बंगाली सिनेमा की महानायिका और हिंदी सिनेमा में "देवदास" की पारो और "आंधी" की आरती देवी को कौन भूल पायेगा?
- पूजा कुमारी
सिनेमा की दुनिया में दादासाहब फाल्के अवॉर्ड एक ऐसा सम्मान है, जो हर कलाकार
का सपना
होता है। ऐसे सम्मान को ठुकराने का भला कौन सोच सकता है? लेकिन इस सम्मान
को ठुकराने का जज़्बा रखने वाली अभिनेत्री थीं- सुचित्रा सेन। उनके इस कदम से कहा
जा सकता है कि उन्हें सिर्फ अभिनय से प्रेम था, किसी अवॉर्ड की लालसा नहीं थी या
उन्होंने अवार्ड के लिए अभिनय नहीं किया। उन्होंने अपनी फिल्मों के किरदारों को पूरी
तरह से जिया है और लोगों के दिलों में अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी है।
पहले भी और आज के समय में भी जब यह आम धारणा है कि भारतीय सिनेमा में
अभिनेत्रियों का करियर शादी के बाद समाप्त हो जाता है, उसे कम हो चुनौती दे पाते
हैं। लेकिन उस धारणा को सुचित्रा सेन ने दशकों पहले तोड़ दिया. वे एक ऐसी अदाकारा थीं,
जिन्होंने शादी के बाद फिल्मी दुनिया में कदम रखा। सुचित्रा सेन ने हिंदी और
बंगाली सिनेमा में अभिनय किया। वे बंगाली सिनेमा की महानायिका थीं। आज उनके बारे
में जिक्र करने की वजह उनकी 89वीं वर्षगांठ है।
सुचित्रा उर्फ रोमा दासगुप्ता का जन्म 6 अप्रैल 1931 में पाबना जिले में हुआ
था जो अब बांग्लादेश में है। भारत विभाजन का दौर उनके परिवार को पश्चिम बंगाल में
ले आया। 1947 में मात्र 16 की उम्र में उनकी शादी एक धनी परिवार के दिबानाथ सेन से
हो गई थी। सुचित्रा के अभिनय के सपने को पूरा करने में उनके पति ने पूरा सहयोग
दिया। सुचित्रा ने अपने अभिनय की शुरुआत 21 साल की उम्र में बंगाली फिल्म ‘शेष कोथाय’ से की थी, जो
किसी कारणवश कभी रिलीज़ नही हो पाई।
लेकिन असल मायने में उनके करियर की शुरुआत 1952 में आयी 'शारे चौत्तोर' नाम की
बंगाली फिल्म से हुई। इस फिल्म में उनके साथ बंगाली अभिनेता उत्तम कुमार ने काम
किया था। इन दोनों के इस जोड़ी को लोगों से खूब सराहना मिली। जब सुचित्रा ने फिल्मी
दुनिया में कदम रखा था तब उनकी 5 साल की बेटी थी जिसे हम सब मुनमुन सेन के नाम से
जानते हैं। इस तरह एक बच्चे की
माँ होकर भी फिल्मी दुनिया में अपनी अलग पहचान
बनाने के कारण उन्होंने सिनेमा से जुड़ी कई भ्रांतियों को तोड़ा और अपने अभिनय की
ताकत का लोहा मनवाया।
सेन ने अपने पूरे जीवन में हिंदी और बंगाली फिल्मों को मिलाकर कुल 60 फिल्में कीं,
जिसमें से 30 फिल्में उन्होंने उत्तम कुमार के साथ की हैं। बंगाली सिनेमा में सुचित्रा
और उत्तम की जोड़ी उतनी ही लोकप्रिय है, जितनी राज कपूर-नरगिस, हेमामालिनी-धर्मेंद्र,
अमिताभ-रेखा और शाहरुख-काजोल की है।
सुचित्रा सेन ने हिंदी फिल्मों की शुरुआत 1955 में विमल रॉय की फिल्म ‘देवदास’ से की थी। इस
फिल्म में उन्होंने दिलीप कुमार जैसे बड़े कलाकार के साथ स्क्रीन शेयर किया था। इस
फिल्म में उन्होंने पारो का किरदार निभाया था, जिसके लिए उन्हें जमकर तारीफ मिली।
देवदास पर्दे पर सुपरहिट साबित हुई और इस फिल्म ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिलाया।
सुचित्रा सेन ने अपने फिल्मी करियर में सिर्फ 7 हिंदी फिल्में ही कीं जिनमें
से ‘देवदास’ और
‘आंधी’ को दर्शकों ने हाथों-हाथ लिया। ‘आंधी’ फिल्म में सुचित्रा सेन का किरदार भारत की तत्कालीन
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से प्रेरित था। इन्होंने भले ही हिंदी फिल्में
कम की हो, लेकिन आज भी उनके अभिनय की छवि लोगों की आंखों में धूमिल नहीं हुई है।
हिंदी सिनेमा में ‘देवदास’ तो दोबारा
बनी लेकिन सुचित्रा सेन ने जिस तरह अपनी सादगी और अभिनय के दम पर पारो के किरदार
में जान डाली थी उसे उनके दर्शक आज भी भूल नहीं पाए हैं।
सुचित्रा सेन को उनके जीवन में कई अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिनमें से ‘पदमश्री’ और ‘बंगा विभूषण’ बड़े पुरस्कार शामिल हैं। सुचित्रा
विदेशी पुरस्कार पाने वाली पहली अभिनेत्री थी जिन्हें तीसरे मॉस्को इंटरनेशनल
फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के अवार्ड से नवाजा गया। ‘एनडीटीवी मूवीज़’ के अनुसार 2005 में जब इन्हें
दादासाहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया तब इन्होंने इसे लेने से इसलिए मना कर दिया
क्योंकि वह नई दिल्ली के लिए यात्रा नहीं करना चाहती थीं।
रिपोर्ट्स के अनुसार सुचित्रा ने राज कपूर की फिल्म में काम करने से मना कर
दिया था जो कि अपने समय के बड़े फिल्म निर्माता-निर्देशक और अभिनेता थे और सत्यजीत
राय की ‘देवी
चौधराइन’ में समय की कमी के कारण काम नहीं कर पाई थी।
1970 में पति की मृत्यु के बाद भी सुचित्रा ने अपने अभिनय के करियर को जारी
रखा रखा। सुचित्रा की आखिरी फिल्म ‘प्रणय
पाशा’ थी जिसने पर्दे पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। 1978
में जब वह सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ ‘नाती बिनोदिनी’
नाम की फिल्म कर रही थी, तब इन्होंने अपने फिल्मी करियर से रिटायर
होने का निर्णय लिया और उस फिल्म को अधूरा ही छोड़ दिया।
इसके बाद अपने 25 साल के फिल्मी करियर को छोड़कर इन्होंने अपने बाकी जीवन को ‘रामकृष्ण
मिशन’ में
समर्पित कर दिया।
सुचित्रा सेन को 24 दिसंबर 2013 को फेफड़ो में इन्फेक्शन होने के कारण हॉस्पिटल
में भर्ती कराया गया। 17 जनवरी 2014 को हार्ट अटैक आने के कारण 82 साल की उम्र में
उनकी मृत्यु हो गई। आज भले ही सुचित्रा सेन हमारे बीच नहीं है, लेकिन सादगी से भरा
उनका अभिनय और उनकी फिल्में सदा याद रखी जाएंगी।
Thanks for providing such type of content.
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