Tuesday 5 May 2020

जीवनभर अश्वेतों के हक़ के लिए लड़ती रहीं पुलित्जर से सम्मानित इडा वेल्स

मई 2020 को पुलित्जर पुरस्कार के बोर्ड ने वेल्स को मरणोपरांत विशेष प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया 


स्वाति गौतम


19वीं शताब्दी के पत्रकार और नागरिक अधिकार आइकन, इडा बी. वेल्स को 4 मई 2020 को पुलित्जर पुरस्कार के बोर्ड द्वारा मरणोपरांत विशेष प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। इसके तहत 50 हजार डॉलर का पुरस्कार बोर्ड द्वारा दिया जाता है। इस घोषणा के बाद वेल्स की पोती, मिशेल डस्टर ने कहा कि वेल्स का जीवन आसान नहीं था और प्रशंसा करने वालों को यह समझना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवन में कैसा संघर्ष किया। वेल्स ने पत्रकारिता का उपयोग केवल रिपोर्ट करने के एक उपकरण के रूप में नहीं किया बल्कि सामाजिक बदलाव लाने में इसका इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि वेल्स की पत्रकारिता का बहुत ही विशिष्ट उद्देश्य था।

साल 1931 में वेल्स की मृत्यु के समय वह दुनिया की सबसे प्रसिद्ध अश्वेत महिला थीं। मरणोपरांत जहां उन्हें दफनाया गया, साल 2019 में उनके सम्मान में उस शहर की एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया।

कौन थीं इडा बी. वेल्स

इडा वेल्स का जन्म साल 1862 में होली स्प्रिंग, मिसिसिपी में एक गुलाम के रूप में हुआ था। वेल्स एक शिक्षिका वक्ता और लेखिका थीं। उस समय अमेरिका में गृह-युद्ध के बाद अश्वेतों को गोरों द्वारा दक्षिणी इलाकों में भयावह तरीके से मारा जा रहा था। तब वेल्स ने निडर होकर लिंचिंग यानी बेवजह किसी को मौत के घाट उतार दिए जाने के बारे में लिखा था। वह महिलाओं के मताधिकार आंदोलन में भी सक्रिय रहीं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया कि सभी पुरुषों और महिलाओं के साथ उचित और समान व्यवहार किया जाए।

वेल्स का प्रारंभिक जीवन


वेल्स की माँ एलिजाबेथ एक दास के रूप में बड़ी हुई थीं। उन्हें बड़ी क्रूरता के साथ अपने परिवार से अलग किया गया। उन्हें एक बागान से दूसरे बागान मालिक को बेचा गया। उनके पिता जेम्स, एक अश्वेत महिला दासी और श्वेत बागान मालिक के बेटे थे। वेल्स के माता-पिता ने शिक्षा को बहुत महत्व दिया। उन्होंने वेल्स और उसके भाई- बहनों को गोरों द्वारा संचालित एक स्कूल में पढ़ने भेजा। जब वेल्स 16 साल की थीं, तो वे टेनेसी के मेम्फिस में अपनी दादी "पेगी" से मिलने गई। वहां उन्होंने एक भयानक खबर सुनी कि पीले बुखार का रोग उनके समुदाय पर छाता जा रहा है। उस बीमारी ने उनके माता-पिता और भाई को मार डाला। 

महामारी के चलते सभी ने उन्हें अपने घर वापस ना जाने की चेतावनी दी। यहाँ तक कि पीले बुखार के डर से ट्रेनें होली स्प्रिंग में रुकती ही नहीं थीं। फिर भी वेल्स एक मालगाड़ी पर बैठकर अपने घर पहुँची क्योंकि महामारी की चपेट में आये उनके भाई-बहनों को उनकी जरूरत थी। तभी उन्होंने शिक्षक बनने की ठानी। वह परीक्षा में पास भी हुई। उन्हें अपने घर से छह मील दूर पढ़ाने की नौकरी मिली।

जब वेल्स 19 साल की हुई तो उन्हें बदलाव की जरूरत महसूस हुई। वह अधिक पैसा कमाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने एक बेहतर वेतन वाली नौकरी खोजने के लिए वापस मेम्फिस जाने का फैसला लिया। वेल्स को मेम्फिस के बाहर वुडस्टॉक के एक स्कूल में नौकरी मिली। जिसका सफर वह ट्रेन से तय करती थीं। एक दिन रोज की तरह वह महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गईं। तभी कंडक्टर ने उनसे धूम्रपान करने वालों और अश्वेतों के लिए बना ट्रेन के पीछे वाले डब्बे में जाने को कहा। वेल्स ने इसका विरोध किया। उनका कहना था उन्होंने उस सीट का टिकट खरीदा था, वह वहाँ बैठने की हकदार थीं। कंडक्टर की बात माने जाने पर उसने तीन आदमियों को बुलवाया और वेल्स को जबरन ट्रेन से उतारने की कोशिश की। वेल्स खुद ही नीचे उतर गईं। यह अनुभव उनके लिये काफी अपमानजनक था। लेकिन उन्होंने अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने रेलवे पर मुकदमा करने के लिए एक वकील नियुक्त किया, लेकिन उनके द्वारा नियुक्त वकील को रेलवे ने अदालत में केस ना लेने की घूस दे दी। इससे वेल्स काफी आहत हुईं। उन्होंने दूसरा वकील नियुक्त किया। अंत में मामले की सुनवाई के बाद वेल्स को 500 डॉलर का मुआवजा मिला। फिर साल 1887 में अश्वेतों के लिए वातावरण कटु हो गया और अदालत ने रेलकेस पर अपना नतीजा वापस ले लिया। इस बार जजमेंट वेल्स के खिलाफ था। अदालत ने कहा कि कंडक्टर ने उन्हें सीट से हटाकर कुछ गलत नहीं किया और उल्टे वेल्स पर 200 डॉलर का जुर्माना लगा दिया। कोर्ट के इस बदले तेवर से वेल्स हिल गईं।  

शिक्षिका से लेखिका तक का सफर


वेल्स को पढ़ाना पसंद नहीं आया। वह एक लेक्चर क्लब की सदस्य बन गईं। उस क्लब के सदस्य ने उन्हें "इवनिंग स्टार" नाम के एक समाचार पत्र में लिखने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें उन्होंने ट्रेन में घसीटे जाने का वर्णन किया। जिसके बाद उन्हें "लिविंग वे" नामक प्रकाशन ने एक साप्ताहिक कॉलम लिखने के लिए आमंत्रित किया। यह पत्रिका अश्वेतों का चर्च प्रकाशित करता था। वेल्स का कॉलम बहुत लोकप्रिय हुआ। जल्द ही वेल्स ने अन्य अश्वेत अखबारों के लिए भी लिखना शुरु कर दिया। उस समय जिम क्रो नामक कानून ने अश्वेतों की ज़िन्दगी कठिन बना दी थी। वेल्स ने लिखा कि इस कानून ने ट्रेनों, रेस्तरां और पार्कों में अश्वेतों के अधिकारों को सीमित कर दिया है और दक्षिण इलाके में अश्वेतों को गोरों से अलग बैठने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

जब वेल्स ने सुना कि न्यूयॉर्क एज के संपादक टी. थॉमस फार्च्यून भेदभाव के खिलाफ लड़ने के लिए एक अफ्रीकी-अमेरिकी संगठन शुरू कर रहे हैं तो वह बहुत रोमांचित हुईं। साल 1891 में वह इस संगठन के दूसरे सम्मेलन में शानदार ढंग से बोलीं। तभी कुछ अश्वेतों ने केंटुकी शहर में आग लगाकर लिंचिंग का विरोध किया। इसका समर्थन वेल्स के अखबार ने किया। इससे उस क्षेत्र के गोरे ग़ुस्से में थे इस घटना ने धीरे-धीरे हिंसा का रूप ले लिया, जिसमें वेल्स के एक दोस्त मोस की भी हत्या हो गई। वेल्स ने इस घटना के विरोध में कई लेख लिखे। वह नहीं चाहती थीं कि यह हिंसा और भयानक रूप ले, इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि अश्वेत लोग गोरों के व्यवसायों का समर्थन करें और बसों में सवारी करें। वेल्स ने अश्वेतों को अपनी हिफाज़त के लिए मेम्फिस छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। सिर्फ दो महीने में छह हजार अश्वेत मेम्फिस छोड़कर चले गए। अब श्वेत समुदाय श्रमिक और व्यापार दोनों खो रहे थे। इस बीच वेल्स ने लिंचिंग के बारे में पढ़ना शुरू किया। लिंचिंग के खिलाफ उनके लेखन से श्वेत समुदाय बहुत नाराज हुआ। वेल्स को धमकियां आने लगीं। साल 1892 में गोरों ने वेल्स के कार्यालय पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर दिया। अब वेल्स को भी मेम्फिस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह शिकागो चली गईं। वहीं से न्यूयॉर्क एज में सारी घटनाओं का ब्योरा लिखा। उनके लेख से प्रभावित होकर इंग्लैंड और स्कॉटलैंड ने उन्हें अपने यहाँ बोलने के लिए आमंत्रित किया। फिर वेल्स ने अपने मित्र डॉ. जॉर्जन पैटन के साथ यूरोप की यात्रा की।

अंत तक ज़ारी रखी लड़ाई


साल 1895 में एक वकील और समाचार पत्र के प्रकाशक फर्डिनेंड बार्नेट से वेल्स ने शादी की। उन्होंने शादी से पहले का अपना नाम बरकरार रख अपना नया नाम इडा बी. वेल्स बार्नेट रखा। इसके बाद भी वह लिखने में सक्रिय रहीं। उन्होंने नए तरह के स्कूलों की शुरुआत की। इस बीच साल 1898 में दक्षिण कैरोलिना के लेक सिटी में एक अश्वेत डाकिये को गोरों ने मौत के घाट उतार दिया। एक भीड़ ने घर में आग लगाकर डाकिये और उसके बच्चे को मार दिया था। इससे वेल्स बहुत नाराज हुईं और राष्ट्रपति विलियम मैककिंनले से बात करने के लिए वाशिंगटन डीसी गईं। उन्होंने राष्ट्रपति से इस बारे में बात की लेकिन तभी अमेरीका-स्पेन का युद्ध छिड़ गया और यह बात दब गई। वेल्स शिकागो में ही अपने पति और बच्चों के साथ रहती थीं। उनके पड़ोसियों का व्यवहार उनके प्रति ठीक नहीं था, इसके बावजूद वह वहीं रहीं।

फिर साल 1908 में वह दौर आया, जब स्प्रिंगफील्ड में दंगे भड़क उठे। इसमें गोरे लोगों ने तीन अश्वेतों को मार डाला। उनकी दुकानें घर जला दिए। गोरे लोग अश्वेतों को शहर से निकालना चाहते थे। तब वेल्स ने वहां के निवासियों के साथ एक "नेशनल एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल” (NAACP) नामक नया संगठन शुरू किया। अश्वेतों का समर्थन करने वाले कई गोरों ने भी NAACP का समर्थन किया। वेल्स महिलाओं के अधिकारों के लिए भी लड़ती रहीं। जहां भी अश्वेतों या महिलाओं के साथ अन्याय होता, वहां वेल्स अपनी आवाज़ उठातीं। साल 1930 में वेल्स ने इलिनोइस राज्य के सीनेटर पद के लिए इलेक्शन भी लड़ा। उस समय उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी। 25 मार्च, 1931 को किडनी फेल होने से इडा बी. वेल्स की मृत्यु हो गई। शिकागो में स्थित उनका घर अब एक राष्ट्रीय स्मारक है। साल 1990 में अमेरिका के डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी ज़ारी किया।

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