Tuesday 5 May 2020

पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाने में ब्रिगेडियर होशियार सिंह का अहम योगदान रहा

परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर होशियार के जन्मदिवस पर विशेष


"सन 1971 की जंग में 'होशियार परमवीरने पाकिस्तानी फौज को अपने 85 सैनिकों की लाश छोड़कर भागने को मजबूर कर दिया"


गौरव तिवारी


सन 1971 की जंग छिड़ चुकी थी। चीन और अमेरिका से मिले हथियारों के बल पर पाकिस्तानी सेना के हमले का पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर भारतीय सेना मुँहतोड़ जबाब दे रही थी लेकिन तभी पाकिस्तानी सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर रणनीतिक तौर से बेहद अहम शकरगढ़ सेक्टर पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी सेना की इस बढ़त का जबाब देने के लिए 15 दिसम्बर को ग्रेनेडियर रेजीमेंट की तीसरी बटालियन को अपने कमांडर के नेतृत्व में रावी की सहायक नदी बसंतर पर पुल बनाने की जिम्मेदारी देकर शकरगढ़ भेजा गया।

नदी के दोनों किनारे गहरी लैंडमाइन से ढके हुए थे और पाकिस्तानी सेना नदी के किनारे पोजिशन लेकर बैठी थी। पुल बनाने के लिए यह जरूरी था कि पहले पाकिस्तानी इलाके में स्थित जरपाल पर कब्जा किया जाय। दुश्मनों की संख्या पर ध्यान ना देकर बटालियन के कमांडर ने अपनी कंपनी के साथ हमला कर दिया। उनकी कंपनी पर मशीनगन से भारी गोलीबारी होने के बाद भी कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। 17 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने जवाब में टैंकों के जरिए भारी गोले बरसाए, जिसमें कंपनी के कुछ सैनिक और खुद कमांडर बुरी तरह घायल हो गए। लेकिन कमांडर एक खाई से दूसरी खाई तक जाते और अपने जवानों से कहते-

बहादुर लोग केवल एक बार मरते हैं। तुम्हें युद्ध करना ही है। तुम्हें विजय प्राप्त करनी है।

उनकी इस बात ने सैनिकों में ज़बरदस्त जोश का संचार कर दिया लेकिन तभी मीडियम मशीनगन पोस्ट पर तैनात एक सैनिक गोली लगने से नीचे गिर पड़ा। मशीनगन फायरिंग के महत्व को देखते हुए कमांडर ने तत्काल खुद उस पोस्ट पर मोर्चा संभाल लिया और पाकिस्तानी सेना पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। कमांडर को इस तरह देखकर उनके सैनिकों में भी जोश भर गया और उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर भारी गोलीबारी करके उसके हौसले पस्त कर दिए। भीषण हमले से परेशान पाकिस्तानी सेना अपने पीछे 85 साथियों की लाशें छोड़कर भाग खड़ी हुई। इस हमले में उनका कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा और तीन अन्य अधिकारी भी मारे गए।

जरपाल पोस्ट पर अब भारतीय सेना का कब्जा था। कमांडर बुरी तरह घायल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने सीजफायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से इनकार कर दिया। उनकी इस अतुलनीय वीरता और अदम्य साहस और नेतृत्व को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "परमवीर चक्र" से सम्मानित किया। 1971 की जंग में हुई इस ऐतिहासिक बसंतर की लड़ाई में जिस कमांडर ने पाकिस्तानी फौज को अपने सैनिकों की लाश को छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया था, वो कोई और नहीं बल्कि 'मेजर होशियार सिंह' थे जिनके महान शौर्य ने 1971 की जंग में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने में अहम भूमिका निभाई।

5 मई, सन 1936 को हरियाणा के सोनीपत के सिसाना गाँव में जन्मे होशियार सिंह साल 1957 में जाट रेजिमेंट में शामिल हुए और बाद में 3, ग्रेनेडियर्स में कर्नल बने। होशियार सिंह इसके बाद आर्मी से ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए और 6 दिसंबर सन 1998 को उनका देहांत हो गया।

सन 1971 की जंग के अलावा 1965 में भारत-पाकिस्तान लड़ाई में भी उन्होंने बीकानेर सेक्टर में अहम भूमिका अदा की। उनकी पहली तैनाती नॉर्थ-ईस्ट फ़्रंटियर में थी, जिसके बाद उनकी चर्चा दूर-दूर तक फैली।

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