मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दावा की उर्फ़ सफाई अभियान में करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाने के बावजूद दिल्ली में यमुना नदी से नाला कैसे बनी हुई है?
- ऋषभ देव
इस समय पूरी दुनिया
कोरोना वायरस से लड़ रही है. रोज हजारों की मौत हो रही है. अब तक इसकी कोई वैक्सीन
और दवा नहीं मिली है. इससे बचने के लिए पूरी दुनिया के अधिकांश देशों ने घर बैठने
का फैसला किया है. भारत में भी 24 मार्च से 21 दिन का लॉकडाउन चल रहा है और उसके और
आगे बढ़ने के आसार हैं.
लेकिन सबके घर में होने,
फैक्ट्रियां और सड़क पर गाड़ियों के बंद होने और बीच में उत्तर भारत में
कई बार
बारिश से हवा साफ़ हो गई है, पर्यावरण की स्थिति बेहतर हुई है. इसका असर भी दिखाई
पड़ रहा है. जालंधर से हिमालय का खूबसूरत धौलाधार रेंज दिखाई दे रहा है. दिल्ली
जैसे शहर में अब आसमान में चांद और तारे दिखाई दे रहे हैं.
यही नहीं, भारत सरकार के
जल शक्ति मंत्रालय ने एक ट्वीट किया है जिसमें दिल्ली में यमुना नीली दिखाई दे रही
है. लॉकडाउन के बहाने ही सही, यमुना साफ तो हो रही है! मुश्किल वक्त में ही सही, इस अच्छी खबर के चलते उन दिनों की
बात करते हैं जब दिल्ली में यमुना काली रहती थी या आने वाले दिनों की, जब हम
दोबारा यमुना को गंदा कर देंगे क्योंकि हमने नदियों को गन्दा करना ही तरक्की का
पैमाना बना लिया है.
यमुना हमारे देश की सबसे
पवित्र नदियों में से एक है. यमुना की यात्रा शुरू होती है उत्तराखंड के यमुनोत्री
से जो यमुना का उद्गम स्थल है. यमुना पहाड़ों से होते हुए मैदानी इलाकों में आती है.
देहरादून से सहारनुपर होते हुए हरियाणा पहुंचती है और फिर दिल्ली में प्रवेश करती
है.
इसके बाद वह पहुँचती है राजधानी
दिल्ली जहाँ 22 किलोमीटर के सफर के बाद चंबल होते हुए इलाहाबाद में जाकर गंगा से
मिलती है. अपने 1376 किमी. के सफर में यमुना दिल्ली में सिर्फ 22 किमी. ही बहती है.
लेकिन इससे अधिक अफ़सोस की बात क्या होगी कि जहां यमुना सबसे कम दूरी तक बहती है, वहीं उसे सबसे ज्यादा गंदा किया जाता है.
यमुना बैराज के
बाद नाला बनती एक नदी
यमुना, दिल्ली में जहां पहली बार प्रवेश करती है, उस
जगह को यमुना बैराज कहते हैं. यमुना बैराज उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद इलाके में है.
यहां यमुना दो तरह से देखी जा सकती है. एक यमुना बैराज के इस पार और दूसरी उस पार.
यमुना बैराज पर उसका बहुत सारी पानी रोक लिया जाता है. यहां से ये सारा पानी
दिल्ली के लोगों के इस्तेमाल के लिए चला जाता है.
बराज के दूसरी तरफ वो
यमुना है जिसको देखकर दुख और पीड़ा होती है. यमुना बैराज के इस पार यमुना धुंधली-सी
होने लगती है क्योंकि चारों तरफ आपको कूड़ा तैरता हुआ नजर आता है. कोई यहां राख
डालता है तो कोई अपने घर का पुराना सामान फेंकता है. ये दृश्य यहां बहुत आम है.
बरसात को छोड़ दें तो इस जगह पर यमुना कभी भी साफ नहीं दिखाई देती है बल्कि एक
गन्दा नाला बन जाती है.
शायद यहां पानी कम इसलिए
ही छोड़ा जाता है ताकि लोग इसे गंदा कर सकें. यहां बहुत कम पानी दिखाई देता है
लेकिन कुछ दूर के बाद यमुना फिर से पानी से भर जाती है. थोड़े ही आगे चलने पर एक
बड़ा-सा नाला यमुना में मिलता है, नजफगढ़ नाला! इस
नाले से उत्तर-पश्चिम दिल्ली का पूरा मैला यमुना में उड़ेल दिया जाता है. यहां से
यमुना के नाला बनने की शुरूआत हो जाती है.
दिल्ली की यमुना को सबसे
ज्यादा गन्दा यही नाले करते हैं. दिल्ली में 22 किलोमीटर की इस यात्रा में यमुना
में लगभग 22 बड़े नाले गिरते हैं. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो ये
नाले हर रोज दिल्ली की यमुना नदी में 370 करोड़ लीटर मैला पानी छोड़ते हैं.
मैं दिल्ली में रहते हुए लगभग
दो बार यमुना बैराज गया हूं. एक बार बरसात के समय और एक बार और सर्दियों के समय.
दोनों बार की यमुना में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई देता है. इस यात्रा में यमुना
बैराज पर मिले स्थानीय निवासी सुरेश भारद्वाज ने बताया कि आपको यमुना को अगर साफ
देखना है तो बारिश के समय आइए। बस तभी यमुना साफ और सुंदर दिखाई देती है।
वहीं सिग्नेचर पुल के पास
मिले कालीचरण अहिरवार अपनी याद्दाश्त पर जोर डालते हुए कहते हैं कि पहले ये नाला इतना बड़ा नहीं था जिससे यमुना कम
गंदी होती थी. शायद 1976 या 1978 में इसे गहरा और बड़ा किया गया, तब से यमुना
ज्यादा ही गंदी हो गई है.
कभी पानीदार थी
दिल्ली
दिल्ली में यमुना हमेशा
से ऐसी नहीं थी. इस बार में विस्तार से बताती है पर्यावरण हितचिंतक और पत्रकार
सोपान जोशी की किताब ‘जल, थल, मल’. इस किताब में उन्होंने लिखा है कि अरावली से
आने वाली कई छोटी-बड़ी बरसाती नदियां यमुना में मिलती थीं. ये नदियां कई कुओं, बावड़ियों और तालाब से जुड़ी हुईं थीं. तब दिल्ली
को बाग-बगीचों का शहर कहा जाता था. इस शहर के कुछ इलाके हैं जिनके नाम पानीदार
होने की वजह से पड़े थे. इनमें हौज खास, मोती बाग, धौल कुआं, झील खुरेजी, हौज रानी, पुल बंगश, खारी बावली, अठपुला, लाल कुआं, हौजे शम्सी, पुल मिठाई, दरियागंज, बारहपुला, नजफगढ़ झील, पहाड़ी धीरज, पहाड़गंज, सतपुला और यमुना बाजार जैसे इलाके प्रमुख हैं.
सोपान जोशी लिखते हैं कि चौमासे की बारिश
के बाद अरावली से बह कर आने वाली नदियां फैलती थीं. इनसे आसपास का भूजल बढ़ता था जो
कुओं और तालाबों में पहुंचता था. गर्मियों में जब नदियों में पानी कम हो जाता था
तो ये अगल-बगल के भूजल से पानी रिसता हुआ उनमें वापस आता था. इस लेन-देन से दिल्ली
पानी के मामले में अमीर रहा. लेन-देन आज भी है, शहर नदी से पानी
लेता
है और मैला और गन्दा पानी उसे लौटा देता है. अरावली से आने वाली कई नदियां अब
नालों में तब्दील हो गई हैं. कुछ को पाटकर भवन और सड़कें बना दी गई हैं. दिल्ली का
चमचमाता नया एयरपोर्ट तीन तालाबों की जमीन पर बना हुआ है.
ऐसा नहीं है कि यमुना को
साफ करने के लिए कोई काम नहीं हुआ है. यमुना के लिए दशकों से योजनाएं चल रही हैं
और पैसे आवंटित हो रहे हैं. लेकिन यमुना में गंदगी जस की तस बनी हुई है. यमुना की
गंदगी पहली बार चर्चा में 1985 में आई जब पर्यावरणविद और वकील एम.सी. मेहता ने
दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका पर 1989 में दिल्ली
हाईकोर्ट ने यमुना को साफ करने के निर्देश दिए थे. तब से यमुना पर योजनाएं बनती जा
रही हैं और कागजों पर सफाई का काम जारी है.
कागजों में ही
रही योजनाएं
यमुना को साफ करने के लिए
कई यमुना एक्शन प्लान भी बन चुके हैं. इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार, पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में लागू हुआ था
जिस पर करीब 680 करोड़ रुपए खर्च हुए. वर्ष 2004 में दूसरा यमुना एक्शन प्लान बना.
इसकी लागत 624 करोड़ रुपए तय की गई. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना की सफाई पर
दिल्ली जल बोर्ड ने 1998 से 1999 तक 285 करोड़ रुपए और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपए खर्च किए. वहीं दिल्ली राज्य
औद्योगिक विकास प्राधिकरण (डीएसआईडीसी) ने 147 करोड़ रुपए अलग से खर्च किए.
सरकार का दावा है कि इन
एक्शन प्लान से 75,325 लाख लीटर सीवर के गन्दे पानी का शोधन किया जा रहा है. लेकिन
दिल्ली में यमुना को देखने के बाद लगता नहीं है कि कहीं भी कुछ काम हुआ है. सोपान जोशी कहते हैं कि अगर देश में अब तक किसी नदी को साफ हो
जाना चाहिए था तो वो यमुना है. साल 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ उद्योगों
की अर्जी पर यमुना के किनारे से झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने के आदेश दिए थे. इन
उद्योगों का कहना था कि इन बस्तियों की वजह से यमुना में प्रदूषण हो रहा है. कोर्ट
के इस आदेश से 20,000 परिवारों को इन झुग्गी-झोपड़ियों से हटाकर बवाना में पुनर्वास
कर दिया गया.
इसके बाद यमुना में
प्रदूषण कम होना चाहिए था लेकिन प्रदूषण बढ़ता ही गया। दरअसल, ये बस्तियां तो यमुना
को बहुत कम गंदा करती थीं. यमुना की सफाई के नाम पर एक लाख लोगों को बेघर करके वो
जमीन अक्षरधाम मंदिर, मेट्रो और राष्ट्रकुल
खेलगांव को दे दी गई। “जल थल मल” के
अनुसार, राष्ट्रीय संरक्षण योजना
में कुल 172 शहर आते हैं जिनमें मार्च 2010
तक 5,148 करोड़ खर्च हुए हैं. इसमें लगभग 13 फीसदी सिर्फ दिल्ली पर खर्च हुआ है जोकि 650 करोड़ बैठता
है.
इस योजना का एक चौथाई
पैसा एक नदी पर खर्च हुआ है- वह है यमुना. लगभग 1200 करोड़ तो दिल्ली में ही यमुना
को साफ करने के लिए खर्च हुए जबकि गंगा को इस योजना से मिले सिर्फ 932 करोड़ रुपए.
इतना पैसा और संसाधन खर्च होने के बावजूद यमुना साफ होती नहीं दिखाई देती
है. रेमन
मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह ने बीबीसी हिन्दी के लिखे लेख में यमुना
के बारे में लिखा है,” ये यमुना नदी की नहीं, यमुना नाले की कहानी है. जब दिल्ली
के 22 किलोमीटर के सफर में यमुना इतनी गंदी हो जाती है तो बाकी जगह का क्या हाल
होगा?”
मजे की बात यह है कि इस
समय भी यमुना को साफ करने के लिए 11 योजनाएं चल रही हैं. 20 दिसंबर 2018 की जल मंत्रालय
की एक प्रेस विज्ञप्ति है जिसमें दिल्ली में यमुना को साफ करने के लिए चल रही 11
योजनाओं पर 2361.08 करोड़ रुपए स्वीकृत होने की जानकारी है. नदी के बारे में
पर्यावरणविद अनुपम मिश्र बहुत अच्छी बात कह गये हैं. अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘हमारी नदी कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो? साल में एक बार जरूर बारिश के समय खुद-ब-खुद
साफ हो जाती है. लेकिन उसके बाद हम फिर से उसे गंदा कर देते हैं. इसलिए हमें नदी
को साफ करने की बजाय उसे गंदा न करने के बारे में सोचना चाहिए.‘
एक बार फिर से दिल्ली में
यमुना साफ है. शायद ये दिल्ली में पहली बार होगा कि जब बरसात के मौसम के अलावा भी
यमुना साफ है. वजह है कोरोना वायरस की वजह से आयद लॉकडाउन. लेकिन अब जरूरत है
यमुना को गंदा न करने की. ये यमुना आपकी, हमारी जीवनदायिनी
है.
अगर हम प्रकृति से खिलवाड़
करेंगे तो प्रकृति भी संतुलन के लिए कुछ न कुछ करेगी. कभी वो आपदा के रूप में होगा
तो कभी कोरोना जैसे खतरनाक वायरस के रूप में.
ऋषभ भाई बहुत बेहतरीन वर्णन किये हैम
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