Wednesday 22 April 2020

डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला कोरोना से जंग को कमजोर कर रहा है

हमारे असली योद्धा हमारे स्वास्थ्यकर्मी हैं जो अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अगली पंक्ति में डटे हैं 

  • दीप्ति कुमारी

आज पूरा विश्व कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है। चीन से आए इस वायरस से अब तक दुनिया में पौने दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में भी इससे साढ़े छह सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस महामारी से लड़ने में सबसे बड़ी भूमिका डाक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की है। इनमें डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और सफाईकर्मी सभी शामिल हैं। लेकिन हाल में इन स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले, उनके साथ मारपीट और बदसलूकी की कई अफ़सोसनाक घटनाएँ सामने आई हैं।

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में लोगों को क्वारंटाइन करने पहुँची मेडिकल टीम पर स्थानीय लोगों ने हमला किया। इस हमले में डॉक्टर समेत पांच लोग घायल हुए। इस घटना में डॉक्टर के सिर और चेहरे पर पत्थर से वार किया गया था। डॉक्टरों पर हमले की ये कोई एक अकेली घटना नहीं है। 

इसी तरह बिहार में औरंगाबाद जिले के गोह थाना के अकौनी गांव में भी जाँच के लिए गई मेडिकल टीम पर ग्रामीणों ने हमला किया। घटना की खबर मिलते ही जब एसडीपीओ और एसडीएम दलबल के साथ पहुँचे तो उनपर भी ग्रामीणों ने हमला किया। इससे पहले बिहार के भागलपुर, मधुबनी और कटिहार में डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों पर हमले की घटनाएँ हो चुकी हैं। 

मध्य प्रदेश के इंदौर में भी मेडिकल टीम के साथ मारपीट की गई। स्वास्थ्य टीम की एक डॉक्टर जाकिया सईद ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि हम पर हमला किया जाएगा। वह किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागीं। इसके बाद डा. जाकिया अपनी टीम के साथ दोबारा उस क्षेत्र में गईं, जहां उनपर और उनकी टीम पर पथराव किया गया था। उन्होंने वहां लोगों को समझाया और दोबारा जांच शुरु की। 

इधर मुरादाबाद में स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले के बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि दोषियों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत सजा दी जाएगी। मुरादाबाद हमले में 17 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं, जिनमें सात महिलाएँ भी हैं ।

क्यों हो रहे हैं स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले? 

इंदौर के कोविड-19 टीम के सदस्य डॉ आनंद राय ने बीबीसी को बताया कि डॉक्टरों पर हमले की घटना कहीं से भी उचित नहीं है। सोशल मीडिया से फैली गलत अफवाह भी इसका कारण हो सकती हैं। लोगों में ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि क्वारंटाइन में उनको खाना नहीं दिया जाएगा। उनके साथ गलत व्यवहार किया जाएगा और उनके शरीर में कोरोना का वायरस डालकर उन्हें बीमार बना दिया जाएगा। ये सभी अफवाहें एक वर्ग विशेष को हिंसक बना रही हैं।

इधर स्वास्थ्यकर्मी अस्पताल के बाहर ही नहीं, अंदर भी असुरक्षित हैं। देश के कई अस्पतालों और क्वारंटाइन सेंटर में नर्सों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आई हैं। भारत में कई स्वास्थकर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। इंदौर के एक निजी क्लीनिक में काम करने वाले डॉक्टर की कोरोना वायरस से मौत हो चुकी है। कई राज्यों में स्वास्थ्यकर्मियों को आइसोलेशन में रखा गया है । दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भी यही हुआ है। पूरे विश्व में आठ हजार से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी बीमार हैं।

न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन और अमेरिका में जब बड़ी संख्या में डॉक्टर और नर्स संक्रमित होकर मरने लगे तो उनके साथी डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी निराश और हताश होने लगे। इन सभी कारणों से कई डॉक्टर मानसिक तनाव से भी ग्रस्त हैं। 

क्यों बीमार हो रहे हैं डॉक्टर 

वायरोलॉजिस्ट जैकब जॉन ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि हमें डॉक्टरों को श्वसन सुरक्षा देनी होगी ताकि वे इस वायरस से बच सकें। सफदरजंग के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के डॉ जुगल किशोर ने कहा कि अभी भी बहुत कम लोगों की जाँच हुई है। ऐसे बहुत से लोग, जिनमें कोरोना वायरस के प्रत्यक्ष लक्षण तो दिखाई नहीं देते हैं लेकिन वे लोग संक्रमित होते हैं। डॉक्टर सभी तरह के मरीज के संपर्क में आते हैं, इसलिए वे भी संक्रमित हो रहे हैं। हमें ज्यादा से ज्यादा जाँच करनी होगी। ऐसे कई स्वास्थयकर्मी हैं जो 18 घंटे काम करने के बाद घर नहीं जा पा रहे हैं ताकि कोरोना वायरस उनके परिवार और आसपास न फैले।

दूसरा बड़ा कारण है पर्सनल प्रोटेक्शन इक्युपमेंट (पीपीई), एन-95 मास्क, दस्ताने और आंखों के माध्यम से संक्रमण रोकने के लिए चश्मे की कमी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 घरेलू कंपनियों से 7.2 लाख पीपीई की मांग की है। कई संस्थान भी सरकार की मदद के लिए आगे आए हैं लेकिन इन सभी कंपनियों को किट बनाने के लिए कम से कम एक महीने का समय चाहिए। 

वहीं दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने 6 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर शिकायत की है। इस एसोसिएशन में करीब 2,500 डॉक्टर है। ये डॉक्टर एक महीने से पीपीई और अन्य सुरक्षा उपकरणों के खराब होने की शिकायत कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर तस्वीरें आदि डालने पर प्रबंधन उन्हें प्रताड़ित कर रहा है। 

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ श्रीनिवास राजकुमार ने इंडिया टुडे से कहा कि आप हमारे लिए भले ताली या थाली न बजाएं, लेकिन हमारा अधिकार ना छीनें और हमारी आवाज न दबाएं। हमें अपमानित करने की बजाय चिकित्सा बिरादरी का सम्मान करें। ये स्थिति देश के सबसे बड़े अस्पताल की है। अब आप समझ सकते हैं कि गांव और छोटे शहर के अस्पतालों की क्या स्थिति होगी? पश्चिम बंगाल के अस्पताल में तो स्वास्थ्यकर्मी पीपीई सूट की जगह बरसाती का इस्तेमाल कर रहे हैं। छोटे अस्पतालों की स्थिति ये है कि डॉक्टर्स डरे हुए हैं, दूर से ही मरीज को देख रहे हैं क्योंकि उनके पास सुरक्षा उपकरण नहीं हैं। 

झारखण्ड का धनबाद शहर जिसकी आबादी 26 लाख से ज्यादा है, वहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए मात्र 10 बेड हैं और जांच की भी कोई व्यवस्था नहीं है। संदिग्ध व्यक्तियों की जांच के नमूने रांची या जमशेदपुर भेजे जाते हैं। हालत ये है कि कोल इंडिया के सेंट्रल अस्पताल को आम मरीजों के लिए बंद कर दिया गया और कहा गया कि यहां केवल कोरोना मरीजों का इलाज होगा, लेकिन धनबाद में जैसे ही कोरोना का पहला मामला सामने आया, सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण अस्पताल के डॉक्टर और नर्स रोगी से डरने लगे। स्थिति ये है कि रात में मरीज को देखने के लिए न तो कोई डॉक्टर रुकता है और न ही नर्स। 

आख़िर समस्या कहां है?

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार भारत में छह लाख डॉक्टर, 20 लाख नर्स और 50 हजार से ज्यादा विशेष देखभाल वाले विशेषज्ञों की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में एक हजार मरीज पर केवल एक डॉक्टर है, वहीं लगभग पांच सौ मरीज पर एक नर्स है। इस कारण स्वास्थ्यकर्मियों पर भारी दबाव है। हाल ही में सोशल मीडिया में एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें एक नर्स चेहरे पर मास्क लगाए हुए थककर की-बोर्ड पर अपना सिर रखे हुए है। ये तस्वीर इटली के कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित लोम्बार्डी क्षेत्र की है। इटली में कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्यकर्मियों की हालात खराब कर दी है। ये तस्वीर उनके दर्द को बयां करती है।


डॉक्टरों को अपने घर-परिवार की भी चिंता है। उन्हें इस बात की फ्रिक है कि कहीं उनके परिवार वाले भी संक्रमित न हो जाए। वहीं दूसरी तरफ किराए के घर में रहने वाले डॉक्टरों को उनके मकान मालिक संक्रमण के डर से निकाल रहे हैं। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने इस बाबत कार्रवाई की थी लेकिन डॉक्टरों को अभी भी परेशानी हो रही है। कई स्वास्थ्यकर्मी अपने घर नहीं जा पा रहे हैं। दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के एक डॉक्टर 18 घंटे काम करके अपनी गाड़ी में ही छह घंटे बिताते हैं। वह कहते हैं- "मेरा एक छोटा बच्चा है। मैं बहुत दिनों से घर नहीं गया, अपने बच्चे को भी नहीं देखा।"

डॉक्टरों को उनके मकान मालिक भी घर खाली करने को कह रहे हैं। मकान मालिकों को डर लग रहा है कि डॉक्टरों की वजह से वे भी संक्रमित न हो जाए। एम्स के डॉक्टरों ने गृहमंत्री अमित शाह को शिकायत पत्र लिखा कि उन्हें उनके मकान मालिक घर खाली करने को कह रहे हैं। कोलकाता के अस्पताल की एक नर्स ने द गार्डियन को बताया- “मेरी मकान मालकिन ने मुझे एक दिन में घर खाली करने को कहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि मैं कोरोना मरीजों का इलाज कर रही हूँ और ये वायरस मुझसे फैल सकता है। मैंने उन्हें समझाया कि इतनी जल्दी अपने दो बच्चों और बूढ़ी मां के साथ कहां जाऊँगी लेकिन वह अगले दिन कुछ आदमियों के साथ आईं और मुझे घर खाली करने को कहा। अब मेरे सामने दिक्कत ये है कि 12 घंटे काम करने के बाद घर नहीं ढ़ूंढ़ पा रही हूँ और इस समय मुझे कोई रहने के लिए घर देगा भी नहीं।” 

सरकार ने डॉक्टरों के लिए क्या किया?

सरकार ने 25 मार्च से तीन महीने के लिए सभी स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 50 लाख की बीमा योजना घोषित की है, जिससे सफाई कर्मचारी, वार्डबॉय, नर्स, आशा सहयोगी, पैरामेडिकल, तकनीकी स्टाफ, डॉक्टर और विशेषज्ञ आदि सभी को इस योजना का लाभ मिल सके। पुलिस ने उन सभी लोगों पर उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है, जिन्होंने नर्सों के साथ अस्पताल में अश्लील हरकत की। सभी के खिलाफ केस चल रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री ने पीपीई की जल्द से जल्द आपूर्ति के लिए कई कदम उठाए हैं।


सरकार की कमियां क्या हैं

7 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिशा-निर्देश जारी कर बताया कि वैश्विक स्तर पर पीपीई का भंडार अपर्याप्त है, खासकर मास्क और श्वसन यंत्र की। भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी को आया था। तब 31 जनवरी को सरकार के विदेश व्यापार महानिदेशालय ने अधिसूचना जारी कर पीपीई और सभी तरह के कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगा दी, लेकिन एक हफ्ते यानी 8 परवरी को कुछ संशोधन के बाद पुन: निर्यात की अनुमति दे दी गई। 

प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव कुमार ने कारवां को बताया कि अन्य देशों ने न केवल पीपीई उत्पादों बल्कि कच्चे माल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया था, पर भारत ने 19 मार्च तक ऐसा नहीं किया। अब भारत में स्थिति ये है कि तीन लेयर वाले मास्क बनाने के लिए कच्चे माल की कीमत 250 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 3000 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। अब हम एक ऐसे संकट का सामना कर रहे हैं जो हमने खुद अपने लिए खड़ा किया है।

पीपीई उत्पादों की कमी का एक और कारण है कि सरकार ने अपने स्वामित्व वाली एचएलएल लाइफकेयर को पीपीई उत्पादों की आपूर्ति का एकाधिकार दे दिया। लेकिन एचएलएल इस संकट की स्थित में माँग पूरी करने में सक्षम नहीं है। कुछ सार्वजनिक स्वास्थ्य कारणों से एचएलएल ने निर्माण बंद कर दिया था, लेकिन 13 अप्रैल से निर्माण काम पुन: शुरु किया गया है।अन्य निर्माणकर्ताओं का कहना है कि यदि सरकार हमें भी आपूर्ति की मंजूरी दे तो स्थिति सुधर सकती है। 

बहुत सारे डॉक्टर अपना पैसा खर्च कर सुरक्षा के उपाय अपना रहे हैं। ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क और प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 23 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि एचएलएल को पीपीई के वितरण का एकाधिकार नहीं देना चाहिए ताकि हम मांग और आपूर्ति के अनुपात को संतुलित कर सकें।

हम क्या कर सकते हैं

कोरोना वायरस से लड़ने में प्रत्येक व्यक्ति सहयोग कर सकता है । इस समय लोगों का एक-दूसरे से सामाजिक दूरी बनाकर रहना ही एकमात्र उपाय और बचाव है। हमें ये समझना होगा कि एक स्वस्थ आदमी साधारण मास्क लगाकर निकल सकता है, उसे एन-95 मास्क की जरूरत नहीं है। एक डॉक्टर जो रोज हजारों संक्रमित मरीज के संपर्क में आ रहे हैं, उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है । इस बीमारी से लड़ने के लिए हम सबको डॉक्टरों का सहयोग करना होगा। उन्हें सम्मान और सुरक्षा की भावना देनी चाहिए, तभी हम कोरोना से लड़ पाएँगे। ये ही हमारे असली कोरोना-योद्धा हैं।

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