Friday 10 April 2020

कोरोना के खिलाफ जंग में ताइवान से सीख सकती है दुनिया

ताइवान ने इंतज़ार नहीं किया और तेजी से प्रो-एक्टिव फैसले लिए 

  • रोहन गिरि

चीन से निकल कर पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाला कोरोना वायरस पड़ोसी देश ताइवान में कुछ ख़ास असर नहीं दिखा पाया है.लगभग 2.37 करोड़ की जनसंख्या वाला यह छोटा सा देश अपने सैन्य प्रशिक्षण के लिए जाना जाता है. चीन और ताइवान के बीच तनाव से हम परिचित हैं. 
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइनाऔर 'रिपब्लिक ऑफ़ चाइनाका विवाद है यानी दोनों ही देश एक दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते हैं और दोनों ही स्वयं को आधिकारिक चीन मानते है.
खैर, जब मैं यह लिख रहा हूँ तब तक ताइवान में कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या सिर्फ 382 हैजिनमें से छह की मृत्यु हो चुकी हैसाथ ही 91 लोग ठीक हो चुके हैं. चीन से अमेरिका की दूरी लगभग 11,640 किलोमीटरब्रिटेन की दूरी 7,775 किलोमीटर और भारत की दूरी 2982 किलोमीटर है।

यह दूरी इसलिए बताई क्योंकि इन सभी देशों के मुक़ाबले ताइवान की चीनसे दूरी बहुत कम यानी महज़ 2102 किमी है. इसके बावजूद ताइवान में कोरोना संक्रमण की तादाद दुनिया के दूसरे मुल्कोंके मुक़ाबले बहुत कम है. ताइवान ने कोरोना का मुक़ाबला बहुत अक्ल के साथ और प्रो-एक्टिव फैसलों के साथ किया है. इससे भारत सहित सभी देशों को ताइवान से सीखने की जरूरत है.

क्या किया ताइवान ने?


पिछले साल जैसे ही चीन में कोरोना संक्रमण के फैलने की खबर मिलीवैसे ही ताइवान ने तेजी से निर्णय लेते हुए अपने देश में बाहर से आने वालों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया. उसने अपने सभी बंदरगाहों की जांच शुरू कर दी और पृथकता केंद्र (Isolation Centres) में भेजे गए व्यक्ति को नियमों का पालन ना करने पर कड़ी सजा का प्रावधान कर दिया.  

ऐसी थी तैयारी


जनवरी 2020 की शुरुआत में जब चीन कोरोनो वायरस के प्रकोप से रुबरु हुआतभी ताइवान ने संभावितखतरे को भांप कर उसके मुकाबले के लिए तैयारी शुरू कर दी. उसने जनवरी में ही अपनेयहां पहले मामले की पुष्टि की और वुहान से आने वाले यात्रियों की बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी ताकि वायरस के फैलाव को समय रहते रोका जा सके. कोरोना से जंग में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन को विभिन्न देशों और संस्थानों से सहायता लेनी पड़ी है जबकि ताइवान के पास कोई सहायता नहीं थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी उस पर प्रतिबंध लगाये हुए थे. इसके बावजूद ताइवान ने खुद को चीन से बेहतर साबित करके दिखाया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका

कोरोना संकट पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओकी भूमिका पर भी कई देश प्रश्न खड़ा कर रहे हैं. ताइवान और अमेरिका का कहना है कि डब्ल्यूएचओ ने एक बार फिर जन स्वास्थ्य की बजायराजनीति को चुना है. आरोप है कि डब्ल्यूएचओ की लापरवाही और देरी से इस मामले में समय भी जाता रहा और लोग भी मरते रहे.
यूरोप और अमेरिका के कई विकसित देशों में कोरोना स्थिति की तुलना में ताइवान सहित पूर्वोत्तर एशियाई देश अब तक स्थिति काबू करने में सक्षम रहे हैं. इस महामारी के खिलाफ लड़ाई को भी सभी देशों ने अलग-अलग तरीके से लड़ा है. आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध या लॉकडाउन जैसे कड़े उपायों को अपनाए बिना भी इन्होंने प्रभावी लड़ाई लड़ी है.

ताइवान ने पिछले अनुभव जैसे सार्स प्रकोप से निपटने के लिए अपनाए उपायों को आजमायातकनीकी क्षमता का लाभ उठाया और एक सक्रिय प्रणाली को चालू कर दिया जिससे कोरोना महामारीवहाँ पैर नहीं पसार पाई. ताइवान की तरह ही दक्षिण कोरिया भी अपने पिछले अनुभवों से सीख लेकर कोरोना संक्रमण से लड़ने में सफल हुआ है. ताइवान और कोरिया दोनों जगहसरकारी पहल को पूरा करने में जनता का सहयोग व्यापक स्तर पर दिखा. इससे स्थिति तेज़ी से बदली और जागरुक नागरिकों ने कोरोना से जंग में फ़तह आसान कर दिया.
वहीं इसकी तुलना अगर हम भारत से करें तो 1.30 करोड़ की आबादी के लिए कोरोना एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. ऐसी ख़बरें भी आईं कि कुछ लोगों ने स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस वालों पर हमले किए. 

ऐसे में, भारत में एक महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है कि क्या हमारी आवाम जागरुक होकर एकजुटता से लॉकडाउन  प्रशासनिक दिशा निर्देशों का पालन कर पाएगी ? कोरोना संकट सिर्फ़ सरकार नहीं बल्कि नागरिकों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है.

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