Wednesday 22 April 2020

जलवायु परिवर्तन से ख़ुदकुशी को मजबूर हो रहे हैं हमारे किसान

असामान्य बारिशतापमानकीटों का प्रकोपबाढ़सूखा और ओलावृष्टि से खेती-बाड़ी को भारी नुकसान हुआ है


विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष


आनंद कुमार


जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम ने पिछले कुछ सालों में बड़ा करवट लिया है। बारिश का बदलता चक्र किसानों के लिए संकट बनकर बरसता है। पूरे देश में विशेष रूप से उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत के किसानों के लिए बेमौसम बारिश, आंधी और ओलावृष्टि संकट का सबब है। अचानक बदलते मौसम का फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। 

पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि असामान्य बारिश, तापमान, कीट का प्रकोप, बाढ़, सूखा और ओलावृष्टि से खेती-बाड़ी को बहुत नुकसान हुआ है। अतिवृष्टि ( अत्याधिक बारिश) और अनावृष्टि (कम बारिश) तो हमारी खेती के बड़े संकट हैं। ऐसे में जब पूरा भारत कोरोना संकट से जूझ रहा है, तो यहाँ का किसान दोहरी मार झेल रहा हैं। कुछ दिन पहले बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की फसल को बड़ी मात्रा में तबाह कर दिया था। अब कोरोना संकट ने किसान के सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। लॉकडाउन के वजह से मजदूर नहीं मिल रहे हैं। इससे खेतों में पक चुकी फसल की कटाई प्रभावित हो रही है।

कई ऐसे मजदूर हैं जो इन दिनों क्वारंटाइन में हैं। मजदूर के अभाव में किसानों को खुद रबी फसल, विशेष रूप से गेहूं की कटाई करनी पड़ रही हैं। इसके अलावा हाल के दिनों में किसानों ने बेमौसम बरसात का कहर झेला है। अभी गेहूं की कटाई पूरी नहीं हुई थी कि पिछले दिनों उत्तर और मध्य भारत में एक बार फिर बेमौसम बारिश हो गई 

आंधी-बारिश से ख़राब हुई फसल


आम तौर पर तेज बारिश की वजह से गेहूं की बाले मुड़ जाती हैं और दलहन जैसी फसलों का रंग बदल जाता है। तेज हवा और ओलावृष्टि से गेहूं का दाना कमजोर हो जाता है, उसमें दाग भी लग जाते हैं। इससे किसानों को मंडी में अपने फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। बड़े पैमाने पर जब फसल खराब हो जाती है, तो बाजार में फसल का दाम बढ़ना स्वभाविक है। परिणामस्वरूप राशन महंगा हो जाता है। अगर वक्त से पहले कटाई नहीं हो पाती है, तो सरसों और चने की फसल के खेत में ही सूखने की संभावना बढ़ जाती है और उसके दाने खेत में ही गिर जाते हैं। 

इन दिनों फसल पक चुकी हैं और किसान मजदूर के अभाव में अपने परिवार के सहयोग से युद्धस्तर पर कटाई में लगे हैं लेकिन बेमौसम बारिश ने किसानों की उम्मीद पर फिर पानी फेर दिया है। ऐसा नहीं है कि किसानों को कोरोना संकट में ही बेमौसम बारिश के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। इसी साल मार्च महीने में जब मूसलाधार बारिश, आंधी और ओलावृष्टि हुई थी, तब भी किसानों की फसल बड़े पैमाने पर ख़राब हुई थी। ये वो समय था, जब फसल तैयार होने के आखिरी चरण में थी। अचानक बेमौसम बारिश और आंधी ने उनकी फसलों को भारी नुकसान पहुँचाया 

आत्महत्या को मजबूर किसान

आंकड़ों के मुताबिक, 15 प्रदेशों में बहुत सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी। छह प्रदेश अधिक बारिश वाली श्रेणी में शामिल थे। भारी बारिश उन जगहों पर हुई, जहाँ सबसे ज्यादा गेहूं, सरसों और दलहन की खेती होती है। ये बारिश लगभग 400 फीसद से ज्यादा हुई इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बारिश ने किसानों की फसल बुरी तरह प्रभावित की और उनको आर्थिक रूप से बड़ा नुक़सान पहुँचाया हालाँकि काग़ज़ों की बजाय ज़मीन पर स्थिति और भी बदतर है।

सूखे और बेमौसम बारिश से परेशान किसानों को मौसम की मार की कीमत अपनी जान देकर जान चुकानी पड़ती है। वह बैंक, सेठ, साहूकार और गांव में आर्थिक रूप से संपन्न लोगों से मदद लेके बुवाई करता है। मध्यवर्गीय किसान परिवार के सभी सदस्य बिना थके फसल को पकाने में मेहनत करते हैं, लेकिन अचानक किसी रोज उनकी फसल पर कुदरत का कहर टूट पड़ता है और किसान बर्बाद हो जाता है। जो थोड़ी बहुत फसल मौसम की मार से बच जाती है, वह मंडी में दलालों के चंगुल में फँस जाती है। इससे निराश किसान आत्महत्या को मजबूर हो जाता है। 

सो हम पाते हैं कि भारत की खेती मौसम पर बहुत ज़्यादा निर्भर है और भारत का मौसम भी दुनिया के बदलते मौसम के अनुरूप तेज़ी से करवट ले रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। सो कभी सूखा आता है तो कभी बाढ़। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर गेहूं का उत्पादन चार से पाँच करोड़ टन कम हो जाता है।
बदलते मौसम का प्रभाव सिर्फ बारिश पर नहीं, बल्कि खेत की मिट्टी की क्षमता पर भी पड़ता है। बढ़ते भूमि प्रदूषण की वजह से फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। पहले मानसून तय समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में आता था, जिसके लिए किसान पहले से तैयारी करके रहता था। अब जलवायु परिवर्तन की वजह से बेमौसम बारिश हो जाती है और कभी सूखा पड़ जाता है। कुछ फसलों की पैदावार के लिए विशेष तापमान और वातावरण की जरूरत पड़ती है। जैसे इन दिनों गेहूं और सरसों की फसल का मौसम है, जिसे ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। तापमान बढ़ने से ऐसे फसलों की खेती सम्भव नहीं है। अचानक तापमान में बदलाव और बारिश ऐसे फसलों को नुकसान पहुंचाती है। 

आम तौर पर शहर के लोगों को बारिश सुहानी लगती है लेकिन यही बरसात किसानों का दिल जलाती है। गरीब मध्यवर्गीय किसानों को तो सरकार की फसल बीमा योजना की भी जानकारी नहीं होती। नतीजतन वह फसलों को हुए नुक़सान की आर्थिक भरपाई भी नहीं कर पाते हैं। आज ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया के बदल रहे मौसम को हर देश गंभीरता से ले और इसमें रहे गंभीर बदलावों को दूर करने के लिए एक ठोस रणनीति बनाए। लॉकडाउन ने ही दिखाया है कि जब मानव कुछ दिन घरों में बंद रहा, तो कुदरत चहचहा उठी। हमें कुदरत के इस संदेश को समझना होगा और यथासंभव अपनी प्रकृति को बचाना होगा। हम भी तभी बच पाएँगे। 

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