ऋषि कपूर के जीवन के कुछ सुने-अनसुने किस्से
शुभम शर्मा
ऋषि कपूर का नाम सुनते ही याद आता है फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का वह छोटा बच्चा जो अपनी टीचर (सिमी ग्रेवाल) से दिल लगा बैठता है। जब वह किशोर हुए तो उनकी अदाकारी में फ़िल्म बॉबी ने हिंदुस्तान में टीनएज प्यार की परिभाषा ही बदल दी। ऋषि ऐसे घर में जन्मे थे जहां एक्टिंग रगों में दौड़ती थी। दादा पृथ्वीराज कपूर अभिनय के क्षेत्र में भीष्म पितामह रहे, उनके तीनों बेटे राज, शम्मी और शशि ने भी एक्टिंग में अपनी धाक जमाई।ऋषि का पूरा परिवार अदाकारों से भरा हुआ था। ऋषि की चाचियां गीता बाली और जेनिफर केंडल भी अभिनेत्री थीं। वही बॉबी फिल्म में डिम्पल कपाड़िया के पिता का रोल करने वाले प्रेमनाथ भी ऋषि के मामा थे। ये जानना भी रोचक है कि घर पर इतने एक्टर होने के बावजूद उनके यहाँ सिर्फ़ खाने की बात होती थी।
रियलिस्टिक फ़िल्मों पर ज़ोर
एक क़िस्सा बहुत दिलचस्प है। ऋषि कपूर अपने बेटे रणबीर कपूर की पहली फिल्म ‘सांवरिया’ का सेट देखने गए तो रणबीर से पूछ बैठे- "भई ऐसी दुनिया कहां होती है? इतना आलीशान सेट, बड़ा सा चांद, पूरा सेट नीले रंग में रंगा हुआ”। जब ऋषि यानी चिंटू के मुँह से ये बात निकली तो घबराए बेटे रणबीर ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इस फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली सामने ही थे। दीगर है कि बाद में यह फिल्म सिनेमाघरों में औंधे मुंह गिर गई। ये बेटे रणबीर के लिए एक सीख थी कि हक़ीक़त के जितना नज़दीक रहो, उतना अच्छा। फ़िल्में समाज का ही आईना होती हैं। राजकपूर से लेकर ऋषि कपूर की सारी फिल्में इसी के इर्द-गिर्द घूमती रहीं। ऋषि साब की डी डे हो, दो दूनी चार हो, मुल्क या फिर बॉबी, फैंटेसी का मसाला उनमें ज़्यादा नहीं होता था।
ऋषि कपूर ने मनमोहन देसाई के साथ भी फ़िल्में कीं। उनकी फ़िल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ में अकबर का रोल उनके चाहने वालों की यादों में आज भी जिंदा है। इस फ़िल्म में "शिर्डी वाले साईं बाबा" या "पर्दा है पर्दा" गीत सुनकर उनका निभाया किरदार आज भी दर्शकों की आंखों के सामने खड़ा हो जाता है। मनमोहन देसाई एक बात कहा करते थे- "भारत के लोगों के जीवन में पहले से इतने दुख और परेशानियां हैं तो मैं अपने सिनेमा में ऐसी दुनिया रचता हूँ, जिसको देखकर दर्शक अपनी परेशानियां भूल जाए" । काफ़ी हद तक ऋषि कपूर की फ़िल्में इसी श्रेणी में होती थीं।
एंग्री-यंगमैन के दौर में बने चॉकलेटी हीरो
जिस दौर में ऋषि कपूर फ़िल्मों में आए, वह दौर रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना की ढलान और अमिताभ बच्चन के रूप में एंग्री-यंगमैन के उभरने का था। उस समय दर्शक मारधाड़, डाकुओं, सिस्टम से लड़ते इंसान की फ़िल्में पसंद कर रहा था। ऐसे समय में ऋषि जैसे अभिनेता, जिनकी लंबाई थोड़ी कम थी और चेहरे से एक पंजाबी मुंडे की छवि उभरती थी, वह ना डाकू का रोल कर सकते थे और न ही पुलिस वाले का। तब उन्होंने एक अलग रास्ता अपनाया और ये ऋषि साब की चॉइस ही थी, जो उस दौर में प्रेमरोग, कर्ज और लैला-मजनू जैसी फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया।
ऋषि कपूर कई इंटरव्यू में लैला-मजनू फिल्म को याद करते हुए कहते थे-“ मैं गाने को यूं ही बस होंठ हिलाकर अदा कर रहा था, तब ही पीछे से आवाज आई। अरे ! तुम मजनू बने हो, गले की नशे दिखनी चाहिए नशे, लगना चाहिए तुम गला फाड़ रहे हो।” उनको मिली यह सीख उन्होंने अपने बेटे रणबीर तक भी पहुंचाई थी।
अपने बच्चों का कोई निकनेम नहीं रखा
ऋषि कपूर बताते थे कि एक बार वह कमल हासन के साथ एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे, तो निर्देशक ने स्पॉट ब्वॉय से कहा- ‘ जाओ, तुम कमल जी और चिंटू को शूट के लिए कह दो।’ जब ऋषि साब ने यह बात सुनी तो बिफर गए और कहा कि कमल मेरा जूनियर है। तुमने उसके नाम के आगे ‘जी’ लगाया और मुझे सिर्फ चिंटू कहा। ऐसा क्यों?
तब निर्देशक बोले कि सर! चिंटू के आगे ‘जी’ लगाएँगे तो अच्छा नहीं लगेगा ना ! यही कारण है कि ऋषि साब ने अपने बच्चों, ऋद्धिमा और रणबीर का कोई निकनेम नहीं रखा, जबकि उनकी भांजी करिश्मा और करीना को क्रमशः लोलो और बेबो कहकर बुलाया जाता है।
अंग्रेजी तलफ़्फ़ुज़ से थी परेशानी
काफ़ी समय तक सिल्वर स्क्रीन से दूर रहने के बाद ऋषि साब ने फ़िल्मों में अपनी दूसरी पारी भी बहुत सोच-समझकर शुरु की। इसमें उन्होंने फना, दो दूनी चार, डी डे और मुल्क जैसी फिल्में कीं। इस बार भी उनकी अदाकारी काफी सराही गई। एक रोचक बात ये भी रही कि ऋषि साब की पढ़ाई कॉन्वेंट स्कूल में होने के चलते उनका तलफ़्फ़ुज़ अंग्रेजी वाला होता था। सो लोकेशन पर शूट के समय सहज रूप से उनके मुँह से यही एक्सेंट निकलता था।
तब वह अपने डायरेक्टर से कहते थे कि डबिंग में यह लहजा सुधारुंगा। अभी नहीं। आज सुबह उनके निधन की ख़बर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। लेकिन ऋषि कपूर हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों पर राज करते रहेंगे। उनको नमन और श्रद्धांजिल।