Monday 13 April 2020

लाकडाउन के बीच नर्मदा परिक्रमा

देश की सबसे बड़ी धार्मिक परिक्रमा- नर्मदा परिक्रमा का रियलिटी चेक
  • शुभम शर्मा 
"पहले लोग चाय के लिए पूछ लेते थे कि बाबा चाय पी लीजिए. लेकिन अब लोग डरे हुए हैं. मैं और मेरा एक साथी अभी नर्मदा जी की परिक्रमा कर रहे हैं और कोरोना के कारण पुलिस की एक
पिकअप हमारे पीछे चल रही है." यह कहना है मध्यप्रदेश के मण्डला जिले के निवासी विनय तिवारी का जो लगभग तीन हजार किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा पूरी करने की ओर हैं और अभी मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में पैदल परिक्रमा कर रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना के कारण देश की सबसे बड़ी धार्मिक परिक्रमा कही जाने वाली नर्मदा परिक्रमा काफी प्रभावित हुई है. इस परिक्रमा की जद में तीन राज्य आते हैं, जिनमें मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के जंगल और ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं. देश में इस समय सबसे ज्यादा कोरोना के मामले महाराष्ट्र राज्य में सामने आये हैं और नर्मदा परिक्रमा करने वाले लगभग साठ फीसदी श्रद्धालु लोग इसी राज्य से आते हैं.

लेकिन इन लोगों की खोज-खबर प्रशासन ने अभी तक नहीं ली है. इन लोगों कुछ जगहों पर प्रशासन की मदद जरूर मिली है लेकिन ज्यादातर लोग खुद के भाग्य और स्वयंसेवी संगठनों और समाज-सेवकों के हवाले हैं. नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करने वाले लालाराम बताते हैं कि वह परिक्रमा क्षेत्र में पड़ने वाले मण्डला से नरसिंहपुर तक के क्षेत्रों में सेवा कार्य करते हैं. वे बताते हैं कि उनके संपर्क में लगभग बीस से पच्चीस ग्रुप हैं जो परिक्रमा में लगे हुए हैं जिनमें से लगभग आठ से दस ग्रुप खण्डवा में ओंकारेश्वर मंदिर के पास स्थित आश्रम में रूके हुए हैं.

दरअसल, इस परिक्रमा में एक ग्रुप में दो से तीन लोग पैदल-पैदल नर्मदा किनारे-किनारे चलते हैं. यह परिक्रमा नर्मदा के उत्तर तट से शुरू होती है जिसके बाद गुजरात के भरूच जिले में नावडी (नाव) पर सवार होकर परिक्रमा करने वाले लोग दक्षिण तट पर चलते-चलते परिक्रमा पूरी करते हैं. परिक्रमा
में आदि शंकराचार्य के गुरु की भूमि खण्डवा में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ओम्कारेश्वर में नर्मदा जल चढ़ा कर यह परिक्रमा पूरी मानी जाती है.

जो ग्रुप खण्डवा में रूके हुए हैं, वह इसीलिए ही रूके है क्योंकि उनकी परिक्रमा पूरी हो गई है और वहां ओंकारेश्वर मंदिर के गेट लॉकडाउन के कारण बंद होने के कारण वह लोग फंस गए हैं. अब जब तक लॉकडाउन खत्म नहीं होगा और मंदिर के गेट खुलेंगे नहीं तब तक वह दर्शन करके और जल चढ़ाकर अपने घर नहीं जा सकेंगें.

यह परिक्रमा हिंदू धर्म की बड़ी परिक्रमा मानी जाती है, अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा नदी को वैराग्य की नदी माना जाता है, यह पश्चिम में बहकर गुजरात में खंभात की खाड़ी में गिरती है. नरसिंहपुर जिले के बरमान खुर्द में रहने वाले और दो बार नर्मदा परिक्रमा कर चुके धनराज चौकसे बताते हैं कि, "हम वर्षो से बरमान में सेवा कार्य कर रहे हैं. मेरी नजर में नर्मदा परिक्रमा लगभग आठ सौ के करीब लोग लगाते हैं. लेकिन सरकार के पास उनका आंकड़ा नहीं है. अभी क्योंकि लॉकडाउन के कारण सभी जिलों में बाहरी लोगों का प्रवेश बंद हैं, इसीलिए परिक्रमा वासी जहां थे, वहीं रूके हुए हैं लेकिन अब क्योंकि ग्रामीण इलाकों में प्रशासन की वैसी सख्ती नहीं है, इसीलिए कुछ लोग अभी भी चले जा रहे हैं.”

अभी नरसिंहपुर के कलेक्टर की विशेष अनुमति से चार परिक्रमा करने वाले महाराष्ट्र के रहवासियों को गाड़ी करके वहां उनके घर भिजवाया गया है.

यह है परिक्रमा का रूट

नर्मदा नदी अनुपपुर जिले के अमरकंटक में मैकल पर्वत से निकलती है, जहां से वह होशंगाबाद, जबलपुर में धुआंधार जलप्रपात बनाते हुए बाद में गुजरात के भरूच जिले में खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में मिलती है. यह भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं बड़ी नदी है. इसकी कुल लंबाई 1312 किलोमीटर है जिसकी परिक्रमा यानि दो चक्कर श्रद्धालु करते हैं. नर्मदा पर इस समय तीन बांध बरगी बाँध(जबलपुर), सरदार सरोवर बांध (नर्मदा जिला) और इंदिरा सागर बांध (खण्डवा) बने होने के कारण परिक्रमा की लंबाई अब और बढ़ गई है. परिक्रमा करनेवालों को नदी के किनारे-किनारे ही चलना होता है, इस दौरान वह नदी को भी नहीं लांघते हैं.

गुजरात के बड़ोदरा जिले के तरसाली इलाके में रहने वाले राकेश कुमार बताते हैं, "विमलेश्वर इलाके में परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु हमारे संपर्क में हैं. वह अधिकतर बाबा केवलानंद भक्त मंडल जैसी संस्थाओं की मदद से धर्मशालाओं और आश्रम में रूके हुए हैं. हम उनकी सेवा चाकरी कर रहे हैं. हम जानते हैं कि परिक्रमा करने वाले अधिकतर लोग मांगने वाले बाबा लोग होते है, इसीलिए वह भूखे न सोए और उन्हें कोई मुसीबत न सहने पड़े, इसीलिए हम मां नर्मदा की कृपा से उनके लिए नारेश्वर आदि जगहों से खाने की जुगत कर रहे हैं. वहीँ कुछ धनी परिवार के लोग भी परिक्रमा करते हैं. अब क्योंकि लॉकडाउन में होटल-दुकानें तो बंद हैं इसीलिए वह भी इन्हीं जगह भोजन कर रहे हैं.”

कोरोना के इस संकट के दौर में जब “सोशल डिस्टेंसिंग” का इतना हंगामा है, उस समय नर्मदा परिक्रमा करनेवालों की आस्था के लिए भी एक धर्म-संकट खड़ा हो गया है. वे परिक्रमा छोड़ नहीं

सकते हैं और लाकडाउन के कारण परिक्रमा करना संभव भी नहीं रह गया है. परिक्रमा में लगे श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ टिके हैं लेकिन अब जब लाकडाउन 15 दिनों के लिए और बढ़ाये जाने की चर्चा है, वे आखिर कब तक इंतज़ार कर पायेंगे?   

(शुभम शर्मा भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं. भोपाल के रहनेवाले हैं. उन्हें पढ़ना, सुनना, घूमना पसंद है.)

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