Friday 10 April 2020

यूएन का कहना है कि कोरोना ने दुनिया को एक नए सिरे से सोचने को मजबूर किया है

संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘साझा जिम्मेदारी, वैश्विक एकजुटता’ रिपोर्ट कोरोना से निपटने की चुनौती को सभी देशों की मिलीजुली लड़ाई बताती है 

  • अनुराग पांडेय


अनुराग पाण्डेय 
कोरोना वायरस संयुक्त राष्ट्र संघ के पिछले 75 सालों के इतिहास का सबसे विचित्र स्वास्थ्य संकट है। इसने तकरीबन पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। यह लोगों की जान ले रहा है और दुनिया के ज़्यादातर देशों में कामकाज ठप्प पड़ा है। लेकिन कोरोना सिर्फ स्वास्थ्य के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए एक चुनौती बनकर उभरा है। कोरोना वायरस यानी कोविड-19 समाज के मूल पर हमला कर रहा है। 

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( आईएमएफ) के एक अनुमान के मुताबिक, अगर दुनिया ने जल्दी ही कोरोना वायरस के संक्रमण का समाधान नहीं किया और कोरोना संकट काल लंबा चला तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को साल 2008-09 की मंदी के दौर से भी बुरी हालत में पहुँचा सकता है। 

बड़े फ़ैसलों की ज़रूरत

इस स्वास्थ्य संकट का सामना करने के लिए हमें अधिक रचनात्मक होना पड़ेगा और उसके प्रभावों पर बारीक नज़र रखने की भी जरूरत पड़ेगी। हमें कुछ बड़े फैसले लेने होंगे जिससे हम इस वायरस के संक्रमण और उससे होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकें या नुकसान सीमित कर सकें। कोई भी देश इस समस्या से पूरी तरह अकेले नहीं निपट सकता क्योंकि हमारे आर्थिक और वैश्विक हित साझा हैं। 

इसी के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ ने  "साझा जिम्मेदारी, वैश्विक एकजुटता" नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य इस महामारी से निपटने के लिए उठाये जा सकने वाले कुछ फौरी कदमों को सुनिश्चित करना है, जिससे इस महामारी के संक्रमण को ना सिर्फ रोका जा सके बल्कि इससे होने वाले आर्थिक और सामाजिक नुकसान को भी कम किया जा सके। इस रिपोर्ट में महिलाओं, बच्चों, निम्न आय वर्ग के मजदूरों, युवाओं और कमजोर तबकों के अतिरिक्त लघु और मध्यम उद्यमों पर इस महामारी से पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के लिए एक विस्तृत रोडमैप की जरूरत पर भी बल दिया गया है।

गरीब देशों की मदद करें अमीर देश

आज वक़्त की माँग है कि सभी देशों और समुदायों को मिलकर, चाहे वे निजी या सार्वजनिक क्षेत्र हों या फिर आम नागरिक, इस चुनौती का सामना करना चाहिये खासकर सम्पन्न देशों से यह उम्मीद की जाती है कि वे ग़रीबी और इस महामारी से प्रभावित देशों को आर्थिक और तकनीकी सहयोग सुलभ करायें। सबसे पहले सभी देशों को स्वास्थ्य के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने की जरूरत है और कुछ तात्कालिक उपायों को अपनाने की आवश्यकता है। इनमें लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण, उपचार, आवश्यक मेडिकल उपकरणों की पर्याप्त आपूर्ति और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की अधिक संख्या सबसे अहम हैं। इसके साथ ही साथ उन देशों में भी स्वास्थ्य तैयारियों की लगातार समीक्षा करने की जरूरत है, जहां इस महामारी का प्रकोप सबसे कम है या इस महामारी से अब तक वे सुरक्षित हैं।

आर्थिक संकट से उबरना सबसे बड़ी चुनौती

इस महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए विश्व के सभी देशों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्लूएचओ) के निर्देशों का पालन करना चाहिए। डब्लूएचओ के निर्देशन में वैज्ञानिकों के आपसी सहयोग से इस महामारी के टीके की खोज और बिना भेदभाव के विश्व के सभी देशों तक इस टीके को उपलब्ध कराना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। 

हमारा दूसरा कदम इस महामारी से लाखों लोगों के सामने उत्पन्न होने वाले आर्थिक संकट से पार पाना होना चाहिए। सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों, कमजोर तबकों और दैनिक मजदूरों को प्रत्यक्ष लाभ पहुँचा कर हम उनको होने वाले नुकसान की कुछ हद तक भरपाई कर सकते हैं। 

साथ ही साथ स्वास्थ्य और बेरोजगारी से प्रभावित लोगों को बीमा का लाभ भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये। उद्योगों को दीवालिया होने से बचाना और लोगों के रोजगार की सुरक्षा करना भी इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है। साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना है कि गरीब और अविकसित देशों पर इन प्रयासों का कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े। 

दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद में 10 फ़ीसदी की वृद्धि इस समय की जरूरत है। विकासशील देशों के बिना इस लक्ष्य को पाना मुश्किल है, इसलिए विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार करना दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है।

बनानी होगी भविष्य की रूपरेखा

इस महामारी से सबक लेकर भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा बनाना हमारा तीसरा कदम होना चाहिए। मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था, गरीबी को सीमित करना, लैंगिक भेदभाव को मिटाना और सभी को स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध कराना हमारा मुख्य ध्येय होना चाहिए।पेरिस जलवायु सम्मेलन के समझौतों के लक्ष्यों को हासिल करके हम इस तरह के वैश्विक संकट से निपट सकते हैं। एजेंडा 2030 के अंतर्गत सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें और अधिक सार्थक प्रयासों की जरूरत है। सर्व-समावेशी और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजनाओं की रूपरेखा बनाकर हम भविष्य में इस तरह की चुनौतियों का सामना ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं।


कोरोना संकट के इस काल में संयुक्त राष्ट्र अपने सभी क्षेत्रीय संगठनों और सतत विकास के लिये अलग-अलग देशों में कार्य कर रहे अपने अन्य अंगों के  माध्यम से लोगों के जीवन में उम्मीद का दीया जलाए रखेगा, इसकी उम्मीद की जाना चाहिए। 

साथ ही, दुनिया की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक प्रयास होंगे, इसकी भी आशा करनी चाहिए। इस अभूतपूर्व संकट का सामना हम अपनी जिजीविषा, दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति और परस्पर सहयोग से ही कर सकते हैं। इसमें दुनिया के प्रत्येक नागरिक का सहयोग चाहिए होगा। कोरोना का हमला पूरी दुनिया पर है, सो ये हमारी सामूहिक लड़ाई है, किसी एक देश की नहीं।

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता के विद्यार्थी हैं और जन सरोकारों से जुड़े सभी विषयों में विशेष रुचि रखते हैं.) 

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