आज भी दलित दुल्हे के घोड़ी चढ़ने पर ऊँची जातियों के अहंकार को चोट क्यों लगती है?
- आनंदकुमार
भारत की राजनीति में महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि पर याद करने का चलन बन चुका हैं. उनके वर्तमान और भविष्य की प्रासंगिकता पर बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किए जाते हैं. बुद्धिजीवी अपने भाषण में
महापुरुषों के विचारों की प्रासंगिकता पर समीक्षा करते
हैं। न्यूज़ चैनलों में जोरदार बहस होती है। लेकिन बुद्धजीवी की समीक्षा सेमिनारों
के कमरे तक सीमित रह जाती है और चैनलों पर बहस न्यूजरूम के चारदीवारी तक। इन एसी कक्षों से कोसों दूर सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले आमलोगों और गरीबों तक ये विचार कभी नहीं
पहुँच पाते है।
महापुरुषों
को याद करने के क्रम में आज बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती है। बाबा साहब
डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक ऐसे इतिहास पुरुष हैं, जिन्हें सामाजिक न्याय का पुरोधा कहा जाता
हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज में दलित, शोषित, वंचित तबकों के उत्थान के
लिए समर्पित कर दिया था। बाबा साहब संविधान के साथ आधुनिक भारत के निर्माता थे।
उन्होंने
अपने जीवन के 60 वर्ष तक असमानता, अस्पृश्यता, प्रताड़ना और जातिगत भेदभाव का दंश
झेला और बाद में इससे झुब्ध होकर निधन होने के 7 महीने पहले बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। आज भी समाज के सामने यह सवाल है कि वो क्या चीज थी जिसने डॉ. अम्बेडकर को
धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया? अगर समाज को इस सवाल का जवाब पता है, तो समाज ने
इस दिशा में क्या कदम उठाया?
संविधान के
मुताबिक अस्पृश्यता और छुआछूत गैर-कानूनी और अपराध करार दे दिया गया है लेकिन
संविधान के प्रावधान कागज पर ही शोभा बढ़ाते है और कागज पर ही न्याय देने की बात
करते है। जमीन पर होने वाला अपराध संविधान के आईने में नहीं पहुँच पाता है। ऐसा नहीं
है कि जमीन पर होने वाले अपराध और पीड़ित व्यक्ति को संविधान न्याय दिलाने में असफल
या निकृष्ट है। इस सवाल का जवाब संविधान सभा में संविधान पेश करते हुए डॉ. अम्बेडकर
ने अपने संबोधन में दिया था। उन्होंने कहा था:
"मैं यहां संविधान की अच्छाइयां नहीं गिनाने जाऊंगा। क्योंकि मुझे
लगता है कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो वो अंततः बुरा साबित होगा। अगर उसे
इस्तेमाल में लाने वाले बुरे होंगे। अगर संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो अंततः
अच्छासाबित होगा। अगर उसे इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे हो।"
यह दुःखद है आज कुछ ऐसा ही हो रहा है। जिस आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उन्होंने बहुत मेहनत
करके संविधान बनाया। आज उसी संविधान की धज्जियां सरकार से लेकर राजनीतिक और
सामाजिक संगठन तक सभी उड़ा रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर के दूरदर्शिता का अंदाज़ा उनके ऊपर दिए
गए संबोधन से लगाया जा
सकता है। संविधान सभा में दिए गए उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक साबित हो रहे है। भारत की
सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को भीतरी तहों तक समझने वाला कोई व्यक्ति इस बात से
इनकार नहीं कर सकता है कि दलितों का उत्पीड़न आज भी 'न्यू इंडिया' में नहीं हो रहा है?
इसका
प्रमाण रोजाना अखबारों में छपनेवाली दलित उत्पीड़न की खबरें हैं। बहुत से दलित उत्पीड़न की खबरों को मेनस्ट्रीम
मीडिया जगह तक नहीं देता है। कुछ बड़ी घटनाएं सुर्खियां बन जाती हैं जैसे गुजरात के
ऊना में दलितों के साथ बेहरमी से पिटाई की घटना। ऐसी शर्मसार कर देनी वाली घटनाओं को
देश नहीं भूला है। ये कैसा गुजरात मॉडल है, जहाँ दलितों का उत्पीड़न होता
है और प्रधानमंत्री सिर्फ अपने बयानों में दुःख जताते हैं?
आज भी दलित
दूल्हे के घोड़ी पर चलकर बारात निकालने पर हिंसा हो जाती है। ये समझ पाना कठिन हो
जाता है कि दलित दुल्हे के घोड़ी चढ़ने से तथाकथित ऊँची जाति के लोगों का जातीय अहंकार क्यों जग जाता है या उनके
स्वाभिमान को ठेस क्यों पहुँच जाती हैं? ऐसे में, दलितों को कानूनी सरंक्षण देने की जरूरत
पड़ती है और दलित दूल्हे की बारात कानून के संरक्षण में होकर गुजरती हैं। ये कितना
दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज में तथाकथित ऊँची जाति का तबका स्मार्टफोन रखता है
लेकिन स्मार्ट सोच नहीं।
इस देश में
जाति के आधार पर काम करने की पुरानी परंपरा रही हैं। ऐसी ही दकियानूसी और संकीर्ण मानसिकता के खिलाफ डॉ. अम्बेडकर अपने संपूर्ण जीवन में लड़ते रहे। डॉ.अम्बेडकर अपने
मिशन में तब कामयाब हुए, जब उन्होंने संविधान का निर्माण किया। समतामूलक समाज
बनाने के लिए उन्होंने संविधान में अस्पृश्यता को गैर-कानूनी करार दिया। उनकी
प्रतिबद्धता की बदौलत है कि आज दलित लड़की IAS की परीक्षा में टॉपर बन पा रही
है।
जाति के
संदर्भ में एक बार डॉ.अम्बेडकर ने कहा था-
"जिस चीज ने भारतीय समाज तथा भारतीय आदमी विशेषकर हिंदुओं के अधिकांश
हिस्से को भीतर से संवेदनहीन, न्यायपूर्ण चेतना से रहित और अमानवीय बना दिया है,
वह है जातियों पर आधारित भारतीय सामाजिक व्यवस्था। यह हमें रोज-ब-रोज, विवेकहीन,
कायर, पाखंडी-ढोंगी और आत्मसम्मानहीन बनाती है तथा व्यक्ति के आत्म गौरव और मानवीय
गरिमा को क्षरित करती है।"
डॉ. अंबेडकर
सिर्फ दलितों-अस्पृश्य ही नहीं, बल्कि स्त्रियों के उत्थान के लिए भी समर्पित थे।
उनका कहना था कि किसी समाज की प्रगति का पैमाना उस समाज में महिला की प्रगति से
पता चलता है। डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि जातिवाद और पितृसत्ता ने सबसे ज्यादा
महिलाओं का शोषण किया। वे लैंगिक भेदभाव के खिलाफ मुखर होकर बोलते थे। महिलाओं को
अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने बतौर कानून मंत्री 1951 में संसद के पटल पर हिन्दू
कोड बिल का प्रस्ताव पेश किए थे। उस प्रस्ताव में उत्तराधिकारी, विवाह और
अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग थी। लेकिन प्रस्ताव
पारित न
होने के वजह से उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हालांकि नेहरु सरकार ने इस बिल को बाद में कई हिस्सों में विभाजित करके संसद से पारित करवाया।
इस तथ्य से आकलन किया जा सकता है कि वे महिला अधिकारों के प्रति कितना संवदेनशील थे। आज के
समय में हर क्षेत्र में जब महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है, तो
इसका काफी श्रेय डॉ. अंबेडकर को भी जाता हैं।
आज हमारे
समाज में रेप की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रहा है। इसको रोकने के लिए सरकारों
के तरफ से कठोर से कठोर कानून बनाए गए है लेकिन ऐसी घटनाएं रुकने का नाम ले रही
हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए डॉ. अम्बेडकर का विचार आज भी बेहद प्रासंगिक हो
जाता है, जब वे कहते थे कि व्यक्ति में सामाजिक सुधार लाए बिना राजनीतिक सुधार के
बन्धन में बांधना अर्थहीन होगा।
जब आज की
सरकारें समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं को पहुँचाने का
दावा करती हैं। लेकिन असल में, सरकारी योजनाएं समाज के अंतिम व्यक्ति के चौखट
पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती है। ऐसे में, मुझे डॉ. अम्बेडकर का जीवन संघर्ष याद
आ जाता है। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को
सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए समर्पित कर दिया था। भले ही
आज के सरकारों की योजना समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाई
हो, लेकिन डॉ. अम्बेडकर का विचार समाज के अंतिम पायदान तक जरूर पहुँच गए हैं।
मौजूदा समय
में जाति के नाम पर खूनी संघर्ष हो रहा हैं, धर्म के आधार पर साम्प्रदायिक दंगे हो
रहे हैं। मानव जाति का विनाश हो रहा है। धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है। इन सभी
अराजकताओं का हल है डॉ. अम्बेडकर का मार्गदर्शन और प्रेरित करने वाले विचार। ऐसे
में, जरूरी है उनके विचारों को पढ़ने की और अपने व्यवहार में आत्मसात करने की। डॉ.
अम्बेडकर के विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeletewow😁
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