Wednesday 8 April 2020

कोरोना राहत पैकेज में बंटाईदार किसानों को फिर भूली सरकार


संकट की घड़ी में भी खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान करने वाले किसान की अनदेखी से बंटाईदार किसानों की बढ़ी मुश्किलें
  • सज्जन कुमार

हरियाणा के सोनीपत जिले के सहोटी गाँव के किसान दीपक कुमार चार एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर खेती करते हैं. बेमौसम बरसात के चलते पहले ही काफी फसल बर्बाद हो चुकी है और देश में कोरोना वायरस संक्रमण के
कारण 21 दिनों के लाकडाउन ने समस्या को और बढ़ा दिया है. गेहूँ की फसल की कटाई का समय बिलकुल सिर पर है लेकिन ज्यादातर मजदूर अपने-अपने घर वापिस लौट चुके हैं. अब जो बची हुए मजदूर हैं, वो कटाई के लिए दुगुनी रकम की मांग कर रहे हैं.
दीपक अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहते है, आमतौर पर फसल कटाई और बिकवाली का समय किसान के लिए काफी व्यस्त समय होता है. लेकिन इस बार स्थिति ओर भी मुश्किल हो चुकी है. इसलिए हमें अतिरिक्त पैसे खर्च करके भी काम करवाना पड़ रहा है, जिसकी वजह से फसल पर लागत में बढोतरी होना स्वभाविक है. खेती-किसानी के हालात पहले ही काफी का खराब हैं लेकिन मजबूरी है, क्या करें? अब पकी हुई फसल को वैसे तो नहीं छोड़ा नहीं जा सकता. ये समस्या अकेले दीपक कुमार की नहीं है. इस समय यह पूरे देश में हर किसान की समस्या है.
रबी की फसल की कटाई होने वाली है. लेबर की कमी का हर्जाना किसान को भुगतना पड़ रहा है. जहाँ पहले किसान को एक एकड़ गेहूं की कटाई के लिए 4000­­ से 5000 हजार रूपए देने होते थे, अब 8000 रूपये तक अडवांस में देने पड़ रहे हैं. अभी कटाई शुरू नहीं हुई है, शायद आगामी दिनों में इसमें और भी इजाफा हो सकता है.    
इस बीच, कोरोना वायरस संक्रमण के चलते केंद्र सरकार ने बीते 26 मार्च को 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपए के कोरोना राहत पैकेज का ऐलान किया जिसमें कहा गया है कि किसानों की सहायता के लिए सरकार किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के खाते में 2000 रुपये की किश्त एडवांस में डालेगी. इस योजना में लगभग 8.70 लाख किसानों को रजिस्टर किया गया है, जिनके खाते में अप्रैल के पहले हफ़्ते में ये किश्त ट्रांसफर की जानी है. किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब तक किसानों को सालाना 6 हजार रुपये दिए जाते हैं. लेकिन करोड़ो किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता दिख रहा क्योंकि किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत केवल उन्हीं किसानों को लाभ होगा जिनके पास खुद की जमीन है. 
उल्लेखनीय है कि नीति आयोग ने मॉडल लैंड लीजिंग एक्ट 2016 तैयार किया है. इसे राज्यों को अपनाने के
लिए के लिए ये प्रस्ताव उनके पास भेज भी दिया गया है. प्रस्ताव में उल्लेख किया गया है कि भारत में अनुमानित 36% किसान पूरी तरह से भूमिहीन हैं. इस के अनुसार, लगभग 10 करोड़ किसान है जो पट्टे पर खेती करते हैं. इन 10 करोड़ लोगों को इस किसान सम्मान निधि योजना का कोई लाभ नहीं होगा. इन किसानों को कैसे राहत पहँचाई जाएगी, इसका कोई बंदोबस्त कोरोना राहत पैकेज में नहीं किया गया है.
साथ ही, फसल की कटाई को लेकर राज्य सरकारों ने कुछ दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि गाँव के सरपंच (प्रधान) की देखरेख में कटाई के लिए उपय़ोग होने वाले यंत्र और मशीनों को सेनेटाइज किया जाए. लेकिन इसपर आने वाला खर्च कौन अदा करेगा? इसपर अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी ना राज्य सरकार ने दी है और ना ही केंद्र सरकार की तरफ से कोई घोषणा की गई है. मशीनों को सेनेटाइज करने का खर्च भी अगर किसान को ही उठाना पड़ेगा तो यह लागत में वृद्धि की दोहरी मार होगी.
किसान संगठन भूमि बचाओ संघर्ष समितिके प्रवक्ता डा.शमशेर सिंह कहते हैं, "हम राज्य सरकारों से बार-बार ई-पोर्टल फसल रजिस्ट्रेशन में काश्तकार किसान के लिए अलग से व्यवस्था करने की मांग करते रहे हैं. मालिकाना हक खोने के डर चलते भूमि मालिक अनुबंध से कन्नी काटते हैं. इसलिए राज्य सरकारों को भूमि मालिकों को यह आश्वासन को देने होंगे कि काश्तकार किसानों के साथ अनुबंध के बाद भूमि मालिक के मालिकाना हक सुरक्षित रखे जायेंगे ताकि अनुबंध से जुड़ी काश्तकार किसान की समस्या का समाधान किया सके.’’
अफ़सोस की बात यह है कि इस तरह का अनुबंध ना होने के कारण मौजूदा राष्ट्रीय संकट और केंद्रीय किसान आर्थिक राहत के लाभ काश्तकार किसान की बजाए भूमि मालिक को मिल रहे हैं. फसल खराब होने पर किसान फसल बीमा के मुआवजे की रकम भी भूमि मालिक को ही मिलती है जोकि पट्टे पर खेती करने वाले किसान का हक होता है. चौतरफा शोषण के चलते खेत में काम करने वाला और देश को खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान करने वाला किसान बहुत मुश्किल हालातों से गुजर रहा है.
असल में, मॉडल लैंड लीजिंग एक्ट 2016 करना लागू राज्य सरकारों के हाथ में है क्योंकि कृषि राज्य सूची का विषय है. इस एक्ट में काश्तकार किसान और कृषि आश्रित मजदूर को केंद्रीय सरकारी योजनाओं के लाभ मिल सके, इसके लिए दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं. साथ ही, कृषि ऋण व्यवस्था में सुधार के लिए संशोधन करने के लिए कहा गया था. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि निर्देश के बावजूद राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ही इसे लागू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं. देश में किसी भी राज्य ने 56% वंचित वर्ग को उनका हक दिलाने के लिए कोई भी आवश्यक कदम नहीं उठाए हैं.
डा.शमशेर सिंह का मानना है, किसानों को तत्काल राहत के लिए  रैयथ बंधु कृषि सब्सिडी सुधार मॉडल की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर काश्तकार और पात्र किसानों को तीन चरणों में 24,000 रूपये वार्षिक मदद आवश्यकता है क्योंकि किसान को अपने पट्टे की रकम में किसी भी तरह राहत नहीं दी जा रही है. केवल किसान ही है जिसकी वजह से मौजूदा संकट के बावजूद लोगों की थाली तक खाना पहुँच रहा है.

मौजूदा हालत में जमा-पूंजी ना होने की वजह से किसान के पास अब दो ही विकल्प है. पहला कि वो अपनी फसल को बर्बाद होने के लिए छोड़ दे, जिसका प्रभाव भविष्य में सार्वजनिक खाद्य भंडारण व्यवस्था पर होगा. सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी इससे प्रभावित होगी जो देश की गरीब जनता में कुपोषण की स्थिति और हंगर इंडेक्स में हमारी रैंक को ओर भी खराब कर सकती है.

दूसरा विकल्प है कि किसान कहीं से ऋण लेकर अपना काम चलाए. लेकिन बैंको के हालात ऐसे नहीं हैं कि वो ऋण दे सकें और ऋण लेना इतना आसान भी नहीं है. ऋण के लिए किसी अन्य विकल्प में जाना हमेशा से जोखिम भरा रहा है क्योंकि इसकी ब्याज दर काफी ज्यादा होती है. मौजूदा हालात में उसे ओर भी ऊँची ब्याज देनी पड़ सकती है. इसमें जोखिम ज्यादा है और ऋण के कुचक्र में फँसने का डर है.

देश के किसानों का बड़ा तबका जो पट्टे पर जमीन लेकर या बटाईदारी खेती करता है, हमेशा से ही सरकारी लाभों से वंचित रहा है. तमाम तकलीफों के बावजूद भी किसान फसलों का पैदावार बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है. लेकिन सरकार की योजनाओं में हमेशा से ही इनके साथ सौतेला व्यवहार होता आया है. अब समय आ गया जब सरकार को चाहिए कि इनकी समस्या पर ध्यान दे और कोई उचित समाधान निकाले.

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