डॉक्युमेंट्री ये दिखाती है कि वहाँ 13वें संविधान संशोधन में एक छोटी सी कमी कैसे अश्वेत अमेरिकियों पर अत्याचार का औज़ार बन गई
जागृति राय
संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर उसके अधिकार क्षेत्र के अधीन किसी भी जगह गुलामी और अनैच्छिक सेवा, किसी अपराध के लिए पूर्ण रूप से दोषी ठहराए गए अपराधी को सजा देने के अलावा कहीं मौजूद नहीं होगा।
-अमेरिका का 13वां संविधान संशोधन
साल 1865 में अमेरिका ने 13वें संविधान संशोधन के जरिए गुलामी (दासता) को खत्म करने का प्रावधान किया। यह संशोधन अमेरिका में पांच साल चले गृहयुद्ध का परिणाम था। लेकिन जिस दास प्रथा को खत्म करने के लिए यह संशोधन किया गया, वह खत्म होने की बजाय वैधानिक रूप से अमेरिका के संघीय ढांचे में दाखिल हो गया। इसकी वजह बनी 13वें संविधान संशोधन की परिभाषा। इसकी परिभाषा में गुलामी को खत्म करने का प्रावधान तो किया गया, लेकिन किसी अपराध की सजा के रूप में इसे मान्यता दे दी गयी। इस तरह एक तरफ़ गुलामी और गुलामों के खरीद-फरोख्त की वैधानिकता तो खत्म की गयी, लेकिन दूसरी तरफ सजा के रूप में उसे कानूनी वैधता दे दी गयी।
साल 2016 में नेटफ्लिक्स पर आयी 13th नामक डॉक्यूमेंट्री इस मुद्दे को तथ्यों, साक्ष्यों, गवाहों और तर्कों के आधार पर लोगों के सामने रखती है। डॉक्युमेंट्री अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की आवाज में कुछ आंकड़ों के साथ शुरू होती है। इन आंकड़ों में अमेरिका में रह रही विश्व की कुल आबादी की तुलना वहां की जेलों में बंद आबादी से की गई है। डॉक्युमेंट्री में बताया गया है कि अमेरिका विश्व की कुल आबादी के पांच प्रतिशत लोगों का घर है, लेकिन यह विश्व के जेलों में बंद कुल आबादी में पच्चीस प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। पूरी डॉक्युमेंट्री साक्षात्कार के रूप में आगे बढ़ती है। बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत करके परत दर परत विषय की गहराई में उतरा जाता है।
यह डॉक्युमेंट्री मूलतः सदियों पुराने गुलामी का चलन खत्म करने वाले 13वें संविधान संशोधन की परिभाषा में कमी से लेकर वर्तमान में अमेरिका की जेलों में लगातार बढ़ रहे कैदियों की बात करती है। इसमें वर्ष 1970 के बाद से अमेरिका की जेलों में अचानक बढ़ी कैदियों की संख्या और उसके पीछे की वजहों को तलाशा जाता है। डॉक्युमेंट्री अमेरिका में मौजूद रंगभेद की धारणा और उसके आधार पर भेदभाव के लिए वहां की राजनीति, मीडिया की भूमिका, नीति-निर्धारकों और शक्तिशाली व्यावसायिक धड़ों की लॉबी को कटघरे में खड़ा करती है।
क्या खास बनाता है इस डॉक्युमेंट्री को
डॉक्युमेंट्री आंकड़ों के साथ शुरू होती है और उसके ही माध्यम से हर बात का खाका खींचते हुए बढ़ती है। उदाहरण के लिए डॉक्युमेंट्री में बार-बार अमेरिका की जेलों में सामूहिक रूप से भरे जाते रहे कैदियों (Mass Incarceration) का जिक्र किया जाता है। डॉक्युमेंट्री 1970 के दशक से लेकर साल 2014 तक अमेरिका की जेलों में बंद कैदियों के आंकड़ों और उसके ऊपर जाते ग्राफ से इस बात को साबित करती है। इसी तरह डॉक्युमेंट्री अमेरिका में होने वाले अपराधों और उनकी सजा में अश्वेत लोगों के साथ होने वाले भेदभाव की बात भी करती है। इसमें यह दिखाया गया है कि अमेरिका की आबादी में सिर्फ 6.5 प्रतिशत हिस्सेदारी अश्वेत नागरिकों की है और वहाँ की जेलों में बंद आबादी में उनकी हिस्सेदारी 40.2 प्रतिशत यानी काफ़ी ज़्यादा है।
13वें संविधान संशोधन की परिभाषा में एक छोटी सी कमी कैसे अमेरिका में अश्वेत नागरिकों से भेदभाव की नई जमीन तैयार करता है और किस तरह वहाँ का मीडिया और नीति-निर्धारक इसे अपने हक़ में इस्तेमाल करते हैं, डॉक्युमेंट्री देखते समय यह सब जानकारी चौंकाने वाली होती है।
यह डॉक्युमेंट्री कई मौकों पर तथ्यों और उनके पीछे की सच्चाइयों से हैरान कर जाती हैं। जैसे अमेरिका में ड्रग्स के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा कानून और निजी जेल संस्थाओं के बीच संबंध को जानना किसी झटके से कम नहीं होता। यह डॉक्युमेंट्री आखिर तक दर्शकों को बांधे रखती है और अपने बेहतरीन शोध व सटीक आंकड़ों की मदद से एक जटिल मुद्दे को बहुत प्रभावी और सरल तरीके से समझाती है।
कौन हैं डायरेक्टर
एवा डू वर्ने डॉक्युमेंट्री की डायरेक्टर हैं। वह खुद भी अफ्रीकी-अमेरिकी मूल की हैं। उनकी पहली डॉक्यूमेंट्री साल 2007 में आयी ‘दिस इज द लाइफ’ थी। साल 2012 में आयी डॉक्युमेंट्री ‘मिडिल ऑफ नो व्हेयर’ उनकी पहली फीचर डॉक्युमेंट्री थी। इस डॉक्युमेंट्री के लिए उन्हें सनडांस डॉक्युमेंट्री फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का अवार्ड मिला। यह अवार्ड किसी भी अफ्रीकी-अमेरिकी महिला को मिलने वाला पहला अवार्ड था। 13th से पहले साल 2014 में एवा ने ‘सेलमा’ डायरेक्ट की थी।
एवा की अभी तक डायरेक्ट की गई सभी डॉक्युमेंट्री में खास बात यह है कि वे असल घटनाओं से प्रेरित हैं। वो चाहे ‘सेलमा’ हो या ‘दिस इज द लाइफ’ या फिर ‘आई विल फॉलो’, सभी सत्य घटनाओं से प्ररित हैं।
क्यों देखी जानी चाहिए ‘13th’
अगर नस्ल और रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव के इतिहास से आप थोड़ा बहुत भी वाकिफ हैं तो यह डॉक्युमेंट्री उस भेदभाव के आधुनिक दौर से आपको रूबरू कराती है। इसके लिए डॉक्युमेंट्री मिशेल अलेक्जेंडर, ऐंजला डेविस और वैन जोंस जैसे लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुखर और प्रभावी तर्कों व तथ्यों को एक के बाद एक जोड़ती चली जाती है।
13वें संविधान संशोधन के बाद भी अपराध के लिए दोषी पाये गये लोगों के लिए पट्टा का कानून (Convict Leasing), साल 1876 से 1965 तक चलने वाला जिम क्रो व्यवस्था या उसके बाद से चले आ रहे जेलों में सामूहिक रूप से कैदियों को भरते जाना, इन सभी व्यवस्थओं ने किस तरह अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाया, यह जानने के लिए एक बार यह डॉक्युमेंट्री जरूर देखी जानी चाहिए। वहीं व्यावसायिक लॉबी, राजनीति और कानून कैसे एक-दूसरे से जुड़े हो सकते हैं, यह जानना डॉक्युमेंट्री देखने का हासिल जैसा होता है।
अमेरिका के क्लासिक डॉक्युमेंट्री में शुमार डेविड वार्क ग्रिफिथ की ‘द बर्थ ऑफ ए नेशन’ और 1970 से 1990 तक के दशक के राजनीतिक दृश्यों का इस डॉक्युमेंट्री में इस्तेमाल इसकी अपील को और आकर्षक बनाता है। सो इस लॉकडाउन में अगर आप अमेरिकी समाज, उसके इतिहास और एक संविधान संशोधन से अश्वेतों पर हुए अत्याचार को जानना-समझना चाहते हैं तो आपको 13th जरूर देखनी चाहिए। यह नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है। इसके अलावा यूट्यूब के नेटफ्लिक्स चैनल पर यह फ्री में देखी जा सकती है।
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