Monday 20 April 2020

अपने गीतों से लोगों के दिलों में आज भी ज़िंदा हैं मशहूर शायर शकील बदायूंनी

पुण्यतिथि पर विशेष 

शकील बदायूँनी और नौशाद की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा में संगीत और शायरी को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया  

  • हिमांशु पाण्डेय 

शकील बदायूंनी एक ऐसे शायर और गीतकार हैं जिनका नाम जुबां पर लाते ही संगीत प्रेमी उनके गीतों को गुनगुनाना शुरू कर देते हैं। ऐसा कहते हैं कि शायर पैदा तो होते हैं लेकिन कभी मरते नहीं। शकील बदायूंनी की शख्सियत ऐसे ही शायरों में शुमार होती है. उनकी शायरी और गीतों ने हिंदी सिनेमा को कोई तीन दशकों तक अपने जादू में बांधे रखा. 

3 अगस्‍त 1916 उत्‍तर प्रदेश के बदायूं जिले में जन्मे शकील बचपन से ही शायरी का शौक रखते थे। उनकी प्रारंभिक उर्दू-अरबी-फारसी-हिंदी की तालीम घर पर ही हुई। वर्ष 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय में दाखिला लिया। इसके बाद उन्‍होंने मुशायरों में हिस्‍सा लेने का सिलसिला शुरू कर दिया। 

अगला सफर था दिल्ली का। दिल्ली के किसी महकमे में उन्होंने बतौर सप्लाई ऑफिसर नौकरी की लेकिन अंदर के शायर को ये सब पसंद नही आया। 

फिल्मी दुनिया की शुरुआत 

शकील करीब चार साल तक नौकरी करते हुए दिल्ली में रहे। उनकी जिंदगी में 1944 के दौरान वो वक्त आया जब उन्होंने फिल्मों में लिखने की ठानी। उन्होंने फिल्मी गीतकार बनने के लिए नौकरी छोड़ी और सीधे मुंबई पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्‍होंने संगीतकार नौशाद साहब के साथ में अनेक मशहूर फिल्‍मों के लिए गीत लिखे। 

25 साल तक नौशाद के साथ काम 

इसके बाद जो कुछ हुआ वो बॉलीवुड में एक इतिहास जैसा है। शकील और नौशाद की जोड़ी ने 20 साल से ज्यादा वक्त तक साथ काम किया और कई बेहतरीन फिल्में दीं। दोनों ने दीदार, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुग़ल-ए-आजम, दुलारी, शबाब, गंगा जमुना और मेरे महबूब जैसी फिल्मों में साथ काम किया। इनके गानों में आज भी रोमांस और उसके दर्द को महसूस किया जा सकता है। शकील ने ज्यादातर नौशाद के साथ काम किया लेकिन उन्होंने कई दूसरे संगीतकारों की धुनों पर भी गीत लिखे। उन्होंने रवि और हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में भी काम किया। 

शकील बदायूंनी के लिखे कालजयी गीत 

ज़िंदाबाद...ज़िंदाबाद..ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद”, “बचपन की मोहबब्त को दिल से ना जुदा करना”, “मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोए”, “जब दिल से दिल टकराता है मत पूछिये क्या हो जाता है”, “नैन लड़ जईहें तो मनवा में खटक होइबे करी”, “ना जाओ सइंया छुड़ा के बइयां”, “जब चली ठंडी हवा जब चली काली घटा”, “कल रात
ज़िंदगी से मुलाकात हो गयी”, “हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं” कुछ ऐसे गीत हैं जो कालजयी हैं और शकील बदायूंनी की हमेशा याद दिलाते हैं.  

ये शकील बदायूनी ही थे जिन्होंने हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय भजनों में से एक- 'मन तडपत हरी दर्शक को आज' लिखा था जिसे नौशाद ने शास्त्रीय राग मालकौंस से धुन में सजाया था और दिल की गहराइयों से मुहम्मद रफ़ी ने गाया है. यह गंगा-जमुनी तहजीब और हिंदी सिनेमा के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का शायद एक बड़ा सुबूत है.    

शकील बदायूंनी का कैरियर 

शकील बदायूंनी ने फिल्म 'दर्द' से जो सफर शुरू किया तो फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 26 साल के अपने फिल्मी करियर में करीब 89 फिल्मी-गीत लिखे। उनकी गजलों को बेगम अख्तर ने गाकर उनकी अमरता को और बढ़ा दिया। 

फिल्मी गीतों के लेखन में भी शकील की यही खासियत नजर आती है। शकील के ही एक शेर में इसे समझा जा सकता है -

मैं 'शकील' दिल का हूं तर्जुमा, के मोहब्बतों का हूं राजदां, 
मुझे फक्र है कि मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं 

'बेस्ट लिरिसिस्ट' चुने गए शकील बदायूंनी 

शकील को 'चौदहवीं का चांद' फिल्म ने बड़ी सफलता दिलाई। उनके लिखे गाने लोगों को बेहद पसंद आये. दिलचस्प बात यह रही कि उन्हें करियर में पहली बार बेस्ट लिरिसिस्ट के लिए फिल्म फेयरअवॉर्ड मिला। शकील ने इसके बाद एक से बढ़कर एक हिट गीत लिखे और फिल्मफेयर अवॉर्ड की हैट्रिक लगाई। उन्हें 1961 में 'चौदहवीं का चांद हो', 1962 में 'हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं' और 1963 में 'कहीं दीप जले, कहीं दिल' के लिए बेस्ट लिरिसिस्ट के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ा गया। 

हर दिल अजीज शायर शकील बदायूंनी 

हर उम्र के लोगों में शकील के लिखे गीतों में दिलचस्पी रही हैं । 'नन्हा मुन्ना राही हूं,देश का सिपाही हूं' ऐसा गीत है जो शायद ही किसी पीढ़ी ने अपने बचपन में नहीं सुना हो। वहीं 'चौदहवी का चांद हो या आफताब हो' या 'कहीं दीप जले कहीं दिल' ऐसे गीत है जो आज भी हर उम्र के पीढ़ी की जुबां पर बने रहते हैं । 

जब 2016 में जब शकील की जन्मशती मनाई गई तो भारत-सरकार ने उनकी याद में एक डाक-टिकट भी जारी
किया। उन्हीं दिनों एक अंग्रेजी लेख ने उनके बारे में लिखा है-'जब यूपी के एतिहासिक शहर बदायूं में 3 अगस्त 1916 को एक बच्चे शकील अहमद की पैदाइश हुई तो शायद ही किसी को ये अंदाजा हुआ हो कि आजाद हिंदुस्तान में ये शहर अपने इस शायर के नाम से जाना जाएगा। जो बड़ा होकर हर दिल अज़ीज शकील बदायूंनी कहलाया. 

हिंदी फिल्‍मों में अपनी छाप छोड़ शकील बदायूंनी ने 20 अप्रैल 1970 को दुनिया को अलविदा कह दिया। शकील की रचनाएं आज भी ना जाने कितने होठों पर मचलती रहती हैं। कहते हैं कि शायर कभी मरते नहीं,वो ज़िंदा रहते है अपनी नज़्मों में। वैसे ही शकील बदायूंनी भी ज़िंदा है आज अपने लिखे गीतों में...

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