Sunday 5 April 2020

एक वायरस ने बदल दी दुनिया

कोरोना ने शक्तिशाली अमेरिका से लेकर भारत जैसे विकासशील देश के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है

  • रितिक कुमार

इस साल के शुरुआती दो महीनों तक कोरोना वायरस (Covid-19) को लेकर दुनियाभर में अलग तरह की चर्चाएं हो रही थीं। इनमें से ज़्यादातर बातें अटकलों और पूर्वानुमानों पर आधारित थीं। एक ओर जहां कोरोना की तुलना मौसमी फ्लू से की जा रही थी, वहीं एक धड़ा ऐसा भी था जो मान रहा था कि तापमान बढ़ने से कोरोना भी खत्म हो जाएगा। कोरोना की भयावहता का अंदाज़ा लगाने में दुनिया के कई देशों की सरकारों से चूक हुई, जिसका नतीजा ये है कि आज ये बीमारी लगभग पूरी दुनिया को अपनी जद में ले चुकी है।

हालाँकि चीन और दक्षिण कोरिया जैसे मुल्क इस बीमारी के फैलाव पर लगाम लगाने में कुछ हद तक सफल हुए हैं पर भारत और अमेरिका समेत कई मुल्क आज भी इसके संक्रमण को नियंत्रित करने की जद्दोजहद कर रहे हैं। अमेरिका में तो लापरवाही का आलम ये रहा कि शुरुआत में एक धड़ा वहाँ यह मानकर चल रहा था कि कोरोना से जितने लोग मरेंगे, उससे कहीं ज्यादा मौतें वहाँ सामान्य फ्लू से हो जाया करती हैं। लेकिन आज आलम ये है कि पूरी दुनिया का लगभग एक चौथाई संक्रमण सिर्फ अमेरिका में है और इस बीमारी से एक दिन में सबसे ज़्यादा मौतें (1169) वहीं हुई हैं।




चीन पर उठ रहे हैं सवाल


कोरोना संक्रमण की शुरूआत पिछले साल दिसंबर माह में चीन से हुई थी, लेकिन लेटलतीफ़ी ये रही कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल 11 मार्च को इसे विश्व-महामारी (Pandemic) घोषित किया। शुरुआत में विकसित देश यह मानकर चल रहे थे कि वो इस बीमारी से निपट सकते हैं, पर उनका अंदाज़ा ग़लत निकला। वैसे शुरुआत से ही कोरोना को लेकर दुनिया में तरह-तरह की चर्चाएँ रहीं। कुछ लोग इसमें चीन की साज़िश देख रहे थे तो कुछ इसे विश्व राजनीति में अपना आधिपत्य स्थापित करने का हथियार। लेंस अब जब अमेरिका और इटली जैसे देशों में हालात क़ाबू के बाहर हैं तो वहाँ की सरकारों के साथ-साथ दुनिया के कई देशों की सरकारों के हाथ-पांव फूल गए हैं।  

ऐसे में दुनियाभर में चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। बहुत से लोगों का कहना है कि जब कोरोना ने चीन में तबाही मचानी शुरु की थी, उसी वक़्त ख़तरे को भाँपते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोई बड़ा फैसला क्यों नहीं लिया ? चीन ने हालात बेक़ाबू होने तक उड़ान सेवाएं क्यों जारी रखीं, जिससे ये बीमारी दुनिया के कई कोनों तक जा पहुंची। चीन ने अपनी विमान सेवाओं पर रोक एकदम आख़िरी समय में क्यों लगाईं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब आने वाले समय में ढूँढे जाएंगे। हालाँकि आज चीन कोरोना के संक्रमण पर क़ाबू पाने का दावा कर रहा है और वहाँ कोरोना के जो नए मामले सामने रहे हैं, उसे वह विदेशों से आए व्यक्ति में पाने की बात कह रहा है। उसका कहना है कि चीन की सीमा के अंदर कोरोना का संक्रमण रुक चुका है। 


कोरोना पर बयानबाजी


कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया में सबसे पहले चीन से शुरु हुआ। माना जा रहा है कि चीन के शहर वुहान के एक मांस बाज़ार में इसकी शुरुआत हुई, जहां से यह पूरी दुनिया में फैल गया। इसलिए दुनिया के कई देश इसके संक्रमण को लेकर चीन पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुस्ती पर भी निशाना साधा जा रहा है। हाल ही में जापान के उपप्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोचीनी वायरस संगठनकहना चहिए। उन्होंने कोरोना से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की कथित लापरवाही पर भी सवाल उठाए हैं। 

इसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कोरोना के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और उन्होंने इसेचीनी वायरसतक कह दिया है, जिससे दुनियाभर में इस पर बहस छिड़ गई है।
दुनियाभर में इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि अगर कोरोना किसी 'तीसरी दुनिया' के देश से पूरे विश्व में फैलता तब भी क्या बड़े-बड़े देश उसके साथ ऐसे ही उदार होते, जैसे वह चीन के साथ हैं ? क्या उस गरीब मुल्क के साथ भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसे ही नरम रुख़ अपनाता? आख़िर कोरोना के पूरी दुनिया में फैलने का इन्तज़ार क्यों किया गया? जो कोरोना पूरे चीन में नहीं फैला, वो पूरी दुनिया में फैल गया। कैसे? अभी ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने बाक़ी हैं।

तेज़ी से फैलती है ये बीमारी


कोरोना की सबसे बड़ी भयावहता ये है कि इसका वायरस बहुत तेज़ी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँच जाता है। इतना ही नहीं, विशेषज्ञ बता रहे हैं कि सामान्य दिख रहे संक्रमित व्यक्ति की हालत महज़ 3-4 घटों में बहुत ज़्यादा ख़राब हो जाती है। नीचे के टेबल में जो आँकड़े हैं, उससे हम कोरोना के स्वभाव को समझने की कोशिश करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनियाभर के कई संस्थान कोरोना वायरस से मृत्यु, संक्रमण और बीमारी ठीक होने की दर निकालने की कोशिश कर रहे हैं। हालाँकि परिस्थितियाँ इतनी तेज़ी से बदल रही हैं कि अभी तक ठोस रूप में कोई परिणाम सामने नहीं पाए हैं। उदाहरण के लिए 5 मार्च तक पूरे विश्व में कोरोना के एक लाख 20 हज़ार मामले थे और सिर्फ 5 मार्च को ही 3100 नए मामले सामने आए। 

लेकिन महज़ छह दिनों बाद यानी 11 मार्च को कोरोना के मामलों की संख्या बढ़कर 7200 हो गई, जो 5 मार्च की तुलना में दोगुनी थी। इसी तरह 15 दिन के अंदर यानी 20 मार्च तक दुनियाभर में कोरोना के कुल मामलों की संख्या दो लाख 75 हज़ार हो गई जो 5 मार्च तक सामने आए मामलों से दोगुनी तादाद है। इसके बाद कोरोना और तेज़ी से बढ़ा और अगले छह दिन में ही यानी 26 मार्च तक इससे संक्रमित लोगों की तादाद पाँच लाख हो गई। आगे भी इसके बढ़ने की रफ़्तार जारी रही और 3 अप्रैल को कोरोना के 82 हज़ार नए मामले सामने आए। 3 अप्रैल तक दुनियाभर में कोरोना मरीज़ों की तादाद 10 लाख पहुंच गई, जो 26 मार्च तक सामने आए मामलों से दुगुनी संख्या है। सो कोरोना से प्रभावित देश आगे इस बीमारी पर कितना नियंत्रण रख पाएँगे, इस बारे में विशेषज्ञ अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।


दिनांक
 एक दिन में मामले
उस तारीख़ तक कुल मामले
5 मार्च
3100
1, 20,000
11 मार्च
7200
1,26,000
17 मार्च
15,000
1,98,000
20 मार्च
30,000
2,75,000
26 मार्च
60,000
5 लाख
3 अप्रैल
82,000
10 लाख से अधिक
स्रोत- विश्व स्वास्थ्य संगठन (आंकड़ों को लगभग में लिखा गया है)

किस उम्र के लोगों पर क्या है असर 


हाल के दिनों में संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा है कि कोरोना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी त्रासदी है, जिसने पूरी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया है। वैसे भी कोरोना की तुलना मौसमी फ्लू यानी सामान्य सर्दी-खांसी से करना बिल्कुल भी उचित नहीं क्योंकि मौसमी फ्लू से मृत्यु दर जहां 0.5 फीसदी है, वहीं कोरोना में मृत्यु दर 3.4 फ़ीसदी तक है। ये आँकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 3 मार्च को जारी किए। दुनियाभर में कोरोना से अभी तक 10 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है। इनमें से 4 लाख मरीज़ कोरोना संक्रमण से बाहर चुके हैं यानी ठीक हो चुके हैं। ये आँकड़े यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि कोरोना कितनी तेज़ी से फैलता है और लोगों की जान लेता है। चूँकि ये वायरस एकदम नया है, सो विशेषज्ञ अभी ये भी नहीं पता लगा पाए हैं कि इस बीमारी से ठीक हुए लोग दोबारा इसके संक्रमित हो सकते हैं या नहीं!

अमेरिका से छपने वाली पत्रिकाटाइमकी एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना से 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की मरने की ज्यादा आशंका है, जबकि 30 वर्ष से कम आयु के लोगों में मृत्यु दर कम है। साथ ही 9 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कोरोना के लक्षण नगण्य पाए गए हैं।रिसर्च में ये भी पता चला है कि जिन लोगों को पहले से ही मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल या सांस की बीमारी है, उनमें मृत्यु दर बहुत अधिक है। महिलाओं की तुलना में पुरुष इस बीमारी से ज़्यादा मर रहे हैं।

लोगों की उम्र
मौत की आशंका
80 वर्ष से अधिक
10 गुणा
70-79 वर्ष
5 गुणा
60-69 वर्ष
3 गुणा
50-59 वर्ष
1-2 गुणा
40 से नीचे
0.2 गुणा
स्रोत- इम्पीरियल कॉलेज, लंदन
इन आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि कोरोना से युवाओं की मृत्यु दर बहुत ही कम है। हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि युवा इस बीमारी से संक्रमित नहीं हो रहे। हाँ, दुनिया की बुजुर्ग आबादी कोरोना से ज़्यादा ख़तरे में है।


कई देशों पर भारी पड़ी लापरवाही


कोरोना से दुनिया के अलग-अलग देशों में संक्रमण और मृत्यु दर बिल्कुल जुदा हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ज़रूरी नहीं कि जो आँकड़े जनता के बीच रहे हैं, वे असल हालात का ही आईना हों। मृत्यु दर के मामले में यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहां कोरोना के कितने परीक्षण हो रहे हैं और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी है।  जिस देश ने इसे शुरु में ही गंभीरता से लिया, ज़्यादा लोगों पर परीक्षण किए और फिर उनको क्वारेंटाइन करके आबादी से अलग किया, वहां मामले तेज़ी से क़ाबू में आए और मृत्यु दर में कमी आई। चीन, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, वियतनाम और इस्राइल जैसे देश इसके प्रभाव को कम करने में काफ़ी हद तक सफल रहे हैं।
यदि अमेरिका की बात करें तो 5 अप्रैल तक यहाँ कोरोना संक्रमितों की संख्या तीन लाख का आँकड़ा पार कर चुका है। भारत में भी इसके मामले पिछले दिनों तेज़ी से बढ़े हैं और 5 अप्रैल तक यहाँ कोरोना मरीज़ों की तादाद 3378 हो चुकी थी। इस बीमारी से मरने वालों की संख्या इटली में सबसे ज़्यादा है और जर्मनी में कम।अमेरिका के जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के अनुसार, 19 जनवरी तक पूरी दुनिया में कोरोना के 100 मामले थे जो 1 अप्रैल तक बढ़कर 9 लाख से ज्यादा हो गए। इस बीमारी का एक रूप ये भी दिखा कि चीन के वुहान शहर में कोरोना के मामले जब क़ाबू में गए तो कर्फ़्यू हटाने का काम शुरू कर दिया गया। पर फिर वहाँ कोरोना के नए मामले सामने आने लगे। चीन अब फिर इससे जूझ रहा है। 
कोरोना से कितने कहां मरे
देश
मृत्यु दर
जर्मनी
0.9%
अमेरिका
1.8%
भारत
2%
ब्रिटेन
5%
इटली
11%
 स्रोत- टाइम
जर्मनी में मृत्यु दर कम होने के पीछे कई कारण बताए जा हैं। इनमें से सबसे प्रमुख है ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का परीक्षण। जर्मनी ने इस साल जनवरी से ही बड़े पैमाने पर परीक्षण शुरु कर दिए थे। दूसरा, वहाँ कोरोना से संक्रमित होने वालों में मध्यम आयु वर्ग के लोग ज़्यादा हैं, जो 46 वर्ष के आसपास है। वहीं इटली में करोना का प्रभाव 60 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगों में है, जो घातक साबित हो रहा है। साफ़ है कि इससे जर्मनी के अस्पतालों पर उतना दबाव नहीं है, जैसा इटली में है। टेलीग्राफ अख़बार की एक रिपोर्ट के अनुसार, इटली में संक्रमण से मारे गए 86 फ़ीसदी लोगों की उम्र 70 वर्ष से ज़्यादा है। इटली में दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी रहती है। वहां अभी जितनी मौतें हुई हैं, उनमें मात्र 12 फीसदी में ही सिर्फ कोरोना कारण बना है। बाक़ी मामलों में लोग कोरोना के अलावा अन्य बीमारियों से भी पीड़ित थे, जिन्हें सँभालना मुश्किल हो गया।
अमेरिका भी इस बीमारी से बुरी तरह जूझ रहा है। वहां प्रति 1000 व्यक्ति पर क्रिटिकल बेड यानी अस्पताल में बिस्तर की संख्या 34.2 है, जबकि जर्मनी में 29 और इटली में 12 बेड हैं। फिर भी अमेरिका में मृत्यु दर ज़्यादा  है। गार्डियन अख़बार की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीज़ों में 40 फ़ीसदी 55 वर्ष से कम उम्र के हैं जबकि 20 फीसदी 20-40 आयु वर्ग के। साफ़ है कि अमेरिका में युवा भी कोरोना के शिकार हो रहे हैं। हालांकि अमेरिका की सीडीसी (Centre for Disease Control and Prevention) नामक संस्था एक और जानकारी देती है। उसका कहना है कि किसी भी उम्र के लोग कोरोना के शिकार हो सकते हैं, ख़ासकर धूम्रपान करने वाले और हृदय की बीमारी से पीड़ित लोग। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के गंभीर परिणाम का कारण शुरुआत में वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की शिथिलता भी है। उन्होंने कोरोना को लेकर तुरंत कठिन फ़ैसले नहीं लिए, जिस कारण यह बीमारी वहाँ तेज़ी से फैली। राष्ट्रपति ट्रम्प इसके लिए लगातार वहाँ विपक्ष के निशाने पर हैं। 


क्या है कोरोना का इलाज


कोविड-19 एक नए स्ट्रेन का वायरस है, जिसकी जेनेटिक संरचना कोरोना परिवार के अन्य वायरस से थोड़ी अलग है। यही कारण है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक इसके लिए कोई सटीक दवा फ़िलहाल नहीं बता पा रहे क्योंकि आधुनिक विज्ञान के सहारे अब तक हमने कोरोना परिवार के वायरस से निपटने के लिए जो दवाइयाँ बनाई हैं, वह कोविड-19 पे बेअसर साबित हो रही हैं। यही कारण है कि एक अप्रत्याशित ऐलान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने नागरिकों को एंटी-मलेरिया ड्रग यानी मलेरिया की बीमारी को ठीक करने के लिए खाई जाने वाली एक ख़ास दवा लेने की सलाह दी है। 

ट्रम्प दावा कर रहे हैं कि हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्विन नामक यह दवाई आधुनिक विज्ञान में एक गेमचेंजर यानी निर्णायक साबित होगा। भारत में भी कोरोना के मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जिसे देखते हुए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने एंटीबॉडी पर आधारित कोरोना परीक्षण करने की विधा को मंज़ूरी दे दी है। ख़ास बात ये है कि इस परीक्षण के परिणाम आधे घंटे के अंदर जाएंगे। भारत जैसी विशाल और घनी आबादी वाले देश में इस नई परीक्षण विधि से कोरोना मरीज़ों को पहचानने में बहुत मदद मिलेगी। दुनियाभर के नेता कोरोना से लड़ने के लिए आपस में बातचीत कर रहे हैं और मदद की पेशकश भी। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था भी इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई है। सो ये तय है कि कोरोना के बाद की दुनिया वैसी नहीं रहेगी, जो इसके पहले हुआ करती थी।

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