Wednesday 15 April 2020

जब चैपलिन ने हिटलर को ललकारा, कहा- नफरत का दौर गुजर जाएगा, तानाशाह मर जायेंगे

जन्मदिन विशेष : चार्ली चैपलिन 

वह महान अभिनेता जिसकी जिंदगी दूर से देखने में कॉमेडी लगती है लेकिन पास से देखने में एक ट्रेजडी सी दिखती है  

  • अखिलेश त्रिपाठी 

“My pain may be the reason for somebody's laugh. But my laugh must never be the reasons for somebody’s pain.” 

“मेरा दर्द किसी के लिए हंसने का कारण बन सकता है, लेकिन मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए।” 

ये कथन उस महान कलाकार का है जिसने अपने निजी जीवन के दर्द और गम को दबा कर दुनिया के लबों पर मुस्कान बिखेरने का काम किया। वह चार्ली चैपलिन जिसने अपने जीवन की पीड़ा, गरीबी और त्रासदी की परवाह किए बिना से पूरी दुनिया में हंसाने और गुदगुदाने का हुनर पैदा किया। वह कामेडियन जिसने हिटलर और मुसोलिनी जैसे शासकों की तानाशाही को खुलकर चुनौती देने का काम किया और उनका खुलेआम मखौल बनाया। कहने की जरूरत नहीं है कि चार्ली चैपलिन के व्यंग्य का निशाना गरीब, कमज़ोर, महिलाएं और अल्पसंख्यक नहीं थे बल्कि वे ताकतवर तानाशाह और अमीर थे जो लोगों की हंसी छीनने का काम करते हैं. जाहिर है कि उनकी हंसी कभी किसी के दर्द का कारण नहीं बनी बल्कि दर्द में पड़े लोगों के लिए राहत बनकर आई.   

ये कथन उस शख़्स का भी है जिसकी कब्र खोद कर शव चोरी कर लिया गया। दुनिया भर के सिने-प्रेमी उसे‘साइलेंट एरा’ का इकलौता ‘बादशाह’ कह कर पुकारते हैं। 

दुखों के पहाड़ तले पला चैपलिन का बचपन

हँसी के बेताज बादशाह, हॉलीवुड अभिनेता, संगीतज्ञ और फ़िल्ममेकर चार्ली का आज जन्मदिन है। आज से ठीक 131 वर्ष पहले 16 अप्रैल, 1889 को चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन का लंदन में जन्म हुआ था। चार्ली का बचपन बड़ी ही गरीबी और मुश्किलों में गुजरा। ऐसा कहा जाता है कि उनके पिता शराबी थे, मां पागलपन की शिकार थीं। चार्ली बचपन में बीमार रहते थे। वो अपना ज़्यादातर समय बिस्तर पर लेट कर ही गुजारते थे। मां खिड़की से बाहर का नज़ारा लेकर चार्ली को बताती थी कि बाहर क्या हो रहा है। 

बताते हैं कि उनके हास्य के पीछे की एक वजह यह भी थी। कोई 9 वर्ष की उम्र से ही चार्ली ने पेट पालने के लिए काम करना शुरू कर दिया था। 13 वर्ष की आयु में आखिर उन्हें अपनी पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी। और जब वह 19 वर्ष के थे तब उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। चार्ली ने अपने जीवन की इसी पीड़ा, दरिद्रता और त्रासदी को अपने हास्य का हथियार बनाया। उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं के साथ उन सभी समस्याओं को उठाने का प्रयास किया जिससे किसी भी व्यक्ति की आँख में आंसू छलक सकते हैं। 

चैपलिन का फिल्मी करियर

चैपलिन का 75 वर्ष का लंबा फिल्मी करियर रहा है। इस दौरान उन्होंने दर्शकों को बिना बोले ही गुदगुदाने, हंसाने और रोमांचित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनका ये काम निरंतर जारी रहा। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने स्टेज-एक्टिंग और कमेडियन का काम शुरू कर दिया था। चार्ली जब 19 वर्ष के थे तब एक अमेरिकन
कंपनी ने उन्हें साइन कर लिया और वह अमेरिका चले गए। वहीं से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। अपने पूरे करियर के दौरान उन्होंने पांच सौ से अधिक धुनों का निर्माण किया और न जाने कितनी ही फिल्मों में काम किया। 

उनकी पहली फ़िल्म 1914 में ‘मेकिंग अ लिविंग’ आयी। 1917 में‘द इमिग्रंट’ और इसके बाद उनकी पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म 1921 में ‘द किड’ आयी। इसके साथ ही उन्होंने ‘द गोल्ड रश’ (1925) ‘सिटी लाइट्स’ (1925) ‘मॉडर्न टाइम्स’ (1936) ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ (1940) ‘लाइमलाइट’ (1952) और ‘अ वुमन ऑफ पैरिस’ जैसी सैकड़ों फिल्मों में काम करके अपने हुनर की जादूगरी छोड़ी।  उनकी ये तमाम फिल्में विभिन्न पुरस्कारों से पुरस्कृत हुईं और राष्ट्रीय फ़िल्म रजिस्ट्री में शामिल करने के लिए भी चुनी गईं। 

6 जुलाई,1925 को वे "टाइम" मैगज़ीन के कवर पर आने वाले पहले एक्टर बने। इसी के साथ एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब उनकी फ़िल्म 1973 में ऑस्कर के लिए चुनी गई तो ऑस्कर समारोह में उन्हें 12 मिनट का स्टैंडिंग-ओवेशन मिला। यह ऑस्कर इतिहास का सबसे बड़ा स्टैंडिंग ओवेशन था। 

भारतीय सिनेमा पर भी पड़ा चैपलिन के जादू का प्रभाव 

विश्व के शायद ही किसी देश का सिनेमा हो जिस पर चार्ली चैपलिन के अभिनय का प्रभाव न पड़ा हो। ऐसे में, भारत का सिनेमा भी इससे अछूता कैसे रह सकता था? भारत में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव राज कपूर पर पड़ा।भारतीय सिनेमा के ‘ग्रेट शो मैन’ कहे जाने वाले राज कपूर, चार्ली चैपलिन से ख़ासे प्रभावित हुए। उन्होंने 'श्री 420', 'अनाड़ी', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'मेरा नाम जोकर' जैसी कुछ फिल्मों के माध्यम से चार्ली को हिंदी सिनेमा के परदे पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की।

यही वजह है कि राज कपूर को ‘भारत का चार्ली चैपलिन’ कहा जाता है। इसके अलावा 1975 में आई फ़िल्म ‘शोले’ में असरानी ने जो जेलर की एक्टिंग की वो भी चार्ली चैपलिन से ही प्रभावित दिखाई देती है। 1987 में आई ‘मिस्टर इंडिया’ में श्री देवी ने अपने देसी अंदाज के साथ चार्ली जैसा ही एक्ट किया है। 21वीं सदी की फिल्मों की बात की जाए तो 2009 में आयी ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ में रणबीर कपूर, चार्ली चैपलिन के किरदार को ही अभिनीत करते हुए दिखाई देते हैं। इसके साथ ही न जाने कितनी फिल्में होंगीं जिनका अभिनय चार्ली के अभिनय से प्रभावित होगा। इस प्रकार फिल्मों को लेकर मेरी सीमित समझ यही कहती है कि बॉलीवुड सिनेमा में भी चार्ली का जादू कम नहीं रहा है। 

जब चैपलिन ने हिटलर को ललकारा, कहा- नफरत का दौर गुजर जाएगा, तानाशाह मर जायेंगे


चैपलिन का नाता विवादों से भी कम नहीं रहा है। कुछेक मीडिया इंटरव्यू में चार्ली चैपलिन को वामपंथ का पक्ष लेते हुए देखा गया। यह सब जर्मनी और अमेरिका को रास नहीं आया। दोनों ने ही मान लिया कि चार्ली रूसी जासूस हैं और दोनों ही देशों ने उनके पीछे अपनी-अपनी खुफिया एजेंसी लगा दी। 

वर्ष था 1940 और जर्मनी का तानाशाह एडोल्फ हिटलर, यहूदियों पर अत्याचार किये जा रहा था। नरसंहार की घटनाएं बड़े स्तर पर हो रही थीं। तभी चार्ली चैपलिन ने ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ नाम की पहली बोलती फ़िल्म बनाई।
इस फ़िल्म में चार्ली ने जर्मन तानाशाह हिटलर और इतालवी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के साथ फासीवाद पर करारा प्रहार किया है। यह फ़िल्म बनकर तैयार तो 1937 में ही हो गयी थी लेकिन इसे 3 वर्ष तक रिलीज नहीं होने दिया गया। उस समय के राजनीतिक हालातों में इस फ़िल्म को साहस का एक पर्याय माना गया। पूरी फिल्म में नाजीवाद का विरोध और यहूदियों के उत्पीड़न का चित्रण किया गया है। इस फ़िल्म के अंत में, चार्ली ने ‘यहूदी नाई’ के रूप में लगभग 6 मिनट का नॉन-स्टॉप भाषण दिया है। इसे बहुत ही क्रांतिकारी माना गया। इस भाषण में चार्ली ने कहा- 


"मुझे माफ कीजिए, मैं कोई सम्राट नहीं बनना चाहता। अभी भी मेरी आवाज लाखों लोगों तक पहुंच रही है, लाखों निराश स्त्री-पुरुषों और बच्चों तक। ये सारे लोग एक व्यवस्था के शिकार हैं। वह व्यवस्था, जो मनुष्यों को प्रताड़ित करती है और निर्दोषों को जेल में ठूंस देती है।मैं कहता हूं- निराश न हों। यह दुख एक गुजरता हुआ लालच है। नफरत का यह दौर गुजर जाएगा, तानाशाह मर जाएंगे। जिस सत्ता को उन्होंने जनता से छीन लिया है, एक दिन उसे वापस करना ही होगा।

सैनिकों! अपने-आपको जालिमों के हवाले मत करो। तुम मशीन नहीं हो। तुम जानवर नहीं हो। तुम इंसान हो।
आओ, लोकतंत्र के नाम पर इस शक्ति का इस्तेमाल करो। एक हो जाओ। हम एक नई दुनिया के लिए लड़ेंगे। एक ऐसी सुंदर दुनिया, जो हर आदमी को काम दे, नौजवानों को भविष्य और बुजुर्गों को सुरक्षा दे।

तानाशाह खुद को आजाद कर लेते हैं, लेकिन जनता को गुलाम बना देते हैं। हम उस वादे को पूरा करने के लिए लड़ें। आओ, दुनिया को आजाद करने के लिए लड़ें। इन सरहदों को मिटा दें। लालच, नफरत और असहिष्णुता को मिटा दें। आओ, हमें एक होकर लड़ना ही होगा।" 

कहने की जरूरत नहीं है कि चार्ली, एक आजाद और खुशहाल दुनिया की चाहत को समेटे हुए थे। उनका पूरा भाषण सुंदर और खूबसूरत दुनिया के निर्माण में आ रही बाधाओं के खिलाफ एक खुला विद्रोह था। चार्ली दुनिया को एक ग्लोबल-विलेज के तौर पर देखना पसंद करते थे। उनकी नज़र में सरहदें, इंसान को इंसान से बांटती हैं।वो उसे मिटा देना चाहते थे। कुछ इसी तरह गांधी भी अपने देश भारत में चाहते थे। ये बात अलग है कि गांधी ये
सब कुछ सिर्फ अपने देश के संदर्भ में ही चाहते थे। यदि ये कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि जो काम गांधी भारत में राजनीतिक-सामाजिक जमीन पर कर रहे थे, वही काम चार्ली चैपलिन फ़िल्म के पर्दे पर कर रहे थे। दोनों का उद्देश्य कुछ एक जैसा ही था। 

चार्ली चैपलिन की एक ऐसी ही और फ़िल्म को अमेरिका ने बैन कर दिया था। फ़िल्म का नाम था ‘लाइमलाइट’। 1952 की इस फ़िल्म को 21 साल तक रिलीज नहीं होने दिया गया। 1973 में जब यह फ़िल्म रिलीज हुई तो इसे बहुत सराहा गया। दर्शकों ने इसे बहुत प्यार दिया। बाद में इसी फिल्म को ऑस्कर अवार्ड से भी नामित किया गया। इसके बाद ही 1975 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने चार्ली चैपलिन को ‘नाईट’ की उपाधि से नवाजा। 

‘द ग्रेट डिक्टेटर’ फ़िल्म देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: https://youtu.be/CiC4ayDiKSo

सिर्फ भाषण सुनने के लिए इस लिंक पर जाएं:https://youtu.be/MEKIC3bmTTU


गांधी-चैपलिन मुलाकात: गांधीसे मिलना चाहते थे चैपलिन, गांधी ने कहा- कौन है ये चार्ली चैपलिन? 


आइए अब आपको एक रोचक किस्सा सुनाते हैं। 1931 का साल था। पहला गोलमेज सम्मेलन असफल होने के बाद गांधी ने एक बार फिर कमर कसी। गांधी दूसरे गोलमेज सम्मेलन के लिए कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि बनकर लंदन पहुंचे गए थे। इधर चार्ली चैपलिन भारत की आजादी के लिए लड़ रहे गांधी से बहुत प्रभावित थे।चैपलिन की मुलाकात ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल से होती रहती थी। उन्होंने चर्चिल से कहा कि वो गांधी से मिलना चाहते हैं। चर्चिल, गांधी को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे और ‘नंगा फकीर’ कहकर अपमानित करते थे। 

लेकिन इसके बावजूद भी चार्ली चैपलिन का संदेश गांधी जी के पास तक पहुंचाया गया। गांधी जी फिल्में वगैरह बहुत कम देखते थे और उनकी रुचि भी इसमें नहीं थी। गांधी ने छूटते ही कहा- कौन है ये चार्ली चैपलिन? गांधी
उन्हें नहीं जानते थे और उन्होंने एक आम प्रशंसक समझ कर दुनिया के सबसे प्रसिद्ध अभिनेता से मिलने से इनकार कर दिया। बाद में, जब गांधी जी के किसी विश्वासपात्र ने चैपलिन की खूबियों के बारे में उन्हें बताया और कहा कि वो भारत के लिए आपके द्वारा किये जा रहे प्रयासों के हमदर्द साबित हो सकते हैं तो गांधी ने मिलने की अनुमति दी। 

चार्ली चैपलिन गांधी से मिलने जा रहे थे। लेकिन वो दुनिया के महान अभिनेता होने के बावजूद भी नर्वस थे। वो बार-बार गांधी से मिलने का रिहर्सल कर रहे थे। ये बात खुद चार्ली ने लिखी है। चार्ली की मुलाकात गांधी से हुई। चार्ली ने गांधी से कहा- "मैं आपके देश और वहां के लोगों की आजादी से सहमत हूँ लेकिन मुझे आपकी एक बात समझ में नहीं आती है कि आप मशीनों का विरोध क्यों करते हैं? इसके बगैर तो सारा काम ठप हो जाएगा?" 

गांधी मशीनों के प्रयोग को लेकर चिंतित थे। उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं मशीनों के खिलाफ नहीं हूं लेकिन जब कोई मशीन किसी आदमी से उसका काम छीनती है तो मुझे ये बर्दाश्त नहीं होता। आज हम आपके देश के गुलाम हैं क्योंकि हम आपके सामानों के आकर्षण से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। अगर हम इस तरह के आकर्षणों से आज़ाद हो जाएं तो हम वाकई आज़ाद हो जाएंगे।’ 

इस बात का दावा नहीं किया जा सकता लेकिन ये शायद मुलाकात का ही असर था कि चैपलिन ने 1940 में आयी अपनी मशहूर फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ में हिटलर के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध को फ़िल्म का विषय बनाया। इस फ़िल्म के कई दृश्यों और विचारों में गांधी का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। वहीं दूसरी ओर गांधी जी भी अपना रुख मशीनों के प्रति कुछ नरम दिखाते हुए नज़र आये। 30 और 40 के दशक में गांधीजी मशीनों के प्रति उतने कट्टर नजर नहीं आते थे, जितने की पहले थे। 

गांधी-चैपलिन मुलाकात का वीडियो इस लिंक पर देखें: https://youtu.be/Fs-kEt3pEO0


कब्र से खोदकर चार्ली का शव कर लिया चोरी, फिर माँगी फिरौती

जब दुनिया क्रिसमस के पर्व में डूबी हुई थी, चार्ली ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 25 दिसंबर 1977 को चार्ली की मृत्यु हो गयी। वो एक बार फिर दुनिया को हंसते और खिलखिलाते हुए छोड़ गया, लेकिन मुफलिसी ने उसका पीछा फिर भी नहीं छोड़ा। उनकी मृत्यु से तीन महीने बाद उनकी कब्र को खोदकर उनका शव चोरी कर लिया गया। चोरों ने ऐसा उनके परिवार से पैसा वसूलने के लिए किया था। उन्होंने शर्त रखी कि वह चार्ली चैपलिन
का शव तभी वापस लौटाएंगे जब उन्हें 6 लाख स्विस फ्रैंक्स दिए जायेंगे। चार्ली की पत्नी उना ने ये कहते हुए पैसा देने से मना कर दिया कि चैपलिन मेरे दिल में और स्वर्ग में हैं। 

आज भले ही चार्ली चैप्लिन इस दुनिया में ना हों पर उनका अभिनय आज भी उदास चेहरों पर मुस्कान ला रहा है। ये सच है कि मृत्यु के 43 वर्षों के बाद भी चार्ली चैपलिन का जादू मरा नहीं है। वह लोगों में आज भी सिर चढ़कर बोलता,नाचता और गाता है। उनकी अद्भुत अदायगी और कलाकारी आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है…!

हम उनको हमेशा-हमेशा याद करते रहेंगे… 

चार्ली चैपलिन के कुछ महत्त्वपूर्ण विचार: 


1. अगर आप जमीन पर देखेंगे तो कभी इंद्रधनुष नहीं देख पाएंगे।

2. इस अजीबोगरीब दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहां तक कि परेशानियां भी।

3. असफलता बहुत ही गैरजरूरी चीज है। इसके लिए खुद को मूर्ख बनाने की हिम्मत की दरकार होती है।

4. मुझे बारिश में चलना पसंद है क्योंकि उसमें कोई भी मेरे आंसू नहीं देख सकता।

5. हम सोचते बहुत ज्यादा हैं लेकिन महसूस बहुत कम करते हैं।

6. पास से देखने पर जिंदगी ट्रेजडी लगती है और दूर से देखने पर कॉमेडी।

7. आदमी का असली चेहरा तब दिखता है जब वह नशे में होता है।

8. अगर लोग आपको अकेला छोड़ दें तो जिंदगी खूबसूरत हो सकती है।

9. मुझे कॉमेडी करने के लिए सिर्फ पार्क, पुलिसकर्मी और एक खूबसूरत लड़की की जरूरत है।

10. ईश्वर के साथ मैं बहुत शांति के साथ हूं, मेरा संघर्ष तो इंसानों से है।

लाकडाउन में इससे अच्छा आइडिया और कुछ नहीं हो सकता है कि आज आप चार्ली चैपलिन की कुछ फिल्मों को देख जाएँ:  

चार्ली-चैपलिन की कुछ प्रमुख फिल्मों के वीडियो लिंक: 
‘द ग्रेट डिक्टेटर’ https://youtu.be/CiC4ayDiKSo

‘द किड’https://youtu.be/cM7qgImr7dM

‘द सर्कस’ https://youtu.be/rFJLPO1yFRI

‘सिटी लाइट्स’ https://youtu.be/TkF1we_DeCQ

‘लाइमलाइट’ https://youtu.be/Fr-hiTQxYks

‘द गोल्डरश’ https://youtu.be/f8v79UCDq6I

(ईटिंग मशीन: https://youtu.be/17PkUsTVa7g




( लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं. साहित्य के अनुरागी हैं और उसमें पढ़ाई भी की है. सिनेमा उनकी दिलचस्पी है.)  

6 comments:

  1. बेहद उम्दा लेख।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्छा लेख👍👍

    ReplyDelete
  3. सहजता से सारी जरूरी बातें पता चली...शानदार लेख भैया

    ReplyDelete
  4. बेहद शानदार लेख। बहुत ही प्रभावशाली।

    ReplyDelete
  5. अत्यंत शानदार लेख ।

    ReplyDelete

कोरोना वायरस के साथ ही डालनी पड़ेगी जीने की आदत

कोरोना का सबसे बड़ा सबक है कि अब हमें जीवन जीने के तरीके बदलने होंगे  संजय दुबे  भारत में कोरोना वायरस के चलते लगा देशव्यापी लाकडाउन...