Wednesday 15 April 2020

आखिर आधार से किसे हुआ फ़ायदा?

आधार की असलियत समझने के लिए एक जरूरी क़िताब 

पुस्तक समीक्षा: आधार से किसका उद्धार


  • ऋषभ देव

सरकार जब कोई योजना लाती है, तो उसे जनकल्याण के लिए लाया गया बताती है। लेकिन बाद में पता चलता है कि कल्याण किसी और का हो रहा है या जिसके कल्याण के लिए लाया गया, उसे कोई फायदा नहीं हुआ। ऐसी ही एक योजना है जिसे यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान लाया गया और जिसे हम सबआधार प्रोजेक्टके नाम से जानते हैं। जब इसे लाया गया तो इसके बारे में कहा गया कि इससे उन लोगों को फायदा मिलेगा जिनके पास पहचान पत्र नहीं है। 

समय बीतता गया और इसके साथ ही आधार का मकसद भी बदलता गया। आधार बनाया तो गया था, लोगों का उद्धार करने के लिए। लेकिन इसने उल्टे कई समस्याओं को खड़ा कर दिया और कई सवालों को जन्म दिया। आधार, उसकी खामियां और उससे पैदा हुई समस्याओं के बारे में विस्तार से बताती है किताबआधार से किसका उद्धार जिसे लिखा है पहले आइआइटी और आइआइएम में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रीतिका खेड़ा ने जो जानेमाने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के साथ भी काम करती रही हैं. 


यूपीए-2 के समय यानी कि साल 2009 में सरकार ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को एक आईडी नबंर देना था। यह नंबर आधार कार्ड के रूप में आया और वो आधार प्रोजेक्ट बन गया। इस पहचान पत्र को देने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन कराया गया, जिसमें आपको अपनी कुछ जानकारी देनी होती है। इसके अलावा फोटो, उंगलियों के निशान और आंखों की रेटिना के छाप देने होते हैं। 

इसको सरकार ने नंदन नीलेकणी के हवाले से आगे बढ़ाया, जो इससे पहले इन्फ़ोसिस नामक आईटी कम्पनी के संस्थापकों में से एक थे और बहुत नाम कमा चुके थे। साल 2015 तक बिना किसी कानून के आधार लोगों तक पहुंचा दिया गया। जब इस पर सवाल उठने लगे तो इस पर बिल बनाने की बात कही गई। लेकिन तब केंद्र में सत्ता बदल चुकी थी और तत्कालीन बीजेपी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था और उसका बहुत विरोध हो रहा था, इसलिए इसे मनी बिल के बतौर पास किया गया। इस पर साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया ,जिसने आधार परियोजना को वैधानिक करार दे दिया। इस तरह आधार अब क़ानून सम्मत बन चुका था।

लेखिका के बारे में


आधार पर इस शानदार किताब की लेखिका हैं, रीतिका खेड़ा। रीतिका खेड़ा इस समय आईआईएम अहमदाबाद में इकोनोमिक्स और पब्लिक सिस्टम ग्रुप की सहायक प्रोफेसर हैं। डा. रीतिका ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से पीएचडी की है और सात सालों तक आईआईटी दिल्ली में अध्यापन कर चुकी हैं। रीतिका के शोधकार्य ने भारत की अनेक नीतियों पर बहस को जन्म दिया है। रीतिका कई अखबारों, मैग्जीन और बेबसाइटों के लिए नियमित लेख भी लिखती रहती हैं।

किताब एक नजर में


किताब शुरू होती है अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की प्रस्तावना से जिसमें वह आधार के मकसद को बताते हैं। उसके स्वैच्छिक से अनिवार्य होने की कहानी को बताते हैं। आधार की समस्याओं और इस किताब के बारे में जानकारी देते हैं। इस किताब के बारे में प्रो. द्रेज लिखते हैं- ‘इस विचोरोत्तेजक पुस्तक में रीतिका के लेखों को पढ़ने पर आप खुद महसूस करेंगे कि आपने एक संग्रहणीय पुस्तक हाथ में उठाई है इस किताब में रीतिका खेड़ा के कई लेख हैं जो मीडिया में छपे हैं। ये लेख साल 2012 से मार्च 2019 के बीच के हैं। आधार किसलिए आया था ? उसका मकसद क्या था ? उसे लोगों के बीच कैसे पहुंचाया गया? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस किताब में मिल जायेंगे


आप क़िताब में जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, आपको आधार के उस स्याह पक्ष का पता चलता है जिसे सरकार, जनता से दूर रखती है।आधार' इसलिए बनाया गया था ताकि लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, बिचौलिये खत्म हों, भ्रष्टाचार खत्म हो। ऐसा तो कुछ हुआ नहीं, लेकिन कई सारी नई समस्याएं लोगों के सामने गईं। कई राज्यों में लोगों को राशन नहीं मिला क्योंकि उनका राशन कॉर्ड आधार से लिंक नहीं था। जिनका आधार लिंक था, कई बार उनको भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता। इस वजह से कई लोगों की मौत भी हुई। तथ्य, कहानियां और आंकड़े सभी आपको इस किताब में मिल जाएंगे।

डा. रीतिका इस किताब में लिखती हैं- आधार हमेशा से स्वैच्छिक था लेकिन उसे इस तरह प्रचारित किया गया कि आधार बहुत जरूरी है। अगर आपके पास आधार नहीं है, तो आपका जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा। कई उदाहरण ऐसे हैं, जो बताते हैं कि आधार आने से लोगों का जीवन खराब ही हुआ। पहले एक बुजुर्ग का पैसा डाकिया गांव देने आता था। अब उसे बैंक जाना पड़ता है और अगर बायोमैट्रिक सिस्टम ने सही तरह से काम नहीं किया, तो उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है। 

किताब आगे बताती है कि आधार आने से भ्रष्टाचार कम हुआ है और ही बिचौलिये भागे। अगर कुछ हुआ तो सिर्फ यह कि डाटा को जुटाया गया। आधार प्रोजेक्ट से सरकार के पास हर किसी की प्रोफाइल है। अब वो हर व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी रखती है। आप क्या खा रहे हैं? कहां जा रहे हैं? किस से बात कर रहे हैं? पैसों का लेन-देन। सब कुछ आपने सरकार को आधार के जरिये बता दिया है। क्या ये निजता का हनन नहीं है? क्या ये हमारी जिंदगी में ताकझांक नहीं है?

डाटा क्या कर सकता है ? इस बारे में डा. रीतिका दो व्यक्तियों का जिक्र इस किताब में करती हैं। एक हैं एडवर्ड स्नोडेन और दूसरे क्रिस वाइली। इन दो लोगों ने अलग-अलग समय पर लोगों को बताया कि कैसे निजी जानकारी का इस्तेमाल किया जा सकता है। वो आशंका जाहिर करती हैं कि आधार से हमारे देश का डाटा बहुत बड़ा हो गया है और इसका उपयोग किया जा रहा है। वो बताती हैं कि कंपनियां इसका उपयोग कर रही हैं, वह एयरटेल पेमेंट्स का उदाहरण देती हैं। 

रीतिका किताब में बार-बार इस बात पर जोर देती हैं कि लगातार 10 सालों से सरकार हमें बता रही है कि आधार जीने के लिए, गरीबों तक हक पहुंचाने के लिए जरूरी है। लेकिन जिस मकसद का हवाला देकर सरकार इसे लाई थी, वो आधार के बिना भी हो सकता था। इस बारे में रीतिका छत्तीसगढ़ और झारखंड का उदाहरण देती हैं। कुल मिलाकर किताब में साफ-साफ लिखा है कि आधार कार्ड से लोगों का उद्धार तो बिल्कुल भी नहीं हुआ है।

क्यों पढ़ें इस किताब को?


आधार से आजकल हर कोई जुड़ा हुआ है। उससे क्या नुकसान हैं? उससे क्या समस्याएँ रही हैं? वो हमारी निजता का हनन कैसे है? ये सब जानने के लिए आपको ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। तथ्यों और आंकड़ों से भरी पड़ी है ये किताब। जानकारी और जागरूकता के लिए आपको इस किताब को पढ़ना चाहिए। आप ज्यों-ज्यों इस किताब को पढ़ेंगे, आपके मन में कई सवाल आएंगे। आप आधार कार्ड के बारे में सोचना शुरू कर देंगे और यही उद्देश्य है इस किताब का। किताब में अगर मैं खामी की बात करूं तो वर्तनी कहीं-कहीं पर गड़बड़ है। लेकिन इतनी महत्वपूर्ण जानकारी वाली किताब में ऐसी त्रुटियों को अनदेखा किया जा सकता है।

आखिर में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि आधार पर रीतिका खेड़ा ने बेहतरीन किताब लिखी है। ये किताब आधार की पूरी कहानी को बताती है। उसके आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक पक्षों से पाठक को रूबरू कराती है। रीतिका इस किताब में बताती हैं कि वह आधार के बारे में सोचती भी नहीं, अगर उनके पास साल 2010 में आधार से जुड़े दो अधिकारी नहीं आते। सो, अगर आप आधार को सुधार समझते हैं तो आपको यह जानने के लिए यह किताब पढनी चाहिए कि आधार से किसका उद्धार हुआ है?

  • किताब- आधार से किसका उद्धार
  • लेखिका- रीतिका खेड़ा
  • प्रकाशक- सार्थक राजकमल प्रकाशन का उपक्रम
  • कीमत- 125 रुपए।

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