खबरें इसका उदाहरण है।

दूसरी वजह है, मुख्य धारा के मीडिया को लेकर विश्वसनीयता की कमी। फेक न्यूज पर कई शोध रिपोर्टों में यह बात सामने आयी है कि जिन देशों के लोगों में मुख्यधारा मीडिया के प्रति विश्वास कम है, वहां फेक न्यूज ज्यादा फैलता है। भारत पिछले कुछ सालों में तेजी से इस तरफ बढ़ा है। तीसरी वजह है- लोगों में ध्यान देने की कम होती क्षमता। ऐसे में, लोग एक क्लिक में सारी जानकारियां पा लेना चाहते हैं। यह आदत फेक न्यूज पर भरोसा करने और एक क्लिक में सोशल मीडिया पर शेयर करने के अनुकूल साबित हो रही है।

इसके अलावा फेक न्यूज फैलाने में प्रोपेगंडा और आर्थिक वजहें भी शामिल हैं। कई बार फेक न्यूज फैलाने का मकसद ज्यादा से ज्यादा क्लिक से विज्ञापन पाना या किसी मकसद से किसी सूचना को तोड़-मरोड़ कर लोगों के नजरिए में बदलाव लाना होता है।
सोशल मीडिया पर वायरस से संबंधित गलत और झूठी सूचनायें लोगों में भ्रम और डर फैला रही हैं। देश भर में इंटरनेट बंद होने और बैंकों की शाखाएं बंद होने जैसी वायरल खबरें लोगों के डर को बढ़ाने का काम कर रही हैं। ऐसे में, वायरस के साथ गलत सूचनाओं के संक्रमण को रोकना जरूरी हो जाता है।

समस्या सोशल मीडिया में नहीं है

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया फेक न्यूज फैलाने का सबसे मुफीद माध्यम बन गया है। लेकिन साथ ही सही सूचनाओं को कम समय में एक जगह से दूसर जगह भेजने में उतना ही कारगर है। वह सोशल मीडिया ही था जिसने सबसे पहले डब्ल्यूएचओ के हवाले से पूरी दुनिया को इस नये कोरोना वायरस की जानकारी दी। वह सोशल मीडिया ही है जो वैश्विक आपातकाल जैसे हालात में दुनिया के हर हिस्से की तस्वीरें हम तक पहुंचा रहा है। वायरस को फैलने से रोकने के लिए जब दुनियाभर के देश अपनी सीमाएं बंद कर रहे है, तब सोशल मीडिया ही है जिसने दुनिया को जोड़े रखा है।

दूसरी ओर, वहीं सोशल मीडिया वायरस को लेकर गलत और झूठी खबरों से भरा पड़ा है। सोशल मीडिया की झूठी की खबर कितनी खतरनाक हो सकती है इसका उदाहरण ईरान है। डेलीमेल की एक खबर के मुताबिक, मेथनॉल पीने से कोरोना वायरस ठीक होने की झूठी खबर ने ईरान में 300 लोगों की जान ले ली और 1000 लोग बीमार पड़ गये हैं। इन्हीं गलत खबरों का नतीजा है कि भारत में 22 मार्च की शाम स्वास्थ्य कर्मियों और जरूरी सेवायें देने वाले लोगों के उत्साहवर्धन में ताली और थाली बजाने के लिए कहा गया तो सोशल मीडिया पर खबर चल पड़ी कि ऐसा करने से वायरस खत्म हो जाएगा। इसी तरह लॉकडाउन को लेकर भी डर फैलाया गया जिससे लोग घबराकर जरूरत से ज्यादा सामान खरीदने लगे। सोशल मीडिया के ये दोनों पहलू इसके इस्तेमाल को लेकर एक नयी चर्चा को जन्म देते हैं।

दुनिया इन्फोडिमिकका भी इलाज ढूढ़ रही है

 भारत समेत दुनिया भर के देश वायरस के साथ फेक न्यूज को भी रोकने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वायरस के साथ वर्चुअल दुनिया में उपजे इस खतरे से निपटने के लिए भारत ने फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को 20 मार्च को एक एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी में सरकार ने इन कंपनियों से वायरस को लेकर जागरुकता फैलाने और गलत सूचनाओं को हटाकर सही सूचनाओं को बढ़ावा देने के लिए कहा है। इसके अलावा भारत ने व्हाट्सएप पर एक चैटबोट शुरू किया, जिसमें वायरस से संबंधित सारी जानकारियां दी जा रही हैं।


विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने इन्फोडिमिक से निपटने के लिए कोरोना वायरस डैसबोर्ड पर मिथबस्टर नाम से एक अलग मंच बनाया है। इसमें वायरस से संबंधित गलत सूचनाओं का खंडन कर सही जानकारी दी जा रही है। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ फेसबुक, ट्विटर, टिकटाक जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर गलत सूचनाओं को फैलने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही ये कंपनियां दुनिया के 45 से ज्यादा देशों के साथ मिलकर फेक न्यूज को रोकने की दिशा में भी काम कर रही हैं।

इन सारी कोशिशों के बाद भी फेक न्यूज पूरी तरह खत्म हो जायेगा, यह नहीं कहा जा सकता है। सही और गलत जानकारियों के बीच चुनने का पूरा अधिकार उपभोक्ता के हाथों में होता है। ऐसे में, लोग किस जानकारी के लिए अपना समय व्हाट्सएप के एक क्लिक को देते हैं या किसी विश्वसनीय स्त्रोत को, यह आने वाला वक्त ही बता पाएगा। 

(इस रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीरें बीबीसी, VERDICT, बिजनेस स्टैण्डर्ड आदि वेबसाईट से साभार ली गई हैं) 

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