Saturday 18 April 2020

मानव सभ्यता के विकास की गाथा सुनाती विरासतें

विश्व धरोहर दिवस 

राष्ट्रीय विरासतों को समृद्ध करने और उन्हें संरक्षित करने के लिए सबको आगे आना होगा  
  • नम्रता वर्मा 

विरासतें- जो मनुष्य और प्रकृति के मध्य सम्बन्धों को दर्शाती और मानव सभ्यता के विकास की गाथा सुनाती हैं.
ये कला, संस्कृति, विज्ञान और तकनीक की वे आधारशिला हैं जो हमें अपने सांस्कृतिक अतीत से रूबरू करवाती हैं.

विरासतें मिलती है हमें पूर्वजों से जो प्रतीक होती है उनके अनुपम कौशल, सृजनात्मकता और मेहनत की जिसे संजोने और सहेजने का जिम्मा होता है हम पर ताकि मानवता की इन अमूल्य साझी धरोहरों को हम आने वाली पीढ़ियों को सौंप सकें और उन्हें बता सकें कि मानवता के विकास की यात्रा किन पड़ावों से होकर गुजरी है. 

दुनिया भर के तमाम ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व के स्थलों को संरक्षित करने के उद्देश्य से हर साल आज के दिन यानी 18 अप्रैल को "विश्व विरासत दिवस" के रूप में मनाया जाता है. इस दिन की शुरुआत साल 1983 में हुई थी, जब ट्यूनीशिया में "इंटरनेशनल कॉउंसिल ऑफ माउंटेन्स एंड साइट"(ICOMOS) ने 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाने का सुझाव दिया. इस सुझाव पर 1983 में यूनेस्को ने अपनी 22वीं आम सभा में इस दिन को स्मारकों और स्थलों की विरासत के लिए निर्धारित कर दिया. 

इस साल 2020 के लिए विश्व विरासत दिवस की थीम है- "Shared Culture, Shared Heritage, & Shared Responsibility" इसका मतलब हुआ "साझी संस्कृति, साझी विरासत और साझी जिम्मेदारी. आज पूरी दुनिया जब कोविड-19 जैसे स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है तो यह विषय वैश्विक एकता पर बल दे रहा है. विश्व धरोहर स्थल उन्हें कहा जाता है जो कि सांस्कृतिक , ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज से महत्वपूर्ण होते हैं. ये सभी स्थल वैश्विक महत्व के होते हैं और जिन्हें संरक्षित करना बेहद जरूरी होता है. 

यूनेस्को ने विश्व भर में 1121 स्थलों को वैश्विक धरोहर के रूप में चिन्हित किया है. इन्हें सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित- तीन वर्गों में बांटा गया है. दुनिया भर में 869 सांस्कृतिक, 213 प्राकृतिक और 39 मिश्रित धरोहर स्थल हैं. स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी, द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना, विक्टोरिया फाल्स, वेटिकन सिटी, पायरिंस इत्यादि विश्व के मुख्य धरोहर स्थल है. 

भारत की बात करें तो यहां फिलहाल कुल 38 विश्व धरोहर स्थल हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (एफ) में स्पष्ट कहा गया है कि अपनी समग्र संस्कृति की समृद्ध धरोहर का सम्मान करना और इसे संरक्षित रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है. भारत के कुल 38 धरोहर स्थलों में कुछ प्रमुख स्थल हैं:  ताजमहल, आगरा का
किला, अजंता और एलोरा की गुफाएं, काजीरंगा अभयारण्य, केवलादेव उद्यान, महाबलीपुरम और सूर्य मंदिर कोणार्क, हम्पी, गोवा के चर्च, फतेहपुर सीकरी, चोल मंदिर, खजुराहो मंदिर, पट्टादकल और एलिफेंटा की गुफाएं, सुंदरबन, सांची के बुद्ध स्मारक, हुमायूं का मकबरा, नंदा देवी पुष्प उद्यान, चंपानेर पावागढ़, लाल किला, दिल्ली, जयपुर का जंतर मंतर, नालंदा विश्वविद्यालय, अहमदाबाद, कुतुब मीनार, हिमालयन रेल, महाबोधि मंदिर, गुजरात की रानी की वाव, पश्चिमी घाट, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और राजस्थान का किला इत्यादि है. हमारी धरोहरें न सिर्फ हमारा गौरव है बल्कि यह हमारे इतिहास बोध को मजबूत करता है. 

तमाम प्रयासों के बाद भी कई समस्याएं है जो इन वैश्विक धरोहरों को संरक्षित करने में बाधक होती है. जिन निकायों को इन स्थलों के सरंक्षण का दायित्व दिया जाता है, उनकी उदासीनता सबसे बड़ी बाधा है. यह देखना दुःखद होता है कि वैश्विक,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों को लेकर लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं होती है. कई दफा ऐसे स्थल इस हद तक हमारी उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं कि लोग स्मारकों के प्रवेश द्वार पर अपने पालतू जानवरों के साथ सैर करते दिख जाते हैं. जिम्मेदार निकायों की सक्रियता से ही धरोहर स्थलों का उचित रखरखाव संभव है. 

हमने इन धरोहरों के सांस्कृतिक पक्ष पर तो पर्याप्त चर्चा की है पर उसे दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने के लिए जो प्रयास किए जाने चाहिए, वह नहीं किए जा रहे हैं. जरूरत है कि संरक्षित स्थलों के साथ जुड़े संगीत, भोजन, पोशाक, व्यक्तित्व, खेल, और उत्सवों के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करायी जाए जिससे लोग आकर्षित हो सकें. मेरी समझ में ऐसे स्मारकों और स्थलों को जिनका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व हो उन्हें आर्थिक महत्व की दृष्टि से भी उपयोगी बनाना चाहिए, जिससे लोगों को रोजगार प्राप्त हो सके. 

ऐसे स्थल जिन स्थानों पर है वहां के स्थानीय उत्पाद, कला-शिल्प आदि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और निर्माण के पर्याप्त अवसर भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि पर्यटन विभाग
संरक्षित ऐतिहासिक अथवा सांस्कृतिक महत्व के इन स्थलों का आर्थिक महत्व पहचानने में असफल रहता है. इस दिशा में तत्काल प्रभावी कदम उठाना जरूरी है. 

सफेद संगमरमर से बना ताजमहल जिसकी खूबसूरती का दीदार करने दुनिया के तमाम देशों से लोग भारत आते हैं, उसकी चमक अम्ल वर्षा के कारण खतरे में पड़ती दिख रही है. ऐसे ही देश के अनेक धरोहर और ऐतिहासिक इमारतें, स्मारक और जगहें अवैध कब्जे के कारण खत्म हो रहे हैं. अनेकों स्मारकों और धरोहरों पर देशी पर्यटकों और बेवकूफ प्रेमियों ने अपने नाम खोदकर उन्हें बदरंग बना दिया है. ऐसे ही कई बड़े स्मारकों और धरोहरों के आसपास फेरीवालों और सामान बेचनेवालों की भीड़ और उससे पैदा होनेवाले कचरे के ढेर से इन स्थलों की चमक फीकी हो रही है.

सच पूछिए तो हमें एक जिम्मेदार समाज और उसके सजग पर्यटक बनना अभी बाक़ी है जिसे अपने धरोहरों से सचमुच प्यार हो, जो उसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कीमत समझता हो और जो उन्हें हर हाल में बचाने के लिए प्रतिबद्ध हो. समय आ गया है जब हम देश में अपने धरोहरों के बारे में लोगों और सामाज को जागरूक करने और उसे संरक्षित करने का एक बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन शुरू करें.      

आज वह संकल्प लेने का दिन है. मनुष्य जाति को ऐसे धरोहरों को संरक्षित करने के लिए समुचित प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है- "विश्व विरासत दिवस"! धरती हमारी साझी विरासत है. यहां मानव ने अपने परिश्रम, कौशल और सृजनात्मकता से भव्य कलात्मक सृजन किया है तो वहीँ प्रकृति ने ही ऐसे आश्चर्य सामने रख दिये हैं जिसे संजोना हमारा दायित्व बन जाता है. 

यह इसलिए भी ताकि दुनिया के हर देश में स्थित ऐतिहासिक, सांस्कृतिक अथवा प्राकृतिक महत्व के स्थल जो गीत सुना रहे हैं, सदियों तक मानव जाति और आने वाली पीढ़ियां उसे सुन सकें.

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