Tuesday 7 April 2020

क्या कोरोना से लड़ने को तैयार है ग्रामीण भारत 


--विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष


बिहार में 44 हजार और यूपी में 22 हजार मरीजों पर सिर्फ़ एक डॉक्टर की सुविधा


देश की 130 करोड़ जनता के लिए सिर्फ 40 हजार वेंटिलेटर जबकि 32 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका के पास एक लाख 70 हजार वेंटिलेटर


सरकारी मानक के अनुसार ही देश में 18 हज़ार डॉक्टरों की कमी

  • सुदीप अग्रहरि

कोरोना वायरस दुनिया में तबाही मचा रहा है। अब तक दुनिया में इस घातक वायरस से 13 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं  और 74 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है अकेले इटली में 16 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में भी यह वायरस तेजी से फैल रहा है। देश में अब तक इस वायरस से लगभग पाँच हजार लोग संक्रमित हो चुके है और 136 लोगों की मौत भी हो चुकी है यह संख्या तेजी से बढ़ रही है और इस तबाही को देखते हुए भारत सरकार ने 24 मार्च को देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया

उधर अमेरिका में इस वायरस से तीन लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। इसकी तुलना में भारत में अभी कोरोना के मामले कम हैं पर संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या से हालात कठिन हो सकते हैं।


चौपट हो चुका है देश का स्वास्थ्य ढाँचा


विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के मानक के अनुसार एक हजार मरीजों पर एक डॉक्टर का अनुपात होना चाहिए लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में डॉक्टर और मरीज के अनुपात की स्थिति बेहद गम्भीर है बिहार में लगभग 44 हजार मरीजों पर सिर्फ एक डॉक्टर है, वही उत्तर प्रदेश में लगभग 22 हजार मरीजों पर एक डॉक्टर हैये ऐसे राज्य है जिनकी जनसंख्या देश में सबसे अधिक है वैसे झारखण्ड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में डॉक्टर और मरीज का अनुपात अच्छा है। दिल्ली, गोवा, सिक्किम और मिजोरम जैसे कुछ राज्यों की स्थिति ठीक-ठाक कह सकते हैं। सो अगर पूरे देश का औसत अनुपात देखा जाये तो एक डॉक्टर पर 14 सौ मरीज निर्भर हैं। इन आंकड़ो के जरिए हमें स्वास्थ्य के मामले में भी राज्यों के बीच असमानता देखने को मिलती है जो एक गम्भीर चिन्ता का विषय है।

भारत दुनिया  का दूसरा सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है लेकिन भारत में लगभग 26 हजार सरकारी अस्पताल की ही सुविधा है। देश की 130 करोड़ जनता के लिए सिर्फ 40 हजार वेंटिलेटर हैं। अमेरिका की जनसंख्या भारत से कम है लेकिन उनके पास एक लाख 70 हजार वेंटिलेटर हैं कोरोना से बढ़ती तबाही को देखते हुए आने वाले समय में इसकी मांग बढ़ सकती है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे पहला कदम है कोरोना संक्रमित लोगों की पहचान क्योंकि जितनी जल्दी हम इनकी पहचान करेंगे, उतनी तेज़ी से हम इसे फैलने से रोक सकते हैं  भारत में कोरोना वायरस की जांच के लिए सरकार ने 119 केंद्र बनाये है जिसमें अभी तक 42 हजार लोगों की ही जांच हो पायी है
इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक ख़बर के अनुसार भारत सरकार को जून 2020 तक दो करोड़ 70 लाख N-95 मास्क, एक करोड़ 50 लाख पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट),16 लाख टेस्टिंग किट और 50 हजार वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी।

State/UT
No. of govt. allopathic doctors
People served by one doctor
Bihar
2,792
43,788
Uttar Pradesh
10,754
21,702
Jharkhand
1,793
21,157
Madhya Pradesh
4,588
18,276
Chhattisgarh
1,626
17,826


State/UT
No. of govt. allopathic doctors
People served by one doctor
Delhi
9,121
2,028
Goa
644
2,429
Sikkim
268
2,540
Manipur
1,099
2,774
Mizoram
437
2,797


गाँवों के लिए सिर्फ़ 20 हज़ार अस्पताल


भारत की लगभग 70 फीसदी आबादी गांवो में बसती है लेकिन ग्रामीण भारत में रहने वाली जनता के लिए सिर्फ 20 हजार अस्पतालों की सुविधा है। साथ ही 80 करोड़ की जनता पर सिर्फ दो लाख 80 हजार बेड है। कोरोना से बचाव के लिए सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है लेकिन सरकारी अस्पतालों  में कितनी सफाई रहती है सबको पता है अभी तक के आंकड़ो के अनुसार कोरोना वायरस के ज्यादातर संक्रमित मामले शहरों में ही पाये गये हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अभी यह वायरस उतनी तेजी से नहीं फैला है लेकिन अगर कोरोना गावों तक पहुँच गया, तो संसाधनों की कमी से जूझते ऱाज्य इससे कैसे निपटेंगे, ये बड़ा सवाल है।

एक अमेरिकी संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छह लाख से अधिक डॉक्टर और 20 हजार नर्सों की कमी का अनुमान लगाया गया है। स्वास्थय मंत्रालय के आंकड़ो के अनुसार, सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में मानको के अनुसार 22,500 विशेष चिकित्सक होने चाहिए। ये चिकित्सक सर्जन, प्रसूति एवं स्त्री रोग, बाल रोग आदि वर्ग के विशेषज्ञ होंगे। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जितने विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है, उतने स्वीकृत ही नहीं हैं सरकारी आंकड़ो की मानें तो विशेषज्ञ चिकित्सकों के कुल 13,635 पद ही स्वीकृत हैं और इसमें भी सिर्फ 4075 चिकित्सक कार्यरत हैं। मतलब सरकारी मानक के अनुसार भी अभी देश में 18 हजार विशेष चिकित्सकों की आवश्यकता हैं।

काम के बोझ से लदे हैं डॉक्टर

चिकित्सकों की कमी कारण जो चिकित्सक कार्यरत हैं, उन पर कार्यभार बढ़ जाता है। मरीजों की संख्या दिन दिन बढ़ती जा रही है लेकिन चिकित्सकों की कमी बनी हुई है नतीजा यह है कि भारत में चिकित्सक औसतन दो मिनट ही मरीजों को देख पाते हैं। इस बात की पुष्टि एक वैश्विक अध्ययन में की गई हैं। ब्रिटेन की चिकित्सा पर आधारित एक  प्रमुख पत्रिकाबीएमजे ओपनके अनुसार, भारत में प्राथमिक चिकित्सा परामर्श का समय वर्ष 2015 में सिर्फ़ दो मिनट का था


ऐसे में जब ग्रामीण भारत में योग्य चिकित्सकों की कमी हो तब अयोग्य चिकित्सकों का विस्तार होने लगता है जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में झोला छाप डॉक्टर कहते हैं। गावों में ऐसे डॉक्टर हर जगह मिलेंगे जो फर्जी डिग्री रखकर मरीजों को देखते हैं वर्ष 2016 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एलोपैथिक चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने वाले कुल चिकित्सकों की संख्या में करीब एक तिहाई ऐसे हैं जिनके पास नागरिकों का इलाज करने के लिए पर्याप्त डिग्री ही नहीं हैं बावजूद इसके लोग इन चिकित्सकों से इलाज करा रहे हैं
ये तमाम चुनौतियां इस देश की नागरिक स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना हैं चिकित्सा के सीमित संसाधनों से जूझते भारत में जब शहरों से मजदूर गावों की तरफ पलायन करते हैं, तो उनके साथ कोरोना संक्रमण भी गांव-गांव तक पहुँच सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो पहले से बीमार भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था का दम निकलने में देर नहीं लगेगी।

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