Wednesday 29 April 2020

एक और सितारा चमक बिखेर कर खो गया

श्रद्धांजलि: इरफ़ान खान (1967-2020) 

एक क्रिकेटर जो क्रिकेटर बनते-बनते बन गया ऐसा अभिनेता जिसके अभिनय ने हिंदी और भारतीय सिनेमा को नई उंचाई पर पहुंचा दिया  
  • अयूब अली 
एक और सितारा आज अपनी चमक बिखेर कर अचानक टूट गया और इस यूनिवर्स में खो गया. उसकी चमक से दुनिया चमत्कृत थी.     

हिंदी सिनेमा के अपने ढंग के अकेले अभिनेता इरफ़ान खान अब हमारे बीच नहीं रहे. बुधवार दोपहर मुम्बई के कोकिलेबन अस्पताल में करीब 12 बजे उन्होंने आखरी सांस ली. करीब 2 दिन पहले ही वे अस्पताल में भर्ती हुए थे. कल रात तक उनकी सेहत ठीक थी. इस बीच उनके प्रवक्ता ने बयान जारी कर ये बताया भी था कि उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है. 

करीब 2 साल पहले न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता लगने के बाद से इरफान बीमार रहने लगे थे और इसी के चलते उन्हें मेडिकल अटेंशन में रखा गया था. इरफान करीब एक साल तक लंदन में इलाज कराने के बाद पिछले साल देश लौट आए थे. इरफान बीमारी से उबरकर अपने काम पर भी लौट आए थे और फिल्मों की शूटिंग कर रहे थे. उनकी आखिरी फिल्म अंग्रेजी मीडियम कुछ दिन पहले ही रिलीज हुई थी.

माँ की मृत्यु से सदमे में थे इरफ़ान

इरफान की मां सईदा बेगम का हाल ही में जयपुर में निधन हो गया था। वो 95 साल की थीं। उनका 25 अप्रैल को उम्र-संबंधी बीमारी से देहांत हो गया था। देश मे लागू लॉकडाउन की वजह से इरफान उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे। इरफ़ान ने अपनी मां को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए श्रद्धांजलि दी थी क्योंकि वो लॉकडाउन की वजह से मुंबई में थे।

शुरुआती दिन और संघर्ष

जयपुर में पैदा हुए इरफान ने बॉलीवुड में जो मुकाम हासिल किया, उसके पीछे उनकी सालों की मेहनत और काम के प्रति उनकी ईमानदारी थी। जयपुर के रंगमच से बॉलीवुड के पर्दे तक चमकने की कहानी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है। इरफान बचपन में क्रिकेटर हुआ करते थे और खूब क्रिकेट खेला करते थे। वे सीके नायडू ट्राफी में खेल चुके थे। इरफान के घर का ऐसा माहौल था कि टीवी और सिनेमा देखने की इजाजत नहीं थी। इरफ़ान क्रिकेट तो खेलते ही थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी नाटकों में भी दिलचस्पी होने लगी जिसके बाद उन्होंने कला के इस क्षेत्र में खुद पर मेहनत करना शुरू कर दिया।

वो गली-मोहल्ले में नुक्कड़ नाटक करने लगे. इरफान का ये शौक उन्हें जयपुर के रबीन्द्र मंच तक ले आया. यहाँ से वो पहुंचे दिल्ली के मशहूर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में. एनएसडी से एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद
इरफान मुंबई पहुंचे और यहां से शुरू हुआ उनका स्ट्रगल। परिवार में फिल्मी बैकग्राउंड न होने के बावजूद उनकी मेहनत न उन्हें फिल्मी पर्दे पर पहुंचा दिया। इस बीच, उन्होंने हर न मानते हुए लगातार संघर्ष किया।

एक दौर ऐसा था कि रोजी-रोटी के लिए इरफान हर तरह के किरदार करने लगे, कई टी.वी. शोज और फिल्मों में उन्होंने छोटे-छोटे रोल किए. 1990 में आई फिल्म ‘एक डॉक्टर की मौत’ में उनका एक छोटा सा रोल था जिसे लोगों ने नोटिस तो किया, लेकिन उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली। इरफान ने 23 फरवरी 1995 को एनएसडी में अपनी सहपाठी रही सुतपा सिकदर से शादी की. बाबिल और अयान खान उनके बेटे हैं.

फिल्मी करियर और अभिनय की बुलन्दी पर 

इरफान की किस्मत बदली 2002 में रिलीज हुई आसिफ कपाड़िया की फिल्म ‘द वारियर’ से. इस फिल्म में इरफान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसके बाद 2003 में आई इरफान की फिल्म ‘हासिल’ और 2004 में ‘मकबूल’ रिलीज हुई. इन दोनों ही फिल्मों ने इरफान को हिंदी सिनेमा में न सिर्फ शोहरत दिलाई बल्कि उनके अभिनय के अनूठेपन ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। फ़िल्म "हासिल" के किरदार रणविजय सिंह को लोग आज भी याद करते हैं. इस फिल्म का इरफान के बॉलीवुड करियर में खास महत्व रहा। इन फिल्मों से बॉलीवुड इंडस्ट्री में इरफान खान को उनकी काबिलियत और अभिनय के चलते खूब सराहा जाने लगा और अधिक पसन्द किया जाने लगा।

साल 2003 के बाद इरफान के करियर की गाड़ी निकल पड़ी और उन्होंने बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड की फिल्मों- दी अमेजिंग स्पीडर मैन, ए माइटी हार्ट में भी अपने एक्टिंग का जलवा बिखेरा। इस दौरान उन्होंने 'लाइफ इन अ मेट्रो', 'स्लमडॉग मिलेनियर', 'न्यूयॉर्क' जैसी फिल्मों में भी काम किया। उनकी फिल्मों पान सिंह तोमर, बिल्लू बारबर, पार्टीशन, नोकआउट ने एक अलग तरीके से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इरफान की दमदार अदाकारी के लिए उन्हें 2011 में पद्मश्री से भी नवाजा गया.

'द लंचबॉक्स', 'पीकू', 'करीब-करीब सिंगल' जैसी फिल्मों में इरफान के रोमांटिक अंदाज को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया. खासकर, 'पीकू' में दीपिका पादुकोण के साथ उनकी जोड़ी काफी हिट रही। लोगों ने इसे खूब पसंद किया। उन्होंने करीब 30 बॉलीवुड फिल्मों में काम किया था।

इरफान इरफान खान की आखिरी फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' 13 मार्च 2020 को रिलीज हुई थी। ये फिल्म कुछ ही दिन थिएटर में चल पाई, जिसके बाद कोरोना वायरस की वजह से थिएटर और मल्टीप्लेक्स बंद कर दिए गए थे। इसके बाद ये फिल्म हॉटस्टार जैसे OTT प्लेटफॉर्म पर रिलीज कर दी गई।

बीमारी के पता चलने पर इरफान ने लिखा था ये पत्र 

'कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं, मेरी शब्‍दावली के लिए यह बेहद नया शब्‍द था, इसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह एक दुर्लभ कैंसर की बीमारी है और इसपर अधिक शोध नहीं हुए हैं। अभी तक मैं एक बेहद अलग खेल का हिस्‍सा था। मैं एक तेज भागती ट्रेन पर सवार था, मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, आकांक्षाएं थीं और मैं पूरी तरह इस सब में बिजी था। तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंथे पर हाथ रखते हुए मुझे रोका। वह टीसी था: 'आपका स्‍टेशन आने वाला है, कृपया नीचे उतर जाएं। ' मैं परेशान हो गया, 'नहीं-नहीं मेरा स्‍टेशन अभी नहीं आया है.' तो उसने कहा, 'नहीं, आपका सफर यहीं तक था, 'कभी-कभी यह सफर ऐसे ही खत्‍म होता है'।

इस सब के बीच मुझे बेइंतहां दर्द हुआ

'इस सारे हंगामे, आश्‍चर्य, डर और घबराहट के बीच, एक बार अस्‍पताल में मैंने अपने बेटे से कहा, 'मैं इस वक्‍त अपने आप से बस यही उम्‍मीद करता था कि इस हालत में मैं इस संकट से न गुजरूं. मुझे किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़े होना है। मैं डर और घरबाहट को खुद पर हावी नहीं होने दे सकता। यही मेरी मंशा थी... और तभी मुझे बेइंतहां दर्द हुआ। 

दुनिया में महज़ एक ही चीज निश्चित है वो अनिश्चि‍तता है

'जब मैं दर्द में, थका हुआ अस्‍पताल में घुस रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा अस्‍पताल लॉर्ड्स स्‍टेडियम के ठीक सामने है। यह मेरे बचपन के सपनों के 'मक्‍का' जैसा था. अपने दर्द के बीच, मैंने मुस्‍कुराते हुए विवियन रिचर्ड्स का पोस्‍टर देखा। इस हॉस्‍पिटल में मेरे वॉर्ड के ठीक ऊपर कोमा वॉर्ड है।

मैं अपने अस्‍पताल के कमरे की बालकॉनी में खड़ा था, और इसने मुझे हिला कर रख दिया। जिंदगी और मौत के खेल के बीच मात्र एक सड़क है। एक तरफ अस्‍पताल, एक तरफ स्‍टेडियम। मैं सिर्फ अपनी ताकत को महसूस कर सकता था और अपना खेल अच्‍छी तरह से खेलने की कोशिश कर सकता था.'

इस सब ने मुझे अहसास कराया कि मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना ही खुद को समर्पित करना चाहिए और विश्‍वास करना चाहिए, यह सोचा बिना कि मैं कहां जा रहा हूं, आज से 8 महीने, या आज से चार महीने, या दो साल. अब चिंताओं ने बैक सीट ले ली है और अब धुंधली से होने लगी हैं। पहली बार मैंने जीवन में महसूस किया है कि 'स्‍वतंत्रता' के असली मायने क्‍या हैं.'एक उपलब्धि का अहसास।

इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया। उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया। वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं! फ़िलहाल, मैं यही महसूस कर रहा हूं।

इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग...सभी, मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं, मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिल कर एक हो गयी हैं… एक बड़ी शक्ति… तीव्र जीवनधारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझमें प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही है।

अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है… मैं खुश होकर इन्हें देखता हूं। लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नयी दुनिया दिखाती है।

अहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण हो… जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!

श्रद्धांजलि 

आज इरफान के निधन पर भारतीय सिनेमा जगत से लेकर अन्तरराष्ट्रीय सिनेमा जगत के लोग भी गमगीन हैं। इरफान सरल और स्पष्ट विचारों के व्यक्ति थे। जो जिंदगी को दिल खोल अलग तरीके से जीना चाहते थे।
उनके प्रशंसकों और साथियों के बीच उनकी काबिलियत, जज़्बे, मानवता और संघर्ष को लेकर चर्चा है। इरफान के अचनाक यूं विदा ले जाने से लोगों की जुबां पर दुख पसरा है। इरफान चाहे वास्तविक तौर पर यहां अब शायद मौजूद न हो लेकिन वो हमेशा लाखों करोड़ों के दिलों में जिंदा रहेंगे। उनके किरदार हमेशा के लिए अमर हो गए। भारतीय सिनेमा जगत में उनकी निभाई भूमिका को कभी नहीं भुलाया जा सकता ।

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