कोरोना संकट से ऑनलाइन और डिजिटल मीडिया को मिली नई संजीवनी
दूसरी ओर, लॉकडाउन के दौरान लोग औसतन मोबाइल पर 3.8 घंटे रोज बिता रहे हैं जो पहले के औसत से अधिक हो गया है. बार्क रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 संकट के पिछले दो हफ्तों को देखें तो संकट से पहले भारत में लोग एक हफ्ते में औसतन 23.6 घंटे मोबाइल पर बिताते थे, यानी रोज
औसतन करीब 3.4
घंटे. लेकिन कोविड संकट के पहले
हफ्ते में लोगों ने मोबाइल पर 25.1 घंटे
बिताये. यानी हर रोज 3.6 घंटे.
दूसरे हफ्ते में इसमें और बढ़ोत्तरी हुई. दूसरे हफ्ते में लोगों ने मोबाइल पर 26.4 घंटे बिताये यानी रोज औसतन 3.8 घंटे.
बार्क की रिपोर्ट के अनुसार, टीवी चैनलों पर दक्षिण भारत की तुलना में हिंदी बेल्ट के दर्शक अधिक बढ़े हैं. हिंदी बेल्ट में जहां टीवी के दर्शक 41 प्रतिशत बढ़े हैं, वहीं दक्षिण भारत के टीवी चैनलों में 31 फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि टीवी व्यूअर्स यूपी-उत्तराखंड में 38 प्रतिशत, उसके बाद बिहार-झारखंड में 46 प्रतिशत और एमपी-छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत बढ़े हैं.
बार्क रिपोर्ट की मानें तो टीवी चैनलों पर सबसे अधिक दर्शक नॉन प्राइम टाइम में बढ़े हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि दिन के वक्त लोगों ने सबसे अधिक टीवी चैनलों को देखा है. रिपोर्ट के अनुसार टीवी के 71 प्रतिशत दर्शक नॉन प्राइम टाइम में बढ़े हैं.
लॉकडाउन में सिर्फ भारतीय चैनलों के ही नहीं दुनिया भर के ऑनलाइन और टीवी चैनलों दर्शकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना संकट के दौरान अमेरिका में टीवी के दर्शकों में करीब 10 प्रतिशत, लैटिन अमेरिका में 9 प्रतिशत, यूके में 2.6 प्रतिशत, नॉर्वे में 26 प्रतिशत, स्पेन में 42 प्रतिशत, फिलिपींस में 19 प्रतिशत, वहीं चीन में न्यूज़ के दर्शक दोगुने हुए हैं.
लॉकडाउन का सबसे अधिक फायदा वीडियो स्ट्रीमिंग एप कंपनियों ने उठाया है. बार्क रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान लोग जमकर वेब सीरीज और फिल्में ऑनलाइन देख रहे हैं जिसकी वजह से वीडियो प्ले करने वाले ऐप्स पर टाइम स्पेंट बढ़ा है.
- अनमोल गुप्ता
कोरोना वायरस के संक्रमण को
रोकने के लिए देश में लागू लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को ठप्प कर दिया है. रेटिंग
एजेंसी- मूडीज की मानें तो भारत में चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही तक जीडीपी
गिरकर 1.5 प्रतिशत पर पहुंच जायेगी. लेकिन इन
सबके बीच ऑनलाइन और डिजिटल मीडिया का प्रसार तेजी से बढ़ा है. इसे यूं कहें कि लॉकडाउन
ने डिजिटल मीडिया को न सिर्फ संजीवनी देने का काम किया है बल्कि बूस्टर दिया है तो
अतिश्योक्ति नहीं होगी.
हालाँकि लॉकडाउन के दरम्यान ऑनलाइन
मीडिया के साथ-साथ टेलीविजन का बाजार भी तेजी से बढ़ा है. उसमें भी न्यूज चैनलों ने
तो व्यूअर्स के मामले में अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. हालांकि यह कहना
मुश्किल है कि यह कोरोना के खौफ के कारण लोगों की न्यूज चैनलों के जरिये अधिक से
अधिक जानकारी इकठ्ठा करने के कारण है या घर में बंद होने के कारण आसान टाईमपास.
कारण चाहे जो हों लेकिन इससे न्यूज चैनलों और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों की कम से
कम दर्शकों/पाठकों के लिहाज से चांदी है.
टीवी चैनलों के लिए रेटिंग जारी
करने वाली संस्था बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल इंडिया) ने नीलसन के
साथ मिलकर लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन के दौरान मीडिया यूजर के व्यवहार का अध्ययन
कर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के अनुसार, न्यूज चैनलों की जिस रफ्तार से
टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) बढ़ी है, वो इस
माध्यम के प्रति लोगों की दिलचस्पी को दर्शाता है.
दूसरी ओर, लॉकडाउन के दौरान लोग औसतन मोबाइल पर 3.8 घंटे रोज बिता रहे हैं जो पहले के औसत से अधिक हो गया है. बार्क रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 संकट के पिछले दो हफ्तों को देखें तो संकट से पहले भारत में लोग एक हफ्ते में औसतन 23.6 घंटे मोबाइल पर बिताते थे, यानी रोज
भारत में 37 प्रतिशत बढ़े टीवी के दर्शक
बार्क की रिपोर्ट के अनुसार, टीवी चैनलों पर दक्षिण भारत की तुलना में हिंदी बेल्ट के दर्शक अधिक बढ़े हैं. हिंदी बेल्ट में जहां टीवी के दर्शक 41 प्रतिशत बढ़े हैं, वहीं दक्षिण भारत के टीवी चैनलों में 31 फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि टीवी व्यूअर्स यूपी-उत्तराखंड में 38 प्रतिशत, उसके बाद बिहार-झारखंड में 46 प्रतिशत और एमपी-छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत बढ़े हैं.
इसी तरह असम-नॉर्थईस्ट-सिक्किम
में 34 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 36 फीसदी, ओडिशा में 31 फीसदी, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना में 28 फीसदी, तमिलनाडु-पॉन्डिचेरी
में 34 फीसदी, केरल में 41 फीसदी, कर्नाटक में 26 फीसदी, महाराष्ट्र-गोवा में 34 फीसदी, गुजरात-दमन दीव- में 39 फीसदी, राजस्थान में 56 फीसदी और
पंजाब-हरियाणा-हिमाचल-जम्मू कश्मीर में 57 फीसदी
टीवी के दर्शक बढ़े हैं.
नॉन प्राइम टाइम में अधिक
बार्क रिपोर्ट की मानें तो टीवी चैनलों पर सबसे अधिक दर्शक नॉन प्राइम टाइम में बढ़े हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि दिन के वक्त लोगों ने सबसे अधिक टीवी चैनलों को देखा है. रिपोर्ट के अनुसार टीवी के 71 प्रतिशत दर्शक नॉन प्राइम टाइम में बढ़े हैं.
समाचार चैनल के दर्शक तीन गुना
बढ़े
मजे की बात यह है कि लॉकडाउन का सबसे अधिक फायदा समाचार चैनलों को
हुआ है. बार्क की
रिपोर्ट के अनुसार, न्यूज के
दर्शकों में कुल 298 प्रतिशत, बिजनेस न्यूज़ के दर्शकों में 180 प्रतिशत, इन्फोटेनमेंट चैनलों के दर्शकों में 63 प्रतिशत और फिल्म दिखाने वाले चैनलों के दर्शकों में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
दुनियाभर में बढ़े टीवी के
दर्शक
लॉकडाउन में सिर्फ भारतीय चैनलों के ही नहीं दुनिया भर के ऑनलाइन और टीवी चैनलों दर्शकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना संकट के दौरान अमेरिका में टीवी के दर्शकों में करीब 10 प्रतिशत, लैटिन अमेरिका में 9 प्रतिशत, यूके में 2.6 प्रतिशत, नॉर्वे में 26 प्रतिशत, स्पेन में 42 प्रतिशत, फिलिपींस में 19 प्रतिशत, वहीं चीन में न्यूज़ के दर्शक दोगुने हुए हैं.
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत
में लॉकडाउन से पहले भारत के कुल टीवी दर्शकों में न्यूज देखने वाले सिर्फ 7 प्रतिशत होते थे लेकिन लॉकडाउन के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 21 फीसदी हो गये. साफ़ है कि टीवी के दर्शकों में जो बढ़ोतरी दर्ज
की गई है, उसमें सबसे बड़ा योगदान न्यूज चैनलों और उनको देखने वाले दर्शकों का है.
वीडियो स्ट्रीमिंग ऐप पर टाइम
स्पेंट बढ़ा
लॉकडाउन का सबसे अधिक फायदा वीडियो स्ट्रीमिंग एप कंपनियों ने उठाया है. बार्क रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान लोग जमकर वेब सीरीज और फिल्में ऑनलाइन देख रहे हैं जिसकी वजह से वीडियो प्ले करने वाले ऐप्स पर टाइम स्पेंट बढ़ा है.
कोविड-19 संकट के पहले और दूसरे हफ्ते के दौरान वीडियो स्ट्रीमिंग
ऐप्स पर टाइम स्पेंट 11 फीसदी
बढ़ा है. यूजर्स ने इस दौरान एक हफ्ते में वीडियो स्ट्रीमिंग ऐप्स पर 236 मिनट बिताया है.
डेटा कंपनियां सकते में
ऑनलाइन प्लेटफार्म पर बढ़ रहे
दर्शकों से जहां ऑनलाइन कंटेंट प्रोड्यूसर कंपनियां खुश हैं, वहीं डेटा कंपनी और
दूरसंचार विभाग सकते में है. कंपनियों ने डेटा खर्च को लेकर पिछले दिनों ही डीओटी
(डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन) के साथ बैठक की थी जिसके बाद माना जा रहा था कि जल्द ही कम्पनियाँ और सरकार डेटा
को लेकर नए नियम और दरें लागू कर सकती हैं.
(नोट- सभी आंकड़े BARC और NEILSON की रिपोर्ट पर आधारित हैं.)
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