Saturday 11 April 2020

कोरोना के अँधेरे के बीच कई उम्मीद की किरणें भी दिख रही है


कोरोना और लाकडाउन से बदल रही है लोगों की जीवनशैली 

  • मानसी समाधिया 

मानसी समाधिया 
चीन के वुहान शहर में जन्मे कोरोना वायरस के साथ फैली महामारी ने पूरी दुनिया को एक साथ और लगभग एक ही पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया है। देखा जाए तो हम एक बिलकुल अलग दुनिया में आ पहुंचे हैं जिसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। कोरोना वायरस ने पूरे विश्व भर में अपना प्रभाव छोड़ा है, चाहे वह देश की अर्थव्यवस्था हो, शिक्षा हो, राजनीति हो, विज्ञान या फिर पर्यावरण, सब कोरोना से प्रभावित हुए हैं। यह एक कोरोना पूर्व (BC) और कोरोना उपरांत (AC) दुनिया है।

यह यकीनन एक कठिन समय है और ऐसे में, सबके मन में यही आशा है कि यह समय भी बीत जाएगा, “This too shall pass”.

जहां इस वायरस से अलग अलग देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़े बुरे असर से उबरने में दुनिया को काफी समय लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस समय सब कुछ बुरा ही है। ऐसा बहुत कुछ है जो इस अँधेरे में एक रौशनी की तरह है। कोरोना वायरस के समय में जीवन के कई क्षेत्रों में नए और अलग तरह के काम हुए या हो रहे हैं। “पालिटिको” मैगजीन के एक आलेख के अनुसार, संकट का समय भी नए अवसर प्रदान करता है। आइये, इसे हम इसे भारत के संदर्भ में समझते हैं।


स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र के लिए यह संकट है एक मौका


कोरोना वायरस ने जिस तरह अचानक आकर सारी दुनिया को अस्त-व्यस्त कर देने की कोशिश की और काफी हद तक कामयाब भी हुआ है, वहीँ इसने हमारी सुस्त पड़ी चिकित्सा विज्ञान को एक नई गति देने का काम किया है यानी एक कैटेलाइजर/उत्प्रेरक का काम किया है। इस वक्त विश्व की हर एक लैब में वैज्ञानिक, डॉक्टर्स और इंजीनियर्स मिल कर कोविड-19 का वैक्सीन और दवा ईजाद करने में लगे हुए हैं।

यही नहीं, कोविड-19 आउटब्रेक ने हमारे कमजोर और नाकाफी हेल्थ और मेडिकल सिस्टम को सामने लाकर खड़ा कर दिया है लेकिन इससे निपटने के बाद मेडिकल साईंस के क्षेत्र में कई विकास और नए आविष्कार होना तय है। आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के जरिए कई तरह के काम किए जा सकेंगे।

उदाहरण के तौर पर गुरूग्राम के एआई पावर्ड स्टार्टअप स्टैक्यू ने 100 मीटर की दूरी से तापमान जांच लेने वाले थर्मल कैमरा लांच किया है। यह कैमरा अभी की स्थिति के साथ ही आगे भी इस तरह की बीमारियों से लड़ने में बेहद कारगर साबित होगा। इनके जरिए एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, अस्पताल आदि तमाम भीड़ भाड़ वाली जगहों पर लोगों का तापमान जांचना बेहद आसान हो जाएगा। 

चेन्नई के अस्पतालों में सोशल-डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए रोबोट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। जफी नाम के ये रोबोट्स कोरोना के मरीजों को अस्पताल में उनके बेड तक, दवाईयां, सेनिटाइजर और खाना पहुंचा रहे हैं। वहीं केरल के कोच्ची में कर्मी बॉट नाम के रोबोट अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन से अस्पतालों को सैनिटाइज भी कर रहे हैं।

लॉकडाउन के समय में लोग टेलीमेडिसिन का सहारा भी ले रहे हैं। इसके जरिए लोग अपने डॉक्टर्स से टेलीकम्यूनिकेशन के जरिए बात कर सलाह से रहे हैं। इसपर अभी तक लोगों का भरोसा कम था। ट्रेडिशनल तरीकों के चलते लोग डॉक्टर से मिलकर इलाज करवाने पर ज्यादा संतुष्ट महसूस करते हैं लेकिन भविष्य में लोग कम गंभीर बीमारियों के लिए इस विकल्प को चुनना पसंद करेंगे।


तकनीक और शिक्षा ने भी स्वीकार किया है इस चुनौती को  


कोविड-19 के चलते लोगों को अपनी जिंदगियां ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन ले जाने की जरूरत पड़ी। कोरोना के इस दौर में इन्फोर्मेशन, इंटरटेंनमेंट, एजुकेशन से लेकर ग्रोसरी और अपनों से जुड़े रहने का एकमात्र सहारा फ़ोन और इंटरनेट रह गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया अभियान से लोग इतने इंटरनेट फ्रेंडली नहीं हो पाए, जितने कोरोना के चलते हुए हैं। यह मुमकिन नहीं कि हम पूरी तरह डिजिटल लाइफ जीने लगें लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना युग हमारी जीवन शैली के एक बड़े हिस्से को ऑनलाइन शिफ्ट कर देगा।

उदाहरण के तौर पर जिस तरह सीबीएसई (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन) ने ऑनलाइन कक्षा की पहल की है, वह सबके सामने है। सीबीएसई की चेयरपर्सन अनीता करवल ने स्कूल एजुकेशन से हटकर स्कूल-होम कोलौबोरेशन एजुकेशन की बात की। साथ ही, एनसीईआरटी और सीबीएसई ने इस क्रम में इ-पाठशाला और स्वयं जैसे वेब और एप्प प्लैटफॉर्म भी दिए जिनके जरिए एक डिजिटल प्लैटफार्म पर क्लास के सभी स्टूडेंट्स एक साथ यह क्लास कर पा रहे हैं।

ऐसे ही क्लास कर रहे भोपाल से 10वीं कक्षा के वैभव बताते हैं, यह एक अच्छी पहल है, इस साल बोर्ड होने के कारण मुझे लॉकडाउन के चलते सिलेबस पूरा ना हो पाने की चिंता होने लगी थी, पर इस पहल के जरिए टीचर से सीधा संवाद मुमकिन हो सका है। फिलहाल, पूरी क्लास ऑनलाईन लेना मुमकिन नहीं हो पा रहा है, इसे सफल बनाने के लिए और बेहतर इंटरनेट की जरूरत पड़ेगी। एक शुरूआत के तौर पर यह एक बेहतरीन कदम है, पर इसपर और काम कर इसे और बेहतर बनाया जाएगा, तभी यह एक सफल प्रयास कहलाएगा।


वहीं ना सिर्फ युवा बल्कि हर उम्र और वर्ग के लोग अब ऑनलाईन शॉपिंग से परिचित हो रहे हैं, ना सिर्फ बड़े सुपर मार्ट्स बल्कि छोटे दुकान विक्रेता भी वाट्सएप्प पर लिस्ट मंगवाकर सामान घर भिजवाने के लिए तैयार हैं जिससे आज सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो हो ही रहा है और आगे डिजिटल शॉपिंग को भी बढ़ावा मिलेगा।


बदल रही है जीवन शैली


मनुष्य इस धरती का संभवतः सबसे विकसित जीव होने के साथ साथ एक सामाजिक प्राणी भी है। एक साथ मिलजुलकर, एक सोशल लाईफ में रहना, हमारी लाईफ स्टाइल यानि जीवन शैली का हिस्सा है। लेकिन कोरोना का असर हमारी जीवन शैली पर भी पड़ेगा।


कोरोना के साथ ही वर्क फ्राम होम बड़े पैमाने पर शुरू हो गया है जिसके बाद कई कंपनियों ने यह पाया कि इंटरनेट के जरिए होने वाले अधिकतर कामों में लोगों का ऑफिस आकर काम करना जरूरी नहीं है। लॉकडाउन के बाद भी वर्क फ्रॉम होम कल्चर को बढ़ावा मिलेगा।

पिछले कुछ सालों में स्विगी औऱ जोमैटो जैसी एप्लीकेशन्स के जरिए बाहर से खाना मंगवाना आसान हो गया था। खासकर युवाओं में ज्यादातर लोग बाहर के खाने पर निर्भर रहने लगे थे। ऐसे में, लॉकडाउन के वक्त कई सारे लोगों ने न सिर्फ घर का खाना खाना बल्कि घर पर खाना बनाना भी सीख लिया है। लोग “Less dining, More Cooking” के साथ घर पर रहकर एक हेल्दी लाईफ-स्टाईल जीने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। 


भारत में एक मिडिल क्लास परिवार भी घर के कामकाज के लिए डोमेस्टिक हेल्प और मेड जुटा
पाने में समर्थ होता है। ऐसे में, लोगों को घर का काम करने की आदत नहीं रह गई थी। इस वक्त जब पूरा देश बंद है, लोग घर के रोजमर्रा के काम खुद कर रहे हैं। यह एक बेहतर बदलाव है। इससे लोग स्वावलंबी बनने के साथ साथ अपनी मदद करने वाले लोगों के काम के महत्व को समझ रहे हैं जिससे वे आगे उनके प्रति अधिक संवेदनशील और दयालु हो सकेंगे।

“लॉकडाउन ने सचमुच हमें नए तरह से जीना सीखा दिया है और बताया है कि अपनी जरूरतों में कैसे रहना है”-यह कहना है अमर मिश्रा का जो अपने परिवार के साथ घर पर लॉकडाउन का समय बिता रहे हैं। वे आगे कहते हैं, घर पर किसी भी चीज के लिए कॉम्प्रोमाइज नहीं होता था, यदि कुछ बनना है और एक भी सामान नहीं है तो उस सामान के बिना खाना बना लेने की बजाए वह सामान लेकर आया जाता था। लेकिन लॉकडाउन ने बच्चों को अपनी जरूरतों को सीमा में रखना सिखा दिया है। यह बेहद जरूरी है।

ऐसे ही विशाखा कहती हैं, लॉकडाउन में घर पर रहना आ गया है, मैं रोज घर के बाहर जाना जरूरी समझती थी। घर पर बोर होती थी लेकिन अब घर पर रहना, परिवार के साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा है। लाकडाउन ने घर पर रहना सिखा दिया है।“


पर्यावरण: हवा बदल रही है


कोविड-19 महामारी लोगों के लिए जितना भयावह है, पर्यावरण के लिए उतना ही बेहतर साबित हुआ है। सालों बाद दिल्ली में एक्यूआई गुड पर पहुंचा है और कलकत्ता में चिड़ियों की आवाज सुनाई दे रही है। रिहाइशी इलाकों में फिर से तोते और गौरईया दिखने लगी हैं। हालांकि इन सभी बातों से इस समय खुश हो जाना तो जल्दबाजी होगी। लेकिन यह हम सबकी आँखें खोलने के लिए काफी है। हमें जरूरत है पर्यावरण के प्रति और सजग होने की।

शहरों में हवा का इस तरह साफ़ होना एक सबूत के तौर पर हमारे सामने है कि पर्यावरण को सबसे ज्यादा क्षति हम ही पहुंचा रहे हैं। यह सब देखकर उम्मीद की जा सकती है कि लोग इसे भूल जाने की आदत से हटकर इस विषय को गंभीरता से लेंगे औऱ सब कुछ वापस से ठीक हो जाने के बाद भी पर्यावरण के लिए संवेदनशील और उसे बचाने को लेकर और सक्रिय रहेंगे।

(लेखिका भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता की छात्रा हैं। इन्हें नयी जगहें देखना और घूमना पसंद है। मध्यप्रदेश में झीलों की नगरी भोपाल की रहने वाली हैं। किताबें पढने और कहानियां लिखने का भी शौक है।)

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