Friday 10 April 2020

कोरोनाः भारत में सिर्फ़ मुसलमानों को क्यों विलेन बता रहा है मीडिया?

इस बीमारी पर चीन शुरुआत से ही पारदर्शी नहीं है, अमेरिका ने इसे हल्के में लिया और डब्ल्यूएचओ भी लापरवाह रहा है 

  • प्रतीक वाघमारे

प्रतीक वाघमारे 
एक तरफ दूरदर्शन पर रात 9 बजे प्रसारित टेलीविजन धारावाहिक ‘रामायणप्रेम, करुणा और भाईचारे का संदेश देता है, वहीं दूसरी तरफ रात 9 बजे कुछ चुनिंदा भारतीय न्यूज़ चैनलों पर उनके एंकर ज़ोर-ज़ोर से चीखते-चिल्लाते और नफ़रत फैलाते नज़र आते हैं. उनका आरोप है कि कोरोना एक समुदाय विशेष की वजह से भारत में फैल रहा है। ज़ाहिर है कि निशाना तबलीग़ी जमात के बहाने पूरे मुस्लिम समुदाय पर है। तबलीगी जमात मुस्लिम समुदाय का वह छोटा सा समूह है जो अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करता है और जिसका मरकज यानी मुख्य केंद्र दिल्ली के निजामुद्दीन में है। 

समस्या ये है कि मरकज में मौजूद लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं ये संक्रमित लोग भारत के लगभग हर राज्य में पहुंच चुके हैं। इसकी वजह से कई और लोग संक्रमित हुए हैं और कई और लोगों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ गया है लेकिन भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कुछ और ही कर रहा है। आइए, जानते हैं कैसे?

कहां हुई गलती

भारत में कोरोना वायरस से अब तक लगभग साढ़े छह हज़ार मामले सामने चुके हैं और इसे लिखे जाने तक सरकारी आँकड़ों के अनुसार 199 लोगों की मौत हो चुकी है। देश में संक्रमित हुए लोगों में से 30 फीसदी वे लोग हैं जो तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि तबलीग़ी जमात से बहुत बड़ी गलती और लापरवाही हुई है। लेकिन इसकी वजह से पूरे मुस्लिम समुदाय को ही दोष दे देना और उनके खिलाफ नफरत पैदा करना कितना सही है? सही मायने में कोरोना के फैलने का आरोप तो पूरे विश्व के अलग-अलग देशों की सरकारों पर लगना चाहिए। यह एक सामूहिक गलती लगती है।

चीन का ग़ैरज़िम्मेदार रवैया

कारण ये है कि चीन का रवैया इस वैश्विक महामारी के प्रति शुरुआत से ही पारदर्शी नज़र नहीं रहा है। आज भी चीन पर महामारी से जुड़े आंकड़े और तथ्यों को छिपाने के आरोप लग रहे हैं अमरीका की इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए ने भी व्हाइट हाउस को चीन के आंकड़ों पर भरोसा करने की सलाह दी है। अमेरीकी पत्रिकानेशनल रिव्युके अनुसार चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को इस अनजान रोग का पहला मामला सामने आने के तीन हफ्ते बाद सूचित किया था। इसके बाद 8 जनवरी को चीन की मेडिकल अथॉरिटी ने बताया था कि उनके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि यह रोग मानव से मानव में फैलता है इस बात की पुष्टि डब्ल्यूएचओ ने भी की है। 

इसी बीच 23 जनवरी को चीन इस कोरोना वायरस की जन्मस्थली वुहान शहर में लॉकडाउन लागू कर देता है, जिसके बाद इस शहर और चीन में 50 लाख लोग बिना जांच करवाए शहर छोड़ देते हैं। 24 से 30 जनवरी के बीच पूरे चीन में लूनर न्यू ईयर की छुट्टियां हो जाती हैं और पूरे देश में बड़े स्तर पर जश्न भी मनाया जाता है। तभी 1 फरवरी को डॉ. ली (अनजान रोग यानी कोरोना से ग्रसित व्यक्ति की जांच करने वाले) में इस रोग के संक्रमण पाए जाते हैं जिसके छह दिन बाद उनकी मौत हो जाती है। 

साफ़ है कि चीन जैसा विकसित देश भी इस रोग को समझने में वक्त लगा देता है और दुनिया को सचेत करने में और भी देरी कर देता है।

अमेरिकी सरकार की लापरवाही


चीन ही नहीं बल्कि अमेरीका जैसा शक्तिशाली देश भी इस वायरस के प्रति कितना कम गंभीर रहा, यह भी जान लेना चाहिए। 21 जनवरी को अमेरीका में कोरोना का पहला मामला सामने आता है डब्ल्यूएचओ ने 30 जनवरी को स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था, इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ऐसे कई बयान आते हैं जो बाद में बेबुनियाद साबित हुए। ट्रम्प ने अमरीका के टेलिविज़न न्यूज़ चैनल फॉक्स को दिए हुए इंटरव्यू में कहा कि चीन से अमेरिका आने वालों पर पाबंदी लगाई गई है जबकि ऐसा कोई कदम उनकी सरकार ने नहीं उठाया था। 

10 फरवरी को ट्रम्प ने ट्वीट कर कहा कि अप्रैल में जैसे ही गर्मी होगी, इस वायरस का असर कम हो जाएगा हालाँकि बाद में वैज्ञानिकों ने इस बात को नकार दिया। फिर 25 फरवरी को ट्रम्प कहते है कि इस वायरस का इलाज जल्द खोज लिया जाएगा जबकि शोधकर्ताओं ने बताया कि इलाज खोजने में एक साल से भी ज़्यादा का वक्त लग सकता है। 

ऐसे कई सारे बयान ट्रम्प के आते रहे, जिनका पर्दाफाश वहां का मीडिया करता रहा है अमरीका में कोरोना से अब तक 16 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और संक्रमित लोगों का सबसे बड़ा आंकड़ा भी इसी देश में है। वहाँ अब तक 4.5 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। 

डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल
यह तो हुई दो बड़े देशों की बात लेकिन पूरी दुनिया किसी भी महामारी से निपटने के लिए जिस संगठन की ओर देखती है, वो है विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने चीन में पहला मामला सामने आने के दो महीने बाद जांच कर बताया कि यह वायरस वुहान में मानव से मानव के बीच फैल रहा है। फिर 11 फरवरी को शुरुआती स्तर परटेस्टकरने की सलाह दी। 29 फरवरी तक अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया। 

मार्च में आकर डब्ल्यूएचओ बताता है किटेंप्रेचर स्क्रीनिंगयानी शरीर के तापमान पर आधारित जाँच प्रभावी नहीं है जबकि 4 मार्च से भारत में कोरोना की जो जांच हो रही थी वोटेंप्रेचर स्क्रीनिंगही थी। 11 मार्च को जाकर डब्ल्यूएचओ ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया। स्पष्ट है कि डब्ल्यूएचओ जैसा विशाल संगठन भी इस महामारी का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाया।

भारत से भी हुईं ग़लतियाँ

जब डब्ल्यूएचओ ने इस महामारी को समझने में इतना समय लगा दिया तो भारत जैसा विकासशील देश क्या इंतजाम कर सकता था भलाभारत तो स्वास्थ्य मामले में अपनी जीडीपी का अंश मात्र खर्च करता है। पिछले सालग्लोबल हेल्थ सिक्युरिटीनेग्लोबल पब्लिक हेल्थ वॉचनाम से एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें भारत को बहुत कम यानी 46.5 फीसदी अंक प्राप्त हुए थे कुल मिलाकर बात यह है कि भारत किसी भी महामारी से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। 


कोढ़ में खाज ये कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव लव अग्रवाल ने 13 मार्च को ये कह दिया कि भारत में स्वास्थ्य आपातकाल जैसे कोई हालात नहीं है जबकि उस समय तक दुनिया में कोरोना तबाही मचाना शुरु कर चुका था।

सिर्फ़ जमात दोषी कैसे ?


अब आते हैं तबलीग़ी जमात पर। बेशक जमात के आयोजकों से बड़े स्तर पर गलती हुई है। यहां तक कि इन लोगों ने मरकज में ठहरे लोगों का आंकड़ा भी दिल्ली पुलिस को कम करके बताया। यही नहीं, जमात के मुखिया ने कोरोना वायरस को लेकर निहायत ही दकियानूसी बातें कीं और लोगों को उससे न डरने और मस्जिदों में नमाज़ पढने जैसी बातें कहीं.   

लेकिन इनकी लापरवाही के साथ-साथ सरकारी तंत्र की गलती पर भी बात होनी चाहिए। दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से पूछा जाना चाहिए कि इस महामारी के बीच इतने बड़े कार्यक्रम करने की इजाजत क्यों दी गई? इंडोनेशिया में जमात के कार्यक्रम को वहां की सरकार ने इजाजत नहीं दी थी। यहां तक कि महाराष्ट्र सरकार ने भी जमात को आयोजन करने की इजाजत नहीं दी थी। 

लेकिन दिल्ली का हाल जुदा था। लापरवाही ये कि दिल्ली सरकार ने काफ़ी देर से यानी 13 मार्च को लॉकडाउन का ऐलान किया भारत के कई बड़े-बड़े मंदिर 19 मार्च तक खुले हुए थे। इनमें तिरुपति बालाजी मंदिर से लेकर शिर्डी का साईं मंदिर और तमाम गिरजाघर व गुरुद्वारे शामिल थे 

डिजिटल न्यूज़ वेबसाइट वायर के अनुसार, रामनवमी के दिन कोलकाता से लेकर शिर्डी तकसोशल डिस्टेंसिंगयानी सामाजिक दूरी बनाए रखने का उल्लंघन कर अधिक संख्या में श्रद्धालु आरती के लिए मंदिरों में जमा हुए इससे ये सवाल खड़ा होता है कि धार्मिक मामलों में भारत सख्ती से काम क्यों नहीं कर पाता और दोष अकेले जमात का कैसे है? ये सोचने वाली बात है।

मीडिया की एकतरफ़ा रिपोर्टिंग


तबलीग़ी जमात से लापरवाही हुई है बल्कि उन्होंने अपराध किया है और इस बात की जांच होनी चाहिए और सज़ा भी तय की जानी चाहिए। लेकिन मीडिया का जमात के बहाने सिर्फ़ मुसलमानों पर आरोप लगाना और कई ऐसे शब्दों का प्रयोग करना, जो दूसरे समुदायों में मुस्लिमों के प्रति नफ़रत पैदा करता है, कहां तक जायज है

न्यूज मीडिया ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, उनका यहां ज़िक्र करना भी ठीक नहीं। भारतीय मीडिया का एक बड़ा धड़ा केवल मुस्लिम समुदाय के एक समूह की गलती पर उन पर दोषारोपण करता है और बहुत चालाकी से सरकारी लापरवाही और लॉकडाउन तोड़कर मज़दूरों के पलायन पर पर्दा डाल देता है। मीडिया लीपापोती करता दिखता है, जैसे यह उसका एजेंडा हो। मीडिया की दहाड़ से ऐसा प्रतीत होने लगता है, जैसे इस वायरस को मुस्लिम जानबूझ कर फैला रहे हैं। 


इसी बीच सोशल मीडिया पर इस बारे में फर्ज़ी ख़बरों और हैशटेग की बाढ़ आ  जाती है, जो इस मामले को और तूल देता है। मीडिया के इस गैर-ज़िम्मेदाराना हरकत से लोगों में नफरत का भाव पैदा हुआ है। 

परिणामस्वरूप दिल्ली से कुछ दूरी पर मुख्मेलपुर में कुछ असामाजिक तत्वों ने मस्जिद में घुसकर तोड़फोड़ कर दी। ये सब खुलेआम होता है। बाद में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को कहना पड़ता है कि कोरोना को साम्प्रदायिक रंग देना ठीक नहीं। लेकिन लगता है कि भारत का मीडिया इससे बेख़बर है। वह आज भी कोरोना और जमात को भारत में एक-दूसरे का पर्यायवाची बता रहा है। मीडिया की भाषा से लगता है कि वह सांप्रदायिक हो चुका है।

इस महामारी के लिए चीन से लेकर हर वो देश और व्यवस्था जिम्मेदार है जिसने इस रोग को शुरुआत से ही गंभीरता से नहीं लिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी। अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भी डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं पर ये नहीं बता रहे कि उन्होंने शुरुआत में कोरोना को लेकर गैर-जिम्मेदाराना बयान क्यों दिए?  

जब ये महामारी पूरी दुनिया में पांव पसार रही थी, तो भारत के हवाई अड्डों पर आने-जाने वालों की जाँच ठीक से क्यों नहीं हुई, ये बड़ा सवाल है। 

इसलिए कोरोना को लेकर जमात के बहाने सिर्फ़ देश की मुस्लिम आबादी को विलेन बताना ना सिर्फ़ गैर-जिम्मेदाराना हरकत है, बल्कि एक अपराध है। ये तय है कि इसका असर देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब पर कोरोना के बाद भी दिखता रहेगा। 

(लेखक हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं. मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं और सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर लिखने में दिलचस्पी रखते हैं.) 

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