Wednesday 15 April 2020

लॉकडाउन से नहीं, घरेलू हिंसा से डर लगता है

घरबंदी में महिलाओं के सामने एक नई चुनौती है। घरेलू हिंसा से बचने के लिए ना तो वह पुलिस के पास जा पा रही है और ना घर से बाहर 

  • अवंतिका तिवारी 

कोरोना महामारी के चलते आज पूरी दुनिया में कोई 90 देशों के लगभग चार अरब लोग लॉकडाउन में जीने को मजबूर हैं लॉकडाउन से कोरोना संक्रमण के फैलने में कुछ हद तक नियंत्रण तो हो रहा है लेकिन इसके साथ ही एक नई समस्या उभरकर सामने आई है- महिलाओं के प्रति बढ़ती घरेलू हिंसा संयुक्त राष्ट्र महिला ( United Nations Women ) की कार्यकारी निदेशक फ़ोमज़िल माम्बो नगुका और भारतीय राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने अपने-अपने बयानों में इस बात की पुष्टि की है 

क्या कहते हैं आंकड़े
भारत के राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक, लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से घरेलू हिंसा के कुल 257 केस दर्ज किये गए हैं रेखा शर्मा का मानना है कि असली आंकड़े और भी ज्यादा होंगे लेकिन आरोपियों के चौबीसों घंटे घर पर रहने के कारण महिलाएं शिकायत करने से डर रही हैं कई महिलाएं शिकायत करने से इसलिए भी डरती हैं कि कहीं पुलिस उनके पति को उठा ना ले जाए और गृहस्थी चौपट ना हो जाए

संयुक्त राष्ट्र की चिंता


संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी निदेशक फ़ुमज़िल ने इस बढ़ती हिंसा के पीछे मानसिक तनाव को कारण माना है उनका मानना है कि लॉकडाउन लोगों के लिए मानसिक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है ये दौर सुरक्षा, स्वास्थ्य और धन की चिंता से उत्पन्न तनाव को बढ़ावा दे रहा है लोगों की कुंठा पराकाष्ठा पर पहुंच रही है यही कारण है कि घर बैठा पुरूष गुस्से में या परेशान होकर हिंसा पर आमादा हो जा रहा है इसलिए जिन महिलाओं के घरों में पुरूष हिंसक प्रवृत्ति के हैं, उन पर खतरा सबसे ज्यादा है

राष्ट्रीय महिला आयोग भी चिंतित

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने माना कि घरेलू हिंसा के मामले इससे और भी अधिक हैं, लेकिन महिलाएं डर के चलते लॉकडाउन में सामने नहीं आ रही हैं। 

उन्होंने कहा है कि, ‘‘महिलाएं पुलिस से संपर्क नहीं कर पा रही हैं क्योंकि वे डरती हैं कि जब उनका पति पुलिस स्टेशन से बाहर आएगा तो फिर उनको पीटेगा और लॉकडाउन की वजह से वे कहीं जा भी नहीं सकती हैं। पहले महिलाएं अपने माता-पिता के पास चली जाती थीं, लेकिन अब वह यह भी नहीं कर पा रही हैं।’’

सोशल मीडिया में चर्चा 


लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही सोशल मीडिया में महिलाओं की इन खास चुनौतियों की बात तेज़ी पकड़ रही थी लोगों का मानना है कि जिस लॉकडाउन वाले जीवन ने सभी की हालत पस्त कर रखी है, दरअसल, बिल्कुल वैसा ही लॉकडाउन भारतीय मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएं हमेशा से झेलती आई हैं महिलाओं को घर के चूल्हा-चौका में उलझाकर सालों से हमारा समाज उनका शोषण करता आया है यह उनके लिए स्थायी लाकडाउन की तरह रहा है जिसमें उन्हें घर की चाहरदीवारी के भीतर बंद कर दिया जाता है और खुली हवा में सांस लेना सपने की तरह होता है.  

कुछ देशों ने ढूँढा समाधान


जानी-मानी न्यूज़ वेबसाइट ndtv.com में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, आम लोगों को सिर्फ शारीरिक बंदिश नहीं, आर्थिक दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है इसके लिए हर देश में सिस्टम का एक हिस्सा लोगों के मानसिक संतुलन और पीड़ितों की सुरक्षा के लिए तैयार करना होगा चीन की पुलिस के मुताबिक, कोरोना लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू मारपीट के मामले लगभग तिगुने हो गए, ऐसे में उन्हें कहीं ज्यादा सतर्क रहना पड़ा रहा है 

उधर स्पेन से खबरें आईं कि कुछ महिलाओं ने यातना से बचने के लिए खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना शुरू कर दिया नतीजतन, स्पेन की सरकार ने कड़े नियमों के बावजूद महिलाओं के लिए ढील बरती अब वहां तमाम सख़्ती के बीच ऐसे हालात में महिलाओं को बाहर निकलने की छूट है इटली में इस मुद्दे पर काम करने वाले एनजीओ और कार्यकर्ताओं की फौज 24 घंटे की हेल्पलाइन के साथ उपलब्ध है लेकिन हेल्पलाइन और पुलिस से मदद मांगने की हिम्मत हो तो क्या किया जाए? इसका जवाब फ्रांस में मिलता है, जहां अगर किसी महिला में खुद पुलिस को फोन करने की हिम्मत नहीं है तो वह पास में मौजूद दवा की दुकान पर जाकर एक कोड वर्ड बोल दे और वह है- मास्क-19 

दोषपूर्ण सामाजिक संरचना


ऐसा नहीं है कि भारत में महिलाओं की स्थिति सामान्य दिनों में अच्छी रहती है रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रतिदिन बलात्कार के 90 केस दर्ज होते हैं उनमें से सिर्फ 32 फीसदी केस कोर्ट तक पहुंच पाते हैं आज भी एक लाख से ज्यादा ऐसे केस की फाइलें न्यायालयों में पड़ीं धूल खा रहीं हैं लेकिन फिर भी कोरोना काल में सरकार ने अब तक महिलाओं की सुरक्षा और सहायता पर केंद्रित किसी भी तरह की सूचना हेल्पलाइन या सुरक्षा के लिए पहल की चर्चा नहीं की है 


इस समस्या का प्रमुख कारण है समाज में चिरकाल से व्याप्त पितृसत्ता। घरेलू हिंसा, बलात्कार, मानसिक-शारीरिक शोषण, हर क्षेत्र में असमानता पितृसत्ता के ही अलग-अलग स्वरूप हैं इसी का नतीजा है कि कोरोना संकट के दौरान देश-विदेश से महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती घरेलू हिंसा की ख़बरें रही हैं 

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच महिलाओं के सामने घर में बंद रहने के अलावा कोई चारा भी नहीं है लेकिन अफ़सोस कि टीवी पर रहे निर्देशों में पारिवारिक हिंसा पर जागरूकता के संदेश नदारद हैं महिलाओं पर पड़े कामकाज के बोझ को भी चुटकुलों में तब्दील किया जा चुका है

कोरोना महामारी के अस्तित्व के पहले से महिलाओं के प्रति हिंसा हमारे समाज की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है हमेशा से महिलाएं, महिला होने की वजह से संघर्ष करती रही हैं कोरोना के दौर में एक समाज के रूप में हम किसान, मजदूर, गरीब और पिछड़ों के लिए तो फिर भी आगे आकर सहायता कर रहे हैं लेकिन महिलाओं की सहायता ऐसी परिस्थितियों में सबसे मुश्किल है  

मुद्दा नहीं बनती घरेलू हिंसा


ज़रा सोचिए जिस वक्त हम आप घरों में बैठकर अपने फोन पर कोरोना के ख़तरों के बारे में पढ़ रहे हैं, उसी समय भारत की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा किसी तरह खुद को संभावित हिंसा से बचा रहा है सब कुछ होकर भी हम एक इंसान के रूप में हमेशा विफल हो जाते हैं समाज को दोष देते हैं लेकिन उस महिला के बारे में सोचिए, महामारी से बचने के लिए वह घर पर बैठे भी तो कैसे? हर पल उसके मन में हिंसा का भय बना हुआ है 

भारत में लॉकडाउन अब 3 मई तक बढ़ा दिया गया है हर घंटे मरीजों की संख्या बढ़ती चली जा रही है आर्थिकी की बाद से बदतर होती स्थितिऔर पलायन सबसे बड़े मुद्दे बन चुके हैं लेकिन नीति-नियंताओं की चिंता और घोषणाओं में घरेलू हिंसा जैसा अहम मुद्दा नदारद है। 

एक सभ्य समाज में आधी आबादी की चिंता सबसे पहले होनी चाहिए क्योंकि सभी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों की पहली मार इन्हीं पर पड़ती है। इस बारे में जागरुकता अभियान भी चलाया जाना ज़रूरी है जिससे लोगों में आधी आबादी को लेकर सम्मान और कृतज्ञता का भाव आए।

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