Monday 6 April 2020

धर्म देखकर हमला नहीं करता कोरोना वायरस


कुछ मुसलमानों को लगता है कि नमाज़ पढ़ने से, कुरान की तिलावत करने से और पाक-साफ रहने से कोरोना उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकता
  • शबनाज़ खानम
कोरोना वायरस को लेकर पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। ईरान से लेकर इटली और इंग्लैंड से लेकर अमेरिका तक, हर जगह की आबादी इसकी जद में है। जाहिर है कोरोना भारत भी पहुँचा और अब केंद्र सरकार कह रही है कि यह बीमारी देश में स्टेज-2 से स्टेज-3 के बीच है यानी अब कम्युनिटी ट्रांसफ़र तक भी पहुँच सकती है। पूरी दुनिया की तरह कोरोना ने भारत में भी जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। ये वायरस चीन के वुहान शहर से फैला, मगर कैसे, इस पर अभी विशेषज्ञ कुछ भी साफ-साफ कहने की स्थिति में नहीं हैं। चूँकि इस वायरस से दुनिया पहली दफ़ा वाबस्ता हुई है, सो अभी तक इसकी कोई अचूक दवा नहीं बन पाई है।
लेकिन इस सब के बीच इस वायरस को लेकर भारत में अलग तरह की परेशानियाँ सामने रही हैं, जो अमूमन मज़हबी हैं. दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ से तब्लीग जमात के जमावड़े के बाद बड़ी संख्या में जमाती इस वायरस की चपेट में हैं और भारतीय मीडिया का एक वर्ग इसे हिन्दू-मुसलमान का रंग देने में लगा हुआ है। पर मैं यहाँ दूसरी बात करना चाहती हूँ। मैं देख रही हूँ कि मुस्लिम समुदाय के एक धड़े में भी इस वायरस यानी कोरोना को लेकर कई भ्रांतियाँ घर कर गई हैं। केंद्र सरकार और मुख़्तलिफ़ राज्य सरकारें इस बीमारी पर काबू पाने के लिए अपने स्तर से कदम तो उठा रही हैं, पर जनता में इस बीमारी को लेकर अभी जागरुकता की कमी है। कुछ मुसलमानों के दिमाग में ये भ्रम है कि उन्हें ये बीमारी नहीं हो सकती। उनका कहना कि जो  नमाज़ पढ़ता है, कुरान की तिलावत करता है, वजू करके पाक-साफ रहता है, कोरोना उसका बाल भी बाँका नहीं कर सकता। जहालत ये है कि एक बड़ी मुस्लिम आबादी ऐसी जहालत में जी रही है। 

मुझे लगता है कि इसके दो कारण हैं। एक तो सरकारों की तरफ़ से इस बारे में ज़मीन पर जागरुकता कार्यक्रम ज़्यादा नहीं चलाए गए, दूसरी तरफ़ सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और ग़लत दावे वाले वीडियो वायरल हैं इसमें टिकटाॅक, यूट्यूब, फेसबुक और व्हाट्सअप का बड़ा रोल है। मशहूर वीडियो एप्प टिकटॉक  पर तो ऐसे बहुत सारे वीडियो सामने आए हैं जिनमें नौजवान ये संदेश देते हुए दिख रहे हैं कि मुसलमानों को कोरोना हो ही नहीं सकता। चूँकि टिकटॉक की पहुँच आज गाँवों तक है, सो भारत की एक बड़ी अशिक्षित मुस्लिम आबादी इसके प्रभाव में है। लोग ये मानने को तैयार ही नहीं कि अगर वे अल्लाह की इबादत कर रहे हैं तो उन्हें कोरोना छू भी पाएगा। 

मैं अभी अमरोहा के एक छोटे से कस्बे से हूँ और यहाँ जब मैंने अपने आसपास की मुस्लिम आबादी से बात की, तो उनका यही कहना था कि मुसलमानों को कोरोना नहीं हो सकता? क्यों नहीं हो सकता, इस बारे में उनके अपने तर्क हैं। वे इबादत से कोरोना को भगा देना चाहते हैं। उनकी बातों से लगा कि कोरोना पहले धर्म पूछेगा, उसके बाद किसी इंसान को अपनी गिरफ़्त में लेगा। ये लोग मेरे पड़ोसी हैं पर ये एक अलग ही दुनिया में जी रहे हैं। आप रोज़ ख़बर देख रहे हैं कि क्या राजा और क्या रंक, क्या हिंदू और क्या मुसलमान, सब इसकी चपेट में रहे हैं पर ये लोग इसे मानने को तैयार नहीं।


भारत में अब तक कोरोना के 4200 से ज़्यादा मामले सामने चुके हैं।100 से ज़्यादा लोग इसकी वजह से मर चुके हैं। पूरी दुनिया में हजारों मुसलमानों को कोरोना का संक्रमण हुआ है। भारत में ही तबलीगी जमात के लोग बड़ी तादाद में इससे संक्रमित पाए जा रहे हैं। तो क्या ये मुसलमान नहीं है ? जमाती तो पाँच वक़्त की नमाज़ के पाबंद होते हैं, क़ुरआन पढ़ते हैं, फिर इनको कोरोना का संक्रमण कैसे हुआ ? कोई भी तर्कशील व्यक्ति ये सब सोचेगा, समझेगा, पर ऐसा नहीं हो पा रहा।

कोरोना का संक्रमण दुनिया में कितनी तेज़ी से फैला और इसे लेकर एहतियातन क्या कदम उठाए जा रहे हैं, ये इसी बात से समझा जा सकता है कि इस्लाम के सबसे पवित्र धार्मिक स्थल सऊदी अरब के मक्का में फ़िलहाल सालो भर होने वाले तवाफ नामक धार्मिक क़वायद पर रोक लगा दी गई है।   ये तब है, जब वर्ष 1918 में फ्लू जैसी विश्वव्यापी महामारी के दौरान भी हज को नहीं रोका गया था। उस वक़्त फ़्लू से दुनियाभर में तकरीबन 10 लाख लोग मरे थे। अब कोरोना का संकट है। सऊदी अरब समेत दुनिया के कई मुस्लिम बहुल आबादी वाले मुल्कों जैसे ईरान, तुर्की, यूएई, लेबनान, इराक, जॉर्डन आदि में मस्जिदों में या तो नमाज़ बंद कर दी गई है या फिर कम तादाद में नमाज़ियों को इकट्ठा होने को कहा गया है। सो भारत में भी मुसलमानों को इस बात का इल्म रखना चाहिए कि इस तरह की पाबंदियां उनकी ही जान की हिफाज़त के लिए लगायी हैं। इसलिए हमारा फ़र्ज़ है कि हम सरकार द्वारा फ़ौरी तौर पर लगाई गई इन पाबंदियों पर अमल करें और ख़ुद के साथ-साथ दूसरों की भी हिफ़ाज़त करें। सोशल डिस्टेंसिंग यानी समाज में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने की बात इसीलिए की जा रही है। 

ये देश हम सब का है और कोरोना से जंग में देश के हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई यानी हर मज़हब के लोगों को साथ आना होगा। धर्म की राजनीति हम बाद में कर लेंगे पर पहले खुद को इस बीमारी से बचाना होगा। सरकार को भी लॉकडाउन के अलावा अलग-अलग माध्यमों से देश के गांव-गांव तक कोरोना के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने की क़वायद तेज़ करनी चाहिए ताकि सोशल मीडिया के फेक न्यूज़ और ग़लत संदेश वाले वीडियो गरीब, अशिक्षित और भोली-भाली जनता को गुमराह ना कर सके। मुसलमानों को भी ये समझना होगा कि अल्लाह उसी की हिफ़ाज़त करता है, जो अपनी हिफ़ाज़त पहले ख़ुद करता है।

(लेखिका आईआईएमसी, दिल्ली, में उर्दू पत्रकारिता पाठ्यक्रम की छात्रा हैं)  

6 comments:

  1. यह सही है कि धार्मिक कारक इसके लिए ज़िम्मेदार हैं मगर थोड़ा ठहर कर सोचें तो समझ आएगा कि बीते सालों में हुई अल्पसंख्यक विरोधी घटनाओं ने सरकार पर उनके भरोसे को चकनाचूर कर दिया है। इसी का नतीजा है कि एक फेक न्यूज़ इंदौर में भीड़ को डॉक्टरों के खिलाफ़ उकसा देती है। 5-6 सालों में जो अविश्वास और गुस्सा मुस्लिम समुदाय में भरा है फेक न्यूज़ उसके फूटने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रही है।

    ReplyDelete
  2. A bad workman always quarrel with his tools ...........
    सब लोगो को पता चल जता है की इक़ठ्हा नही होना है जहा से मुस्लिम समुदाय का उदय हुआ वहा लोग जागरुक हो गये परंतु भारत के मुसलमान हमेशा की तरह अपनी मनमानी की और अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के चक्कर मे बन्दर के जैसे अपने ही घाव को बढा दिया ।
    और भी धर्म है भारत मे जिसने नवरात्रि मे एक भी दिन मंदिर नही गई आप जरुर जनती होंगी की हिंदु धर्म मे नवरात्रि का क्या महत्व है रामनवमी जैसे बड़े त्वोहर जिस्का मह्त्व सर्वोपरि है लोग घर मे मना जाते है और आज तक तो धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी इस धर्म को ध्होंग बतते आ रहे थे आज आप असली धर्मनिरपेक्षता का चस्मा लगा के देखे तो पता चल जाये गा की की कौन क्या है
    आप के अनुसार क्या सरकार अब हर धर्म को अलग से जागरुक करे ?
    इस प्रश्न पे भी लेख लिखिए गा
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया 👍👍👍👍

    ReplyDelete
  4. Bilkul theek kaha awareness ki bohat zarurat hai iss waqt jaha "illiteracy" aur "educated illiteracy" sabse zyada kaam kar rahi hai iss problem ko aur badane mein

    ReplyDelete

कोरोना वायरस के साथ ही डालनी पड़ेगी जीने की आदत

कोरोना का सबसे बड़ा सबक है कि अब हमें जीवन जीने के तरीके बदलने होंगे  संजय दुबे  भारत में कोरोना वायरस के चलते लगा देशव्यापी लाकडाउन...