Tuesday 7 April 2020

सितार के अनोखे जादूगर थे पंडित रविशंकर


सौंवीं जयंती पर विशेष 

रविशंकर का सितार और उसके सुर लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का आईना हैं 

  • स्वाति गौतम
  • नम्रता वर्मा
बीटल्स के जार्ज हैरिसन के साथ पंडित रविशंकर 
दुनिया भर के श्रोताओं को संगीत की आत्मा का दर्शन और अनुभव कराने वाले सितार के जादूगर का नाम था पंडित रविशंकर. आज उनका जन्मदिन है. वे जीवित होते तो आज अपनी सौंवी वर्षगांठ मना रहे होते. लेकिन वे जीते-ज़ी अपने संगीत के कारण दुनिया भर में एक किंवदंती (लीजेंड) बन गए थे. उनके सितार के तारों के झंकार के जरिये भारतीय शास्त्रीय संगीत ने दुनिया के कोने-कोने की यात्राएं कीं.

रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को बनारस में हुआ था. उनके पिता बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पद पर कार्यरत थे. मजे की बात यह है कि पंडित रविशंकर ने नर्तक के रूप में कला जगत में प्रवेश किया. अपने बड़े भाई उदयशंकर के नृत्य समूह के साथ कम उम्र में ही यूरोप और भारत के दौरे किया. लेकिन नृत्य में उनका मन जमा नहीं. अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़ कर सितार सीखना शुरू कर दिया. रविशंकर पहुँच गए मैहर जहाँ उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां इनके गुरु हुए.

मैहर में रविशंकर को एक नया जन्म मिला. यहाँ से इनकी संगीत यात्रा आरम्भ हुई. वह लंबे समय तक तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर ख़ान के साथ जुड़े रहे. 1944 में अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद रविशंकर ने संगीतकार के रूप में काम शुरू किया.1949 से 1956 तक ऑल इंडिया रेडियो, नई दिल्ली में संगीत निदेशक के रूप में भी काम किया.

लेकिन उनका मुकाम तो कुछ और था. 1966 में मशहूर संगीतकार येहुदी मेन्हुइन के साथ उन्होंने शानदार प्रस्तुति दी. वह कंसर्ट बहुत सफल रहा. संगीत की इन दोनों प्रतिभाओं का मिलन विश्व संगीत की महत्वपूर्ण घटना थी. पंडित रविशंकर बीटल्स ग्रुप के और जॉर्ज हैरीसन जैसे प्रख्यात
अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के भी प्रेरणा स्त्रोत रहे. देश-विदेश के तमाम पुरस्कारों के अलावा उन्हें तीन ग्रैमी पुरस्कारों से भी नवाजा गया. पद्मभूषण, पद्मविभूषण के साथ-साथ साल 1999 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया.

कम लोग जानते हैं कि पंडित रविशंकर ने हिंदी और बंगला सिनेमा में कुछ फिल्मों के लिए संगीत भी दिया. सबसे पहले उन्हें मशहूर निर्देशक चेतन आनंद ने अपनी बहुचर्चित फिल्म “नीचा नगर” का संगीत देने के लिए बुलाया. यह फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास की एक मील की पत्थर फिल्म है जिसे कांस फिल्म समारोह में ग्रांड प्रिक्स पुरस्कार मिला था. 

इस फिल्म का एक गीत है:
हैया रे हैया.. : https://www.youtube.com/watch?v=Vd1kj2lsEbs

पंडित जी ने इसके बाद ख्वाजा अहमद अब्बास की मशहूर फिल्म “धरती के लाल” (1946) के लिए संगीत दिया. यह फिल्म बंगाल के अकाल पर बनी थी. इसकी कहानी बहुत मार्मिक थी. इस फिल्म में एक गीत है:
अब ना जुबान पर ताले डालो : https://www.youtube.com/watch?v=duWa4G1nrVc

एक और गीत है
हम धरती के लाल: https://www.youtube.com/watch?v=5rvS8_6uLVg

उन्होंने प्रेमचंद के अमर उपन्यास “गोदान” पर इसी नाम से बनी फिल्म का संगीत भी दिया है. इस फिल्म के सभी गीतों में एक अलग तरह का माधुर्य है. इस फिल्म में एक बनारसी होली गीत है:
होली खेलत नन्दलाल बिरज में : https://www.youtube.com/watch?v=S-4nRKGRRAM

एक और फिल्म का जिक्र करना जरूरी है- अनुराधा (1960). इसमें उनका संगीत बिलकुल नए और अलग तरह का है. इस फिल्म के सभी गाने बहुत सुन्दर और कर्णप्रिय हैं. इस फिल में बलराज सहनी और लीला नायडू ने अभिनय किया है जो एक आदर्शवादी डाक्टर और उसके लिए अपना संगीत का कैरियर छोड़ देनेवाली गायिका की मार्मिक कहानी है. इस फिल्म के सभी गाने आज भी सुने जा सकते हैं. 
आप भी सुनिए:

उन्होंने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म "गांधी" से लेकर सत्यजीत रे की अप्पू ट्रायोलॉजी जैसी फिल्मों में भी शानदार संगीत दिया. लेकिन फ़िल्मी दुनिया उन्हें ज्यादा जंची नहीं. एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि मशहूर शायर इकबाल के "सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा" तराने को संगीत में पिरोने का काम पंडित रविशंकर ने ही किया था, जो आज भी हर हिंदुस्तानी के ज़बान पर रहता है.

पंडित रविशंकर का सितार लोकतंत्रीय आकांक्षाओं का आईना लगता है. उनके पूर्व के सितारवादकों ने गत, झाल, आलाप, लयकारी आदि बजाने वालों को अलग-अलग रखा था. इन सबकी ख्याति अपने क्षेत्र में ही हुआ करती थी. पंडित जी ने इन सबका समन्वय कर दिया. इस समन्वय से आलाप, झाले, लयकारी इत्यादि का आनंद दर्शकों को एक साथ मिलने लगा. हिंदुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में समृद्ध बनाया. परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, बैरागी तोड़ी,तिलक श्याम, कौशिक तोड़ी, मनमंजरी, मोहनकौंस आदि उनके बनाए प्रमुख राग है.

हर राग के सृजन के पीछे कोई न कोई कहानी है. "राग मोहनकौंस" गांधी जी के लिए रचा गया था. गांधी जी की मृत्यु के तुरंत बाद सुर "ग", "नि", "ध" की संगति से जो संगीत उन्होंने रचा उसे राग
मोहनकौंस नाम दिया. माना जाता है कि यह सुर शास्त्रीय राग मालकौंस के करीब है.

वे ऐसे क्रांतिकारी संगीतज्ञ थे जिनकी समय और समाज पर तीक्ष्ण दृष्टि थी. कला का सम्मान बढ़ाने में मीडिया के महत्व को उन्होंने बखूबी समझा. कोई चीज़ पहले से होती आई है, इसलिए उसे करना उनके स्वभाव के विरुद्ध है. उन्होंने सदैव परंपरा को सहेजा, रूढ़ियों को कभी नहीं. संगीत के जो सिद्धांत हमारे मौजूदा समाज से मेल नहीं खाते उसे त्यागने में उन्हें कोई झिझक नहीं होती थी.

शास्त्रीय संगीत में वे प्रयोग के ख़िलाफ़ कभी नहीं रहे, पर वे हमेशा कहा करते थे कि "प्रयोग उसी को करना चाहिए जिसकी जड़े मजबूत हैं, जिसने अपनी परंपरा को गहराई से समझा है." पंडित रवि शंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में बिना कोई समझौता किए उसे अपने प्रामाणिक रूप में पूरे आत्मविश्वास के साथ दुनिया के सामने प्रस्तुत किया. पंडित जी की लोकप्रियता का यह भी एक कारण है.
उनकी किताब "माई म्यूजिक, माई लाइफ" को पढ़कर आप बेहतर जान सकेंगे कि वे सिर्फ महान सितारवादक ही नहीं बल्कि संगीत के गहरे चिंतक भी थे. उनके संगीत में एक तरफ धीर मंद गति थी तो एक गतिशीलता भी जिसने पश्चिम को विस्मित कर दिया. उनके संगीत में चिंतन का ऐसा आयाम था जो किसी को भी भीतरी जगत की यात्रा करवाने में सक्षम था.

जिंदगी के आखिरी समय तक शिद्दत से नियमित रियाज़ करने वाले पंडित जी से जब एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि "आपके लिए सितार के क्या मायने है?" तो जवाब में पंडित जी ने कहा कि, “सितार के जरिये मैं अपनी आंतरिक भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ होता हूँ. चिंता, पीड़ा,
प्रसन्नता, शांति, आध्यात्म ये सभी इससे ही अभिव्यक्त होते हैं. सितार के बिना मेरा अस्तित्व ही नहीं, मुझे ऐसा लगता है.”

आज जब पूरा विश्व एक महामारी से जूझ रहा है. लॉकडाउन है. सब घरों में बंद है. ऐसे समय में हम बंद कमरों में बैठकर अपने लिए संगीत के मधुर दरवाजे खोल सकते हैं. यह समय है कि हम कलाकारों और संगीतकारों के बारे में और जानें, कुछ बेहतरीन तराने सुने. पूरे समय घर में रहने से बनने वाला मानसिक दबाव इन शास्त्रीय रागों को सुनकर पल में दूर हो जाता है. शुरुआत आज से ही कर सकते हैं पंडित रविशंकर जी के कुछ रागों को, सितार की धुनों को सुनने के साथ.

आज दुनिया भर में पंडित रविशंकर के चाहने वाले लोग, लाखों प्रशंसक उन्हें याद कर रहे हैं.  आप भी सुनिए और सितार के जादूगर की जादूगरी देख कर मग्न हो जाइए:
https://youtu.be/O7QP_QdoNqU

यह भी सुनिए:
https://youtu.be/p-ijCe1xRWQ

और अब यह:
https://youtu.be/kCsmvK06SCA

और इसे कैसे छोड़ सकते हैं:
https://youtu.be/Y7IQR53EV_k

8 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है.

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  2. डाटा एकत्र कर विश्लेषण किया गया बहुत खूब😊😊💐💐

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  3. The biography is presented with utmost melody♡

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  4. Apne hume is jankari se avgat kra kr humpr kripa darshayi h. Is mantramugdh kr dene vale sangeet ko apne bht hi sundar shabdo me sajha kia hai. Dhanywad apka din shubh rahe.

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