Thursday 16 April 2020

कोरोना ने भारतीय अर्थव्यस्था को भी अस्पताल पहुँचा दिया है लेकिन असली चुनौती उसे आईसीयू में पहुँचने से रोकने की है

पहले से ही सुस्त अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना केंद्र सरकार की सबसे बड़ी चुनौती

  • वैभव परमार  


कोरोना वायरस के चलते फैली वैश्विक महामारी ने दुनियाभर की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को घुटनों पर ला दिया है। एक तरफ़ जहां विश्व में ख़ुद को सबसे शक्तिशाली देश मानने वाले अमेरिका की हालात पस्त हैं, वही चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और इटली और उनकी अर्थव्यवस्थाएं भी इस वायरस से सबसे अधिक त्रस्त हैं। 


भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है लेकिन भारत के लिए अच्छी बात यह है कि जनसंख्या की तुलना में यहाँ कोरोना संक्रमण अभी बहुत ज़्यादा नहीं है। इसकी मुख्य वजह सरकार द्वारा 24 मार्च की अर्द्धरात्रि से घोषित 21 दिवसीय ( 25 मार्च से 14 अप्रैल ) देशव्यापी लॉकडाउन है, जिसकी वजह से संक्रमण को फैलने से रोकने में काफ़ी हद तक मदद मिली। 

भारत के हालात


अब तक दुनिया में 20 लाख से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और करीब एक लाख 20 हजार लोगों की जान जा चुकी है। लेख लिखे जाने तक भारत में कुल संक्रमितों की संख्या 12 हज़ार 380 हो चुकी थी और 414 लोग इससे अपनी जान गंवा चुके थे। 


फिलहाल, जैसा अपेक्षित था, सरकार ने 21 दिवसीय लॉकडाउन को 3 मई तक यानी 19 दिन के लिए और बढ़ा दिया है। ऐसे में, लॉकडाउन बढ़ाने के साथ-साथ सरकार के राहत पैकेज की राशि के तत्काल भुगतान की भी घोषणा करनी चाहिए थी। हालांकि 20 अप्रैल के बाद मिलने वाली छूट के लिए बुधवार को भारत सरकार ने जो गाइडलाइंस बनाई हैं, उनसे बैंकिंग, नॉन-बैंकिंग, वित्तीय और सेवा जैसे क्षेत्रों में लोगों को काम करने के लिए रियायतें मिलेंगी। साथ ही सरकार ने कृषि संबंधित गतिविधियों को भी शुरू करने की इजाज़त दी है। इस 40 दिवसीय लॉकडाउन के बाद सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर खरा उतरना अब चुनौतीपूर्ण हो गया है। 


संकट में है अर्थव्यवस्था


चीन के वुहान शहर से फैले इस वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था से एक बड़ी कीमत वसूल की है। आंकड़े बताते हैं कि किस तरह से इस वायरस के प्रकोप ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। इस साल मार्च महीने में वाहनों की बिक्री में 50 फीसदी की कमी आई। वस्तु एवं सेवा कर में जहां 20 फीसदी की गिरावट हुई है, वहीं पेट्रोल-डीजल की खपत में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। 

भारत की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले पर्यटन और विनिर्माण क्षेत्र पर इसका सबसे अधिक असर हुआ है। अंतरराष्ट्रीय और घरेलू विमान सेवाएँ बंद होने के कारण पर्यटन उद्योग और तमाम हवाई आयात-निर्यात ठप्प पड़े हैं। निर्माण क्षेत्रों में सप्लाई चेन टूटने से उत्पादन में लगातार बाधा आ रही है। विनिर्माण से देश के करीब 11 से 12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों में नकदी का प्रवाह खत्म होने लगा है। ऐसे में, इस क्षेत्र के लोगों को सरकार से अपेक्षा थी कि उनके लिए जल्द कोई राहत पैकेज का ऐलान होगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। 

हालांकि सरकार द्वारा बुधवार को जारी की गई गाइडलाइंस में विनिर्माण और औद्योगिक गतिविधियों को कुछ शर्तों के साथ खोलने की अनुमति दी गई है, लेकिन असल समस्या लिक्विडिटी की आ रही है। लॉकडाउन 19 दिन और बढ़ाने के बाद सरकार को जल्द इन क्षेत्रों की अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो पहले से अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार झेल रहे इस क्षेत्र पर गहरा संकट आ सकता है। सरकार को लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा परेशान लोगों को वित्तीय मदद भी पहुंचानी चाहिए। दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी वाले और टैक्सी ड्राइवर जैसे लोगों के जीवन-यापन का साधन छिन गया है। साथ ही, देश के तमाम उद्योगों को सरकारी योजनाओं के रूप में वित्तीय मदद दिए जाने की ज़रूरत है। 


हाँफती अर्थव्यवस्था को है वैक्सीन की ज़रूरत


इसमें कोई दो राय नहीं है कि साल 2016 में हुई नोटबंदी के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट आई है। इसके बाद आया वस्तु एवं सेवा कर यानी GST और यह किसी से छिपा नहीं है कि नोटबंदी के ठीक एक साल बाद साल 2017 में लागू हुए GST की जटिलता ने किस तरह देश के लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों को प्रभावित किया। इसने देश में रोजगार के अवसरों पर ताला लगा दिया। इसके बाद साल 2018 और 2019 में जीडीपी में बहुत मामूली वृद्धि देखी गई लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उसका कोई विशेष फायदा नहीं दिखा। प्रधानमंत्री के साल 2022 तक भारत को पाँच ट्रिलियन डॉलर ( पांच लाख करोड़ रुपये ) की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को कोरोना वायरस ने अनिश्चितकाल के लिए ब्रेक लगा दिया है।


फ़िलहाल, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि इस साल दुनिया की अर्थव्यवस्था में 90 साल पुरानी महामंदी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट आ सकती है। हालांकि आईएमएफ ने उम्मीद भी जताई है कि विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से सिर्फ एशिया की दो अर्थव्यवस्थाएँ, भारत और चीन ही मंदी से बचे रहेंगे। आईएमएफ के अनुसार, साल 2020-21 में भारत की जीडीपी की विकास दर 1.9 फ़ीसदी रहने का अनुमान है और यदि ऐसा हुआ तो यह भारत की वर्ष 1991 के बाद की सबसे कम विकास दर होगी। 

लेकिन इस दौरान एशिया की विकास दर शून्य रहेगी। वहीं मंगलवार को जारी वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, 1.9 फीसदी की विकास दर के बावजूद भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। दूसरी ओर ब्रिटेन के प्रमुख बैंक, बार्कलेज की मंगलवार को ही जारी एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि साल 2020 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कोई ग्रोथ नहीं होगी। यह भारत के लिए काफ़ी चिंताजनक स्थिति है।

क्या करना चाहिए सरकार को


इसके आसार कम ही हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था जल्द ही पटरी पर आ पाएगी। लेकिन जिस तरह से आईएमएफ ने भारत के लिए भविष्यवाणी की है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भारत में मंदी के आसार हैं, उसे देखते हुए केंद्र सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वो आर्थिक मोर्चे पर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बड़े और दूरदर्शी कदम उठाए। इसके लिए सरकार को आशावादी रहने के साथ ही अवसरवादी भी रहना होगा। 

कोरोना के बाद कई वैश्विक कंपनियां अपने जोखिमों को कम करने के लिए अपने उद्योगों को चीन से बाहर स्थापित करना चाहेंगी। इसके अलावा ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक और रसायन क्षेत्र की सप्लाई चेन में आई बाधा से भारतीय उत्पादन क्षेत्र के पास इस सप्लाई चेन का हिस्सा बनने का सबसे अच्छा मौका है। सरकार को इसका लाभ उठाना होगा और तुरंत नीतिगत फ़ैसले लेने होंगे। 


लॉकडाउन के आर्थिक दुष्प्रभावों से बचने के लिए सरकार प्रयास तो कर रही है लेकिन अगर समय रहते सही कदम नहीं उठाए गए तो हालात और खराब हो सकते हैं। इस सदी का पहला दशक आर्थिक संकट में समाप्त हुआ। 

दूसरा दशक भी धीमी वृद्धि के साथ उसी हालत में रहा लेकिन तीसरे दशक का उत्तरार्द्ध तो बीते दो दशकों से भी बुरा साबित होता दिख रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि अंधेरा होने से पहले वह दीया जलाने की तैयारी कर ले. उसे अर्थव्यवस्था को हर हाल में न सिर्फ प्राथमिकता भी देनी होगी बल्कि उसे तेज रफ़्तार देने के लिए महत्वाकांक्षी और "आउट आफ बाक्स" फैसले भी करने होंगे. मुश्किल यह है कि उसके पास समय बहुत नहीं है. 


(वैभव मूलतः मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में आने वाले मंदसौर के रहने वाले हैं। इन्होंने कॉमर्स से स्नातक किया है। इनकी रुचि अर्थव्यवस्था और व्यंग्य विधा में है। अभी भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के हिंदी पत्रकारिता विभाग में अध्ययनरत हैं।)

17 comments:

  1. Deep research bro
    Keep it up.😊😊

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  2. बहुत ही शानदार लिखा है , इसी प्रकार निरंतर प्रयास करते रहेंं ।

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    1. शुक्रिया तहसीलदार साहब 🙏🙏

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  3. Good!
    Keep it up
    U should also write a blog on it's solution
    It's your responsibility to question a problem and also give a possible way to overcome

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    1. सर लेख के अंत में मैंने हल देने का प्रयास किया है. पर फिर भी आपके विशेष आग्रह पर मैं जरूर इसपर आगे ध्यान दूंगा. धन्यवाद 🙏

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  4. शानदार भाई, लगे रहो...

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    1. शुक्रिया प्रीत भाई 🙏

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  5. भाई दिल जीत लिए बहुत ही सुन्दर

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    1. कामिल भाई शुक्रिया आपको 🙏🙏

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    1. शुक्रिया शुभम भैया 🙏🙏

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  7. हृदय से बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी मित्रों को. 🙏🙏

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  8. बहुत बढ़िया जूनियर परमार👌👌👌

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  9. वैभव बहुत ही सुंदर

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