चारा और पशु-आहार की किल्लत और दूध का उचित दाम न मिलने से परेशान है पशुपालक
- आनंद कुमार
भारत में 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद कोरोना का संकट
गहराता जा रहा है। लेख लिखे जाने तक देश भर में 5,194 लोग कोरोना से संक्रमित पाए
गए हैं और 149 लोगों की इस संक्रमण से मौत हो गई है। हालाँकि देश से लेकर विदेशों के
वैज्ञानिक और दावा कम्पनियाँ तक कोरोना वायरस संक्रमण का
वैक्सीन खोजने में लगी हैं
लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाई हैं। ऐसे में, हमारे पास इस महामारी से बचने का
एकमात्र उपाय सामाजिक दूरी (Social distancing) ही है।
इस बीच, लॉकडाउन का बुरा प्रभाव हमारे देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही
व्यापार, व्यवसाय और असंगठित क्षेत्रों के कामगारों पर भी पड़ रहा है जिनका रोजगार
संकट में है। ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से संक्रमित मरीजों की
संख्या शहरों की अपेक्षा में भले ही कम है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना संकट की
मार ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों से लेकर खेतिहर मजदूरों, मुर्गीपालकों और पशुपालकों
पर भी पड़ रही है।
पशुपालकों पर दोहरी मार पड़ रही है जिनके सामने खुद का घर-परिवार
चलाने के साथ ही मवेशियों के लिए चारा प्रबंध करना मुश्किल हो गया है। 21 दिनों का
लॉकडाउन पशुपालकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। उत्तर
प्रदेश सरकार के तरफ से इंसानों के लिए राशन घर तक पहुँचाये जाने की व्यवस्था की
गई है, जोकि रिहायशी इलाकों तक ही सीमित है।
लेकिन पशुओं के चारा और आहार पहुंचाने की व्यवस्था पशुपालकों के घर
तक नहीं की गयी है। ऐसे में, पशुपालकों के सामने पशुओं के लिए चारा, खरी, चुन्नी और
चोकर का इंतजाम करना महंगा और मुश्किल पड़ रहा है। यही नहीं, 26 मार्च 2020 को सरकार ने पशु-आहार को एक राज्य से दूसरे
राज्य में ले जाने की अनुमति तो दे दी है लेकिन अभी भी देश और ख़ासकर उत्तर प्रदेश
के ग्रामीण क्षेत्रों में कई जगहों के पशु-आहार विक्रेताओं के पास आहार नहीं पहुँच
पा रहा है। जहाँ पहुँच भी रहा है, वहां दोगुने दाम में बेचा जा रहा है। साफ़ है कि
पशु-आहार विक्रेता कालाबाजारी कर रहे हैं। लेकिन पशुपालक कालाबाजारी में ही चारा
खरीदने को मजबूर हैं।
उल्लेखनीय है कि 2012 में 20 वीं पशुगणना के अनुसार देश में 14.51
करोड़ गाय, 10.98 करोड़ भैसें हैं और बैलों की संख्या 18.25 करोड़ है। इसमें दुधारू
पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है। इन सभी पशुओं को उचित मात्रा में
चारा मुहैया करवाने की जरूरत है। अगर इतनी बड़ी संख्या में पशुओं
को
चारा उपलब्ध नहीं कराया गया, तो पशु भूख से मर जाएंगे।
एक बड़ी समस्या यह भी है कि लॉकडाउन के कारण शहरों में पशुपालकों के
दूध की खपत कम हो गई है। दूध की मांग नहीं होने से पशुपालक दूध फेंकने को मजबूर
हैं। पशुपालक होटल, चाय बनाने वाली दुकानें, वैवाहिक कार्यक्रमों में और मिठाई
बनाने वाली कंपनियों को दूध बेचते थे, जहाँ दूध का उपयोग बड़ी मात्रा में होता है।
इन दिनों लॉकडाउन के वजह से सभी चाय की दुकानें, होटल और मिठाई कंपनियों पर ताला
लटका हुआ है। इसके कारण दूध की खपत नहीं हो पा रही है।
सरकार ने दूध बिक्री को जरूरी सेवा में शामिल किया है। इसके बावजूद
गांव के पशुपालकों को शहर में दूध पहुँचाने के लिए पुलिस से रोकटोक का सामना करना
पड़ रहा है। बहुत से ऐसे पशुपालक हैं जो सार्वजनिक वाहनों से शहर में दूध ले जाकर
बेचते हैं लेकिन लॉकडाउन के वजह से वे शहर जा पाने में अक्षम हैं। वे आर्थिक संकट
के वजह से निजी वाहन का प्रबंध नहीं कर पा रहे हैं।
आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों के आय का प्रमुख स्त्रोत
शहरों में दूध बेचकर कमाई करना होता हैं। इसी आमदनी की मदद से वे अपने घर-परिवार
का खर्चा उठाते हैं, बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए खर्च करते हैं। लेकिन लॉकडाउन
के वजह से पशुपालकों का जीवन बेपटरी हो गया है। पशुपालकों
के सामने संकट खड़ा हो गया है क्योंकि उन्हें उचित दर पर दूध के खरीदार नहीं मिल
रहे हैं। ऐसे में, वे मजबूर है दूध को कम दाम पर बेचने के लिए। उचित दाम पर दूध न
बिकने के कारण पशुपालक पशुओं के चारा, खरी, चुन्नी, चोकर का खर्च नहीं निकाल पा
रहे हैं।
लॉकडाउन के वजह से ग्रामीण इलाकों में पशुपालक के गाय, भैंस चरने के
लिए बाहर नहीं जा सकते हैं। इससे पशुओं के सामने भोजन का संकट आने के साथ ही पशुपालकों
पर आर्थिक संकट भी मंडरा रहा है। पशुपालकों के गांव के बाहर और पास के शहरों/कस्बों तक
नहीं पहुँचने पाने के कारण शहरों में बड़ी कंपनियों के पैकेट बन्द दूध की मांग बढ़
गई है। कई जगहों पर प्रशासन की सख्ती के बावजूद दूध विक्रेता तय राशि से ज्यादा
राशि में दूध बेच रहे हैं। ऐसे में, छोटे पशुपालकों के लिए दूध बेच पाना मुश्किल
होता जा रहा हैं।
इसके साथ ही, दुधारू गायों और भैसों को पर्याप्त चारा नहीं मिल पाने के
कारण दूध उत्पादन की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इस
तरह पशुपालकों पर दोहरे संकट की मार पड़ रही है। एक तरफ घर-परिवार को पालने का संकट
और दूसरी तरफ मवेशियों को चारा उपलब्ध कराने की चुनौती। पशुपालक बेजुबान जानवरों
को चारा की व्यवस्था करने के लिए अपने घर-परिवार का पेट तो काट सकते हैं लेकिन
अपने पशुओं को कैसे समझाएं कि इन दिनों देश में कोरोना का संकट छाया हुआ है और
तुम्हारा मालिक आर्थिक संकट की मार झेल रहा हैं।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में बड़ी दूध मंडी है, जहाँ
जिले का ज्यादातर दूध शटल ट्रेन से सुबह पहुंचता था जिससे पशुपालकों के दूध की
मांग बढ़ जाती थी और वे अच्छा मुनाफा कमा लेते थे। लेकिन लॉकडाउन के वजह से दूध
मंडी में सन्नाटा पसरा हुआ है और पशुपालकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया
है। अगर लॉकडाउन बढ़ता है तो पशुपालकों की परेशानी और बढ़ेगी।
ऐसे में, यह जरूरी हो जाता है कि सरकार पशुपालकों की मुश्किलों पर
तुरंत ध्यान दे खासकर पशुओं के सस्ते चारे और पशु-आहार की व्यवस्था करे और दूध को मंडी
में पहुंचवाने और उसका उचित दाम दिलवाने का इंतजाम करे। इसके बिना ज्यादातर
पशुपालकों के लिए दोहरी मार झेल पाना मुश्किल होगा।
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