Saturday 11 April 2020

क्या ग़रीबों के दुख हर सकेगा 1.7 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज?

कोरोना लॉकडाउन में काम-धंधे बंद होने की सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर   

  • अक्षय कुमार

कोरोना का प्रकोप दुनियाभर में कम होने का नाम नहीं ले रहा है। दिन-प्रतिदिन संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफ़ा हो रहा है। इस वायरस के कारण दुनिया की लगभग आधी से अधिक आबादी घरों में बंद है। भारत में भी पिछले कई दिनों से लोग अपने घरों से नहीं निकल पा रहे हैं। ये लॉकडाउन यानी घरबंदी आगे भी कुछ दिनों तक जारी रहने वाली है। इस लॉकडाउन के कारण देश में सभी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। तमाम कल-कारखाने, शैक्षणिक संस्थान, परिवहन व्यवस्था और छोटे-बड़े व्यापार इत्यादि पर ताले लगे हुए हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि कोरोना के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था इस सदी के सबसे खराब दौर में जाने वाली है। उधर, संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने एक बयान में कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 4.8 फीसदी की दर पर रहेगी। राष्ट्र संघ के मुताबिक, भारत में अर्थव्यवस्था बहुत खराब स्थिति में नहीं जायेगी, लेकिन इससे उबरने में देश को दो साल का समय लग जायेगा। यानी हालात अच्छे नहीं हैं।

पिछले 24 मार्च को देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 21 दिनों के लॉकडाउन का एलान किया था, उस समय उन्होंने कहा था कि इस लॉकडाउन का खामियाजा अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान के रूप में चुकाना पड़ेगा।
फ़िलहाल, लॉकडाउन का सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर दिख रहा है। लॉकडाउन शुरू होने के दो-तीन दिनों बाद ही मजदूरों का महानगरों से अपने-अपने गाँव पलायन सब ने देखा। रोजी-रोजगार छिनने के बाद एक हज़ार किलोमीटर तक बच्चे-महिलाएं पैदल जाने को विवश हुए। वे लोग गाँव तो पहुँच गए पर उनकी हालत वहाँ भी बदतर ही है 

बिहार में छपरा जिले के रहने वाले उमेश बनारस में एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते हैं। उमेश बताते हैं  कि होली में वह घर आए थे, उसके बाद बनारस लौटे, एक हफ्ते इंतजार किया पर काम नहीं मिला। कोरोना के कारण घर वापस आना पड़ा। घर में पत्नी और बच्चों समेत कुल सात लोग हैं। कोई जमापूंजी नहीं है। उमेश कहते हैं कि ये कयामत का महीना चल रहा है। 16 दिन तो कैसे भी गुज़ार चुके हैं, पता नहीं और कितने दिन भगवान इस संकट में रखेंगे। पहले गांव में भी कुछ काम मिल जाता था, लेकिन अब वहां भी नहीं मिल रहा। 

ऐसे ही मजदूरी करके अपना परिवार चलाने वाले संतोष बताते हैं कि लॉकडाउन के पहले तक वह गांव में ही मजदूरी करके खर्च चलाते थे जहां से रोज के 250 रुपये मिल जाते थे। अब एकदम से मालिक ने कह दिया कि एक महीने बाद काम होगा। सब लोग बेरोजगार हो गए हैं। इलाके में कई जगह गए पर कहीं काम नहीं मिला। परिवार में माता-पिता सहित सात लोग हैं। जो कमाते हैं, वह खाने-पीने में ही खत्म हो जाता है। अपनी खेती भी नहीं है, बंटाई में कुछ फसल लगाई है। कुछ पैसे उसमें लग गए हैं और अभी फसल होने में समय है। 

फ़िलहाल, एक महीना कहीं काम नहीं मिलेगा। उन्होंने घर-परिवार चलाने के लिए गांव के ही एक साहूकार से ब्याज पर पैसे उधार लिए हैं। संतोष बताते हैं कि उनके जैसे गरीब अगर कोरोना से नहीं मरे, तो खाए बिना जरूर मर जायेंगे।

कोरोना से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई राहत पैकेजों की घोषणाएं की हैं। केंद्र सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज देने का ऐलान किया है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि फौरी राहत देने वाले ये पैकेज क्या इन ग़रीबों की समस्याओं का दीर्घकालीन समाधान कर सकते हैं?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत किसी गरीब को भूखा नहीं रहने दिया जाएगा। अभी 80 करोड़ लाभार्थियों को हर महीने पाँच किलो मुफ़्त गेहूं या चावल प्रति व्यक्ति मिलता है। अगले तीन महीने तक इन्हें अतिरिक्त पाँच किलो गेहूं या चावल प्रति व्यक्ति दिया जाएगा। प्रति परिवार एक किलो दाल भी दिया जाएगा।

इसके अलावा विधवा, दिव्यांग और वृद्ध महिलाओं को निर्धारित पेंशन के अतिरिक्त एक हज़ार रुपये अगले तीन महीनों में दो किस्तों में दिए जाएंगे। इससे तीन करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा। 20 करोड़ ऐसी महिलाएं, जिनका खाता जनधन योजना के तहत खुला है, उन्हें 500 रुपया प्रति माह अगले तीन महीनों तक दिया जायेगा। इसकी पहली किस्त भेजी जा चुकी है।
साथ ही जिन लोगों को उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर मिले हैं, उन्हें अगले तीन महीनों तक मुफ्त सिलेंडर मिलेगा। इससे 8.3 करोड़ बीपीएल लाभार्थियों को सीधे फायदा मिलेगा। किसान सम्मान निधि योजना में पंजीकृत करीब आठ करोड़ से अधिक किसानों को दो हज़ार रुपये की राशि भेजी जा रही है। मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को अब 182 रुपये की जगह से 202 रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को 50 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा, जिसका फायदा 20 लाख स्वास्थ्यकर्मियों और 12 लाख डॉक्टरों को मिलेगा।

ऐसे ही, राज्य सरकारों ने भी कई राहत योजनाओं की शुरुआत की है। बिहार सरकार राज्य के बाहर फंसे बिहारी मजदूरों को तत्काल एक हजार रुपये की मदद राशि दे रही है। इसके साथ ही सभी जरूरतमंदों को प्रति व्यक्ति पाँच किलो मुफ्त अनाज के साथ सभी राशनकार्ड धारकों को एक हज़ार रुपये देने की व्यवस्था की गई है। 

ऐसी कई योजनाएँ अलग-अलग सरकारें चला रही हैं लेकिन क्या ये पर्याप्त हैं? क्या जरूरतमंद व्यक्ति को इसका फायदा मिल रहा है? अभी भी बहुत से दैनिक कामगार हैं, जिनके बैंक खाते नहीं हैं। उनका नाम बीपीएल कार्ड में भी नहीं है, जिससे उन्हें सरकार की मदद मिल जाए। सो लॉकडाउन आगे बढ़ने की सूरत में सरकार को इनकी मदद के और रास्ते तलाशने होंगे। गरीबों और निम्न मध्यवर्ग के लोगों के लिए रोटी-रोजगार के मुद्दे को भी हर हाल में प्राथमिकता देनी होगी. 

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