Sunday 19 April 2020

टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग का आईआईटी ने क्यों किया बहिष्कार का फैसला?

भारत के शीर्ष सात आईआईटी ने टाइम्स की रैंकिंग में पारदर्शिता न होने का आरोप लगाया है। लेकिन टाइम्स का मानना है कि ये बहिष्कार खुद भारत के लिए नुक़सानदेह है

  • अनुराग पांडेय

विश्व के सर्वोत्कृष्ट विश्वविद्यालयों की रैंकिंग जारी करने वाली ब्रिटिश संस्था- टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में इस बार दुनिया के 100 शीर्ष संस्थानों में भारत के सिर्फ़ एक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) को शामिल किया जाएगा। इससे पहले भारत के शीर्ष सात आईआईटी ने टाइम्स की रैंकिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने का आरोप लगाया था और इसका बहिष्कार करने का फैसला किया था। इसके ठीक एक दिन बाद टाइम्स की यह घोषणा न सिर्फ चौकानेवाली है बल्कि ये सवाल भी खड़े करती है कि क्या इस रैंकिंग को निर्धारित करने वाले मानक सार्वभौमिक नहीं हैं? क्या इन मानकों को कुछ खास देशों के मुफीद तैयार किया जाता है ताकि उन्हें उसका फायदा मिल सके?


गौरतलब है कि पिछले हफ्ते आईआईटी-बॉम्बे, आईआईटी-दिल्ली, आईआईटी-रुड़की, आईआईटी-मद्रास, आईआईटी-खड़गपुर, आईआईटी-कानपुर और आईआईटी-गुवाहाटी ने एक संयुक्त बयान जारी करके टाइम्स की हायर एजुकेशन रैंकिंग का बहिष्कार करने का फैसला किया था। भारत के इन शीर्ष संस्थानों का कहना है कि पिछले साल भी भारत के किसी संस्थान को शीर्ष 300 विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल नहीं किया गया था। इस बार उन्होंने टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग के प्रमुख से इस बारे में बात की और टाइम्स हायर एजुकेशन को अपनी रैंकिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने को कहा। इन सातों संस्थानों ने रैंकिंग प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि एक अन्य वैश्विक रैंकिंग एजेंसी कवकुरल सिमोंड (quacquarelli symond ) ने शीर्ष 200 संस्थानों में तीन और शीर्ष 300 में छह भारतीय संस्थानों को शामिल किया था।

क्यों विरोध कर रहे हैं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान


इन आईआईटी के विरोध की मुख्य वजह रैंकिंग के मापदंडों को बताया जा रहा है। पिछले वर्ष जारी की गई टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग के शीर्ष 300 पायदानों में भारत का कोई भी संस्थान शामिल नहीं था। अजीब बात ये थी कि आईआईटी-बंगलुरू और पहली बार में ही आईआईटी-इंदौर और रोपड़ ने टॉप 301-350 वर्ग में अपनी जगह बनाई थी जबकि सात पुरानी आईआईटी को इसमें जगह नहीं मिली थी। 

ये साल 2012 के बाद भारतीय संस्थानों का सबसे खराब प्रदर्शन था। इससे ना सिर्फ भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह लग गए थे बल्कि वैश्विक स्तर पर संस्थानों की छवि को भी नुकसान हुआ था।

क्या हैं मापदंड जिन पर होती है रैंकिंग

रैंकिंग करने के लिए टाइम्स हायर एजुकेशन निम्नलिखित पाँच मापदंडों का प्रयोग करता है: 

(1) शिक्षण का माहौल (teaching)
(2) शोध (research)
(3) शोध संदर्भ (citations)
(4) अंतरराष्ट्रीय पहुंच (international outlook)
(5) शोध की निजी फंडिंग (industry income)

क्या हैं इन मापदंडों पर संस्थानों की आपत्तियाँ?

आईआईटी-दिल्ली के निदेशक का कहना है कि आईआईटी-दिल्ली ने शोध में 100 में से 90 पॉइंट्स स्कोर किये हैं, लेकिन हमें विदेशी फैकल्टी और स्टूडेंट्स की श्रेणी में जीरो पॉइन्ट मिले हैं। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि आईआईटी अपने स्टूडेंट्स से खर्च का सिर्फ पाँच फ़ीसद फीस के रूप में लेता है जबकि विश्व के कई बड़े संस्थान फण्ड जुटाने के लिए विदेशी छात्रों को दाखिला देते हैं। इसके अतिरिक्त आईआईटी की परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। हमने इस बार पाँच देशों में इस परीक्षा का आयोजन किया था लेकिन सिर्फ भारतीय मूल का एक कोरियाई छात्र ही सफल हो सका । 

विदेशी फैकल्टी के प्रश्न पर उनका कहना था कि अधिकांश आईआईटी की फैकल्टी में वो प्रोफेसर शामिल हैं, जिन्होंने आईआईटी के बाद विदेश के नामचीन संस्थानों से उच्च शिक्षा और पीएचडी की है। शोध के लिए निजी निवेश को जुटाने के प्रश्न पर उनका कहना है कि अभी हमारे ऊपर इंडस्ट्री फंडिंग का कोई दबाव नहीं है। सरकार हमें फण्ड दे रही है। अभी तक बीटेक आईआईटी का फ्लैगशिप कोर्स रहा है लेकिन आने वाले सालों में संस्थान उच्चशिक्षा, शोध और पीएचडी पर अपना ध्यान केंद्रित करने की नीति पर काम कर रहा है।

आईआईटी के विरोध पर टीएचई का रुख

टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग संस्था के संचार प्रमुख का कहना है कि हमने अपने मापदंडों के बारे में सभी संस्थानों से सीधी बात की है और हमारे डेटा विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत तौर पर भी सभी संस्थानों के प्रमुख लोगों से मुलाकात की है। उनका कहना है कि टाइम्स की रैंकिंग के मापदंड सतत विकास लक्ष्यों को आधार मान कर तय किए जाते हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षा को लेकर समझ को साझा करना और विश्वविद्यालयों को बेहतर परिणाम देने के लिए प्रेरित करना है। उनका मानना है कि भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों का इस तरह रैंकिंग का बहिष्कार करना खुद भारत के लिए हानिकारक है।

आगे रास्ता क्या है? 

इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय संस्थानों ने टाइम्स की रैंकिंग पर जो सवाल उठाये हैं, वे तार्किक और वाजिब हैं. हर देश की शिक्षा व्यवस्था एक जैसी नहीं है और न ही उन देशों की शिक्षा नीतियाँ एक जैसी हैं. इसके बावजूद सभी देशों के शिक्षा संस्थानों को एक ही तरह के और वो भी पश्चिमी देशों के मानदंडों पर तौलने का क्या तुक है? इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि टाइम्स की रैंकिंग पूरी तरह वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक नहीं है और विकसित पश्चिमी देशों की ओर झुकी हुई है. यह एक मायने में सेव और संतरे की तुलना की तरह भी है. 

लेकिन टाइम्स रैंकिंग के बहिष्कार का मतलब यह नहीं है कि हमारी आईआईटी श्रेष्ठ हैं और उनमें कोई कमी नहीं है. उन्हें न सिर्फ और मेहनत की जरूरत है बल्कि दुनिया के बेहतरीन संस्थानों से सीखने की भी जरूरत है. उन्हें अपना स्वतंत्र रास्ता बनाना चाहिए. केंद्र सरकार को इन संस्थानों को वैश्विक स्तर का बनाने के लिए हर संभव मदद देना चाहिए.   

(लेखक अनुराग पांडेय भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं और जन सरोकारों से जुड़े विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।)

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