Thursday 23 April 2020

उलझे जीवन को सुलझाता चीज़केक

वेब सीरीज: चीजकेक

जो हमें जिन्दगी जीना सिखाते हैं और हमारी जिंदगी को और बेहतर बनाते हैं  


  • करिश्मा सिंह

कुत्ते पसंद हैं आपको? कुछ लोगों को कुत्ते कुछ खास पसंद नहीं होते या पसंद होते हैं तो इतने कि वे उन लोगों को अपराधी के तौर पर देखने लगते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं होते। मुझे कुत्ते पसंद हैं पर उनसे डर भी लगता है।
खैर, इन दिनों लॉकडाउन में एक सिरीज़ देखी- “चीज़केक”। शुरुआत में बोझिल सी लगने वाली यह सिरीज़ इतने ह्यूमन कंपैशन के साथ लिखी गई है कि आप भूल जाते हैं कि सिरीज़ का मुख्य किरदार कोई सुपर स्टार नहीं बल्कि एक गोल्डन रिट्रीवर (कुत्तों की एक प्रजाति) है। रोज की आम सी दिनचर्या में आम सी ज़िदगी जी रहे आम आदमी के लिए यह सिरीज़ किसी खास ट्रीट जैसी मालूम होती है।

इन दिनों एक्शन और थ्रिल की बढ़ती मांग के मध्य जब बीच में कहीं से थोड़ा सा समय निकालकर आप इसे देखने बैठेंगे तो यह जानना मुश्किल होगा कि यह साधारण सी सिरीज़ इतनी दमदार हो सकती है। सिरीज़ के पात्र सीमित हैं जिसके कारण दर्शक ज्यादा उलझते नहीं और इसी वजह से इसका मैसेज आसानी से समझा जा सकता है। जीतू भईया के नाम से मशहूर अभिनेता जीतेन्द्र कुमार और अभिनेत्री आकांक्षा ठाकुर की बेहतरीन अदाकारी ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया है।

वास्तव में, हम मिलेनियल्स की जिंदगी इतनी उलझी है कि इसके फेर में उलझ कर हम किसी और चीज़ पर ध्यान ही नहीं देते। सोशल मीडिया जो ट्रैंड्स सेट कर देता है बस उसी के पैमाने पर हम अपने आप को फिट करने की कोशिश करते रहते हैं। दोनों ही पात्रों के पास अपनी अपनी परेशानियां हैं, सपने हैं और बहुत सारी शिकायतें हैं। कॉरपोरेट वर्ल्ड के खिलाफ रैंट भी है और शराब पीकर उसी कॉर्पोरेट की पार्टियों में फिट हो जाने की आकांक्षा भी।

ऐसे में, एक कुत्ता किसी के जीवन को इतना प्रभावित कैसे कर सकता है, यह जानने के लिए 'चीज़केक' को देखा जाना चाहिए। कई बार हम ऐसी स्टडीज़ के बारे में पढ़ते हैं जिनसे यह सिद्ध हो जाता है कि जानवरों के भीतर इंसानों से कहीं ज्यादा प्रेम, दया और करूणा होती है। बस इसी दया, प्रेम और करूणा को पलाश वासवानी और गौतम वेद (लेखक) ने शब्दबद्ध कर दिया है। साधारण भावों को सहजता से पर्दे पर उतार दिया गया है। इसे देखते देखते हो सकता है कई बार आपकी आंखें नम हो जाएं या आपको पता ही न चले कि आप इसे देखते देखते कब मुस्कुराने लग गए।

इसका असली जादू तब समझ आता है जब आपके भीतर का डर प्रेम में बदलने लगता है। अंत में, सीरिज में शानदार मोड़ आता है और आप स्वयं स्तब्ध रह जाते हैं कि कोई कुत्ता किसी के जीवन का इतना आवश्यक
हिस्सा हो सकता है। किसी की जिंदगी में आकर उनके पूरे रिश्ते को प्रभावित कर सकता है और नकारात्मक हो चुकी जिंदगी को सकारात्मक कर सकता है। 

अक्सर सड़क पर या किसी ढाबे पर बैठे हुए मैंने भी बहुत से कुत्तों को दुतकारा है लेकिन इस सीरिज को देखते हुए मुझे अपनी गलती का एहसास होना ही इस सिरीज़ की सफलता है शायद! हो सकता है यदि उस समय उसे दुतकारने की बजाय पुचकार दिया होता तो शायद कुछ और सफल संबंध इस असफल जिंदगी की किताब में दर्ज हो जाते। इत्तफाक की बात तो यह है कि बीते कल विश्व पृथ्वी दिवस भी था। इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी की कोख में अमूल्य चीजें छिपी हैं।

कुत्ते को प्यार देने के साथ ही इनके और हमारे बीच के अंतर को समझते हुए एक सहज रिश्ता बनाया जा सकता है। 'चीज़केक' जैसी हल्की-फुल्की वेब सिरीज़ का इतना गहरा प्रभाव सहज इंसानी भावों की बानगी भर है। समय निकालकर देख डालिए और अपने भीतर के भावों के साथ सहृदय हो जाइए। क्या पता आपको भी कहीं कोई 'चीज़केक' मिल जाए जिसके भीतर का प्यार और करुणा आपको आपकी परेशानियां भूलकर सहज प्रेम को स्वीकार कर जीना सिखा दे। ज़िंदगी को थोड़ा सा और सुन्दर और जीने लायक बना दे।

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