Friday 3 April 2020

पूरी तरह से लॉकडाउन के ख़तरे

यदि गरीबों को घर पर रहना ही है तो उन्हें पैसों और बुनियादी सेवाओं की जरूरत होगी


  • ज्यां द्रेज 
  • अनुवाद- आकाश पांडेय




कोरोना वायरस फैलने के सन्दर्भ में भारत पर दोहरा संकट मंडरा रहा है. एक है- स्वास्थ्य संकट और दूसरा है- आर्थिक संकट. हताहतों के मामले में, स्वास्थ्य संकट अभी ( लेख लिखने तक) बहुत सीमित है ( कोरोना से अब तक देश में सात मौतें हुई हैं जबकि देश में औसतन हर साल अस्सी लाख लोग मर जाते हैं),
लेकिन कोरोना मृत्युदर तेजी से बढ़ रही है (कोरोना वायरस से मरनेवालों की संख्या 3 अप्रैल को बढ़कर 75 पहुँच गई है-सं) इस बीच, आर्थिक संकट पूरी ताकत से बढ़ रहा है,  रोज कुंआ खोदने और पानी पीने वाले करोड़ों दिहाड़ी ( डेली वेजर ) मजदूर और किसानों पर संकट दिन पर दिन बढ़ता जाएगा. साथ ही अमीर - गरीब पर समान चोट करने वाला कोरोना वायरस गरीबों को ज्यादा ही नुकसान पहुँचानेवाला है.

गतिरोध की बाध्यता

प्रवासी श्रमिकों, ठेला-रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं, संविदा/कान्ट्रेक्ट श्रमिकों, असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र की लगभग पूरी जनशक्ति पर इस आर्थिक सुनामी का ग्रहण लगने वाला है. महाराष्ट्र में, बड़े पैमाने पर छंटनी ने प्रवासी कामगारों को घर वापस जाने के लिए मजबूर किया है, अधिकांश को बकाया भुगतान भी नहीं हुआ है और वे आपाधापी में अपने गृहराज्य वापस हो लिए हैं. उनमें से कई ट्रेन, बस आदि परिवहन रद्द होने की वजह से महाराष्ट्र और अपने घरों के बीच फंसे हुए हैं. दुकानों-फैक्ट्रियों-कार्यालयों आदि के बंद होने से महाराष्ट्र में फैला आर्थिक ठहराव अन्य राज्यों में बेरोजगारी, भूख, बीमारी और अपराध आदि के रूप में फैलेगा, जिसके सामान्य स्थिति में वापस लौटने की उम्मीद कम ही है.

पहले से बारिश और ओलावृष्टि के मद्देनजर गेहूँ की खराब हुई फसल उत्तर भारत के लाखों मजदूर परिवारों के लिए कोई राहत की खबर नहीं है और अफ़सोस यह कि यह सब सिर्फ एक ट्रेलर है. यह आर्थिक संकट तत्काल, बड़े पैमाने पर राहत उपायों की माँग कर रहा है. महामारी को धीमा करने के लिए लॉकडाउन की आवश्यकता हो सकती है लेकिन गरीब लोग घर पर बेकार नहीं रह सकते. यदि उन्हें घर पर रहने के लिए कहा जाता है तो उन्हें मदद की आवश्यकता होगी. इस संबंध में एक अच्छी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की कसौटी पर भारत और समृद्ध विकसित देशों के बीच काफी अंतर है. कनाडा या इटली में रहने वाले औसत परिवार कम से कम कुछ समय के लिए अपने निजी सामर्थ्य पर तालाबंदी को झेल सकते हैं लेकिन भारतीय गरीबों के प्रतिदिन का रोजगार रहने की स्थिति में उनका जीवित बचे रह पाना असम्भव है.  

सामाजिक योजनाओं पर जोर दें

यह समय की माँग है कि पहला कदम के तौर पर गरीबों के लिए- पेंशन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), मिड-डे मील( दोपहर के भोजन), और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का समर्थन बढ़ाते हुए मौजूदा आर्थिक सामाजिक-सुरक्षा योजनाओं का बेहतर, जिम्मेदार और प्रभावी उपयोग किया जाए. इसके साथ-साथ जरूरी है- पेंशन का अग्रिम भुगतान, उन्नत पीडीएस राशन तंत्र ( जिसमें अंगूठा लगाने की बाध्यता, सर्वर फेल होने की शिकायत आदि को नजरअंदाज करके वितरण सुनिश्चित
किया जाए), मनरेगा मजदूरी बकाया का तत्काल भुगतान. स्कूलों और आंगनवाड़ियों में बच्चों के घरों में भोजन वितरण का प्रयास हो.

व्यावहारिक और ध्यान देने की बात है कि कुछ राज्यों ने पहले से ही इस तरह के जनोपयोगी कदम उठाए हैं लेकिन राहत उपायों को व्यापक और तीव्र विस्तार की आवश्यकता है. बदले में, केंद्र सरकार से बड़ी धनराशि अवमुक्त होनी चाहिए. सरकार को कॉर्पोरेट बेलआउट्स पर अपने संसाधनों को जाया करने से बचते हुए अर्थव्यवस्था के अन्य संकट प्रभावित क्षेत्रों को मजबूती देने की जरूरत है.

यहाँ यह भी कहना होगा कि आवश्यक सेवाओं को बंद करने की प्रवृत्ति से लोगों की कठिनाइयों के बढ़ने का खतरा है. कई राज्यों में सार्वजनिक परिवहन, प्रशासनिक कार्यालय, अदालत की सुनवाई, मनरेगा परियोजनाएं और यहां तक कि टीकाकरण अभियान तक स्थगित कर दिए गए हैं. ये निर्णय स्वास्थ्य दृष्टि से निश्चित रूप से उचित हैं लेकिन समानांतर तौर पर इनके बंद होने से प्रतिकूल प्रभाव पैदा होने की भी संभावना है. याद रखें, हम केवल स्वास्थ्य संकट बल्कि आर्थिक संकट से भी जूझ रहे हैं. भले ही सार्वजनिक सेवाओं को बंद करने से स्वास्थ्य संकट को रोकने में मदद मिलती है लेकिन इसके साथ ही तमाम निर्णयों को आर्थिक परिणाम की कसौटी पर कसने की भी जरुरत है.

विभिन्न एहतियाती उपायों का आकलन करने के लिए, हमें दोहरे मापदंड को ध्यान में रखना चाहिए. जब आप घर पर रहने का फैसला करते हैं, तो इसके लिए दो संभावित मकसद होते हैं: एक आत्म-सुरक्षा का उद्देश्य और दूसरा सार्वजनिक सुरक्षा का उद्देश्य. पहले मामले में आप संक्रमित होने के डर से खुद को लॉकडाउन ( सुरक्षित) करते हैं. दूसरे में, आप वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सामूहिक प्रयासों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टि से हिस्सा लेते हैं.

समाज में बहुत कम ही लोग आत्म-सुरक्षा के विषय और उससे जुड़ी सावधानियों के बारे में सोचते हैं. भारत में हर साल चार लाख लोग तपेदिक से मरते हैं, फिर भी हम इसके खिलाफ कोई विशेष सावधानी नहीं रखते हैं जबकि इससे बचाव के लिए टीका से लेकर दवा तक सब कुछ उपलब्ध है. तो हम सावधानियाँ क्यों बरतेंगे, जब सिर्फ सात लोग COVID -19 से मारे गए हैं? इसका मतलब अभी के लिए मुख्य बात स्वयं की रक्षा करना नहीं है बल्कि महामारी को रोकने के लिए सामूहिक प्रयासों में योगदान करना है.

रचनात्मकता प्रदर्शित करें

बचाव उपाय के रूप में सार्वजनिक सेवाओं को बंद करना एक सामान्य और स्वीकृत तर्क है. सार्वजनिक कर्मचारियों का संरक्षण फिलवक्त इस समय प्रमुख मुद्दा नहीं है. इस समय मुख्य उद्देश्य जनता के व्यापक विषय से जुड़ा हुआ है. साथ ही, इसमें जनता के व्यापक संरक्षण के मुद्दे के रूप में बंद के संभावित आर्थिक परिणामों को भी शामिल करना चाहिए.

जब कोई सेवा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करती है, तो सार्वजनिक उद्देश्य के वास्ते निश्चित रूप से इसे बंद करने का निर्णय लिया जा सकता है ( जोकि स्कूल और कॉलेजों को बंद करने का कारण है). दूसरी ओर, स्वास्थ्य के लिए किसी बड़े खतरे को बचाते हुए गरीब लोगों की मदद करने वाली सेवाओं को यथासंभव कार्य करना जारी रखना चाहिए. यह केवल स्वास्थ्य सेवाओं या सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर लागू होगा, बल्कि जिला और स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कार्यालयों सहित कई अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर भी लागू होगा. गरीब लोग कई मायनों में इन सेवाओं पर निर्भर करते हैं, इस समय उन्हें पिंजड़े में बंद करने से स्वास्थ्य संकट को हल करने के फेर में आर्थिक संकट और असहयोग उन्हें परेशानी में डालने वाला होगा.  

इस स्थिति में सार्वजनिक सेवाओं को बनाए रखने के लिए कुछ पहल और कुछ रचनात्मकता की आवश्यकता होती है. आवश्यक सेवाओं की एक स्पष्ट सूची (पहले से ही कुछ राज्यों में उपलब्ध है) और कार्यस्थल पर कोरोना वायरस से बचाव सम्बन्धी तत्परता पर आधिकारिक दिशानिर्देश एक अच्छी शुरुआत हो सकते हैं. कई सार्वजनिक जगहें बेहतर व्यवस्था के लिए रो रही हैं. कुछ सेवाओं को तात्कालिक तौर पर अभी के लिए पुनर्निवेशित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, आंगनवाड़ियाँ इस समय सार्वजनिक-स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, भले ही बच्चों को इससे दूर रखा जाए. ऐसे कई सार्वजनिक स्थलों का उपयोग, उचित सुरक्षा उपायों के साथ, सूचना का प्रसार करने, हाथ धोने आदि अच्छी आदतों को सिखाने/प्रसारित करने के लिए किया जा सकता है.

प्रभावी सामाजिक सुरक्षा उपायों की सहायता से हम मानव समाज के बृहद तंत्र की छोटी-छोटी तंत्रिकाओं को बचाने में सफल हो पाएंगे. अभी प्रक्रियाएं जिस गति से चल रही है, उसके कारण आने वाले समय में परिस्थितियाँ कठिन होने वाली हैं. राज्य को राशन वितरण और पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित करना चाहिए. इनकी उपलब्धता में कमी कोरोना संकट और लॉकडाउन की दिक्क्तों को और दुरूह कर देगा. स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों ही संकटों के लिए ये स्थिति ठीक नहीं साबित होगी. यह समय भारत के कमजोर सुरक्षा जाल को और कमजोर होने नहीं दिया जा सकता.

(साभार: द हिन्दू, 23 मार्च, 2020)

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