Saturday 4 April 2020

कोरोना के दौर में अफवाहों से कैसे लड़ा जाए, आइआइएमसी के एक छात्र का अनुभव


अफवाह को हराने और कोरोना के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए गाँव में पोस्टर अभियान 

·         आनंद कुमार

आज जब कोरोना का संकट पूरे विश्व में फैल रहा है तो मेरा गांव इस संकट से कैसे अछूता रहा सकता है? यह खुशी की बात है कि मेरे गाँव में अभी तक कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित नहीं है लेकिन इसका डर सबके मन में जरूर मंडरा रहा है।

कोरोना ने भले ही मेरे गाँव में पैर नहीं पसारा है लेकिन कोरोना से जुड़ी अफवाहों ने हाथ-पाँव मारना जरूर शुरू कर दिया है। वजह है लोगों में कोरोना वायरस को लेकर जागरूकता का अभाव। 

लॉकडाउन के वजह से इन दिनों गाँव पर अपने घर पर हूं। एक दिन घर के आंगन  में बैठा था, उसी समय मेरे गांव का एक दोस्त आया। आते ही उसने पूछना शुरू कर दिया कि कोरोना वायरस का लक्षण क्या होता है? मैंने उसे जुबानी तो बता  दिया लेकिन मुझे संदेह हो रहा था कि इसे अभी तक ढंग से समझ आया है या नहीं? 

संयोग से उस समय मेरे पास अखबार था। मैंने उसे तुरंत अखबार में उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी कोरोना वायरस के बारे में छपा विज्ञापन दिखाया। विज्ञापन देखने के बाद उसे कोरोना के बारे में मोटे तौर पर जानकारी हो चुकी थी। 

अब मैंने दोस्त से पूछा कि क्या आपके घर पर सभी लोग इस वायरस के बारे में जानते हैं? उसने जवाब में कहा- नहीं। मैंने उसे अखबार से विज्ञापन वाला पृष्ठ काट कर दिया और उससे कहा कि इस विज्ञापन को अपने घर के दीवार पर चस्पां कर देना, जहां घर के सभी सदस्य पढ़ सकें।

इसी बीच मुझे गांव में फैल रही कोरोना से जुड़ी अफवाहों के बारे में पता चला। अफवाहों का स्रोत
पता किया तो मालूम पड़ा कि व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया एकाउंट्स के जरिये ये अफवाहें फैलाई जा रही हैं। अफवाहों का बाजार गर्म था और जाहिर है कि उससे लोगों में गलत संदेश जा रहा था, उनका डर बढ़ रहा था और वे घबराहट में टोटकों पर भरोसा कर रहे थे। 

ऐसे में, पत्रकारिता का छात्र होने के नाते मेरी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा होती है कि लोगों को कोरोना से जुड़े सत्य और मिथ के बारे में जागरूक करूं। आग की तरह फैल रही अफवाहों पर विराम लगाने की कोशिश करूँ। 

मेरी नजर में जागरूकता फैलाने का सबसे अच्छा जरिया घर-घर पैम्‍फ़लेट बांटना और कुछ लोगों को जुटाकर संबोधित करना था। लेकिन लॉकडाउन के वजह से सभा नहीं कर सकते थे और कंप्यूटर पर पोस्टर बना के प्रिंट भी नहीं निकलवा सकता था। अब मेरे सामने यह चुनौती थी कि मुझे लोगों को जागरूक भी करना है लेकिन लॉकडाउन का उल्लंघन भी नहीं करना है।  

इसके लिए मुझे कोरोना से जुड़े जागरूकता फैलाने वाले पोस्टर की जरूरत थी। मैंने ऐसे पोस्टरों की मांग के लिए 27 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार के पंचायती राज विभाग को ईमेल भेजा। लेकिन 6 दिन के इंतजार के बाद भी जब कोई जवाब नहीं आया तो मैंने अखबारों में छप रहे कोरोना से जुड़े सरकारी विज्ञापन को काटकर गाँव के दीवारों, चौपालों के पास और अन्य सार्वजनिक जगहों पर चिपकाना शुरू कर दिया। 

पोस्टर लगाने से पहले कई ग्रामीणों को तो कोरोना से संबंधित कुछ भी पता नहीं था लेकिन अब तो लोग हर दो से तीन घंटो में हाथ धोने लगे हैं। गांव में बुजुर्गों ने इस पहल का विशेष रूप से स्वागत किया। पोस्टर का प्रभाव गांव के हर उम्र के लोगों पर पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों गांव में लॉकडाउन के बावजूद कुछ युवा क्रिकेट खेलते रहते थे लेकिन आज की तारीख में वो मैदान खाली है जहाँ क्रिकेट होता था।  

गाँव में हर घर में अखबार नहीं आता है। मेरे गांव में कुछ ही घर ऐसे हैं जहां लोग नियमित अखबार लेते हैं। उनमें से एक घर मेरा भी है। जब मैंने बाकी लोगों के आनेवाले अखबार में छपे सरकारी विज्ञापन काटने का अनुरोध किया तो उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी इस पहल का स्वागत किया। उन लोगों का कहना था कि गांव के लोग इस बीमारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, बहुत से लोगों को इस संक्रमण का लक्षण तक नहीं पता है।

बड़ी मात्रा में लोग अखबार नहीं पढ़ते हैं, इसलिए अफवाहों का शिकार हो जाते हैं। चूंकि मेरे गाँव में कुछ लोगों के यहां ही अखबार आता है और उन अखबारों के जरिए सीमित संख्या में ही विज्ञापन मिल पाए हैं। मुझे गाँव में अभी और सार्वजनिक जगहों पर पोस्टर लगाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बारे में जागरूक हो सकें।

यह काम बिना प्रशासन के सहयोग से सम्भव नहीं हैं। अभी भी मुझे प्रशासन से पोस्टरों की मांग है। इसके लिए मैंने ट्वीटर पर उत्तर प्रदेश पुलिस और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सहयोग के लिए अपील की है। इन दिनों अधिकारियों से जवाब की प्रतीक्षा में हूं और अखबारों में छप रहे विज्ञापनों को काट कर दीवारों पर लगाने के लिए कलेक्ट कर रहा हूं। 

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