Thursday 23 April 2020

भारतीय सिने जगत के भीष्म पितामह थे सत्यजीत रे

रे विश्व सिनेमा इतिहास में दूसरे ऐसे फिल्मकार रहे हैं, जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा


पुण्यतिथि पर विशेष

राजन राज


छह वर्ष की उम्र में एक बार सत्यजीत रे की मुलाकात कविगुरू रवींद्रनाथ टैगोर से हुई था। सत्यजीत रे ने अपनी नोटबुक को आगे बढ़ाते हुए कविगुरू से उनका ऑटोग्राफ मांगा। जब सत्यजीत रे को उनका नोटबुक वापस मिला तो उसमें एक कविता लिखी हुई थी। टैगोर ने उनकी मां से कहा कि शायद यह कविता अभी उसे समझ में ना आए। जब वह बड़ा हो जाएगा, तो उसे इस कविता को फिर से पढ़ने के लिए कहना। वह कविता थी-

For many a year, I have travelled many a mile to lands far away I've gone to see the mountains, the oceans I've been to view.

But I failed to see that lay.

Not two steps from my home.

On a sheaf of paddy grain - a glistening drop of dew.

सत्यजीत रे की पहली ही फिल्म पाथेर पंचाली पर गुरूदेव की इस कविता का अच्छा खासा असर दिख जाता है। सत्यजीत रे को शुरू से ही फिल्मों का काफी शौक था। काफी कम उम्र में ही वे विक्टर फ्लेमिंग, फ्रेंक कापरा, ऑरसन वेलस और विलियम वेलर जैसे कई बड़े फिल्म निर्देशकों की फिल्म देख चुके थे। साल 1950 में सत्यजीत रे को अपनी कंपनी के काम से लंदन जाने का मौका मिला। यहां उन्होंने तकरीबन 100 से भी ज्यादा फिल्में देखीं। इन्हीं फिल्मों में शामिल थी-बाइसकिल थीव्सजिसने सत्याजीत रे को पाथेर पांचाली बनाने के लिए काफी प्रेरित किया। 

पाथेर पांचाली का पथ था काफी कठिन


पाथेर पांचाली फिल्म को बनाते हुए सत्यजीत रे को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। साल 1952 में जब इस फिल्म को बनाने की शुरुआत हुई तो सत्यजीत रे एक विज्ञापन कंपनी में काम किया करते थे। उस समय उनके पास समय और पैसे, दोनों की कमी थी। नौकरी करते हुए किसी फिल्म का निर्देशन करना काफी कठिन था। इस दौरान सत्यजीत रे काफी कर्ज में डूब चुके थे। इस फिल्म के कैमरा असिस्टेंट सौमेन्दु राय ने एक साक्षात्कार में बताया था कि इस फिल्म को बनाने के लिए रे ने अपनी पत्नी के गहनों को भी बंधक रख दिया 

समय की कमी के कारण फिल्म की शूटिंग एक लंबे अंतराल के बाद होती थी। इस कारण सत्यजीत रे को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस फिल्म में एक हलवाई के कई सीन हैं। पहला सीन फिल्माने के बाद सत्यजीत रे को दूसरा सीन शूट करने में पैसों की कमी के कारण काफी वक्त लग जाता था। काफी दिन बीत जाने के बाद जब सत्यजीत रे वापस उस हलवाई का सीन शूट करने गए तो उन्हें पता चला कि उस हलवाई की मौत हो चुकी है। इसके बाद सत्यजीत रे ने किसी तरीके से इस सीन को मैनेज किया। साल 1954 में बंगाल के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय की सरकार ने उन्हें इस फिल्म को बनाने के लिए आर्थिक मदद दी, जिसके बाद साल 1955 में इस फिल्म का काम पूरा हुआ।

नेहरू और सत्यजीत रे का कनेक्शन



सत्यजीत रे ने कई प्रसिद्ध किताबों के कवर डिजाइन किए हैं, जिनमें जिम कॉर्बेट कीमैन ईटर्स ऑफ कुमाऊंऔर जवाहरलाल नेहरू कीडिस्कवरी ऑफ इंडियाशामिल हैं। बांग्ला साहित्य के सबसे उत्कृष्ठ उपन्यासकारों में से एक विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास पाथेर पांचाली का बाल संस्करण तैयार करने में भी सत्यजीत रे का काफी अहम योगदान था। 



काहियेर दू सिनेमा ने भी सराहा


'काहियेर दू सिनेमा’ विश्व के सबसे प्रतिष्ठित सिनेमा मैगजीन में से एक है। इस मैगजीन की स्थापना साल 1951 में की गई थी। इस मैगजीन में फ्रेंक्स ट्रफों जैसे बड़े निर्देशक लिखा करते थे। आज तक भारत के सिनेमा इतिहास में सिर्फ तीन ही ऐसे निर्देशक हुए हैं, जिनके काम को काहियेर दू सिनेमा ने काफी सराहा है। इनमें सत्यजीत रे, मृणाल सेन और ऋत्विक घटक के नाम शामिल हैं। 


समानांतर सिनेमा में योगदान


समानांतर सिनेमा भारत में एक ऐसा फ़िल्म-आन्दोलन था, जो 1950 के दशक में पश्चिम बंगाल राज्य में मुख्यधारा के वाणिज्यिक भारतीय सिनेमा के विकल्प के रूप में उत्पन्न हुआ। इटैलियन न्यूरेलिज्म से प्रेरित, समानांतर सिनेमा फ्रांसीसी नयी लहर (फ्रेंच न्यू वेव) और जापानी नयी लहर (जैपेनीज न्यू वेव) से ठीक पहले शुरू हुआ और 1960 के दशक में भारतीय नयी लहर (इंडियन न्यू वेव) का अग्रदूत बन गया। सत्यजीत रे ने इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित कई फिल्मों का निर्माण किया। इनमें अपु ट्रायोलॉजी, जलसाघर और अपाराजिता जैसी फिल्में शामिल हैं।


हर काम में निपुण


सत्यजीत रे फिल्म निर्माण से जुड़े हर काम में माहिर थे। इनमें पटकथा, कास्टिंग, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन और संपादन आदि शामिल हैं। अपनी कई फिल्मों में उन्होंने ही संगीत दिया और साथ ही उस फिल्म को एडिट भी किया। फिल्मकार के अलावा वह कहानीकार, चित्रकार और फिल्म आलोचक भी थे। बच्चों की पत्रिकाओं और किताबों के लिए बनाए गए रे के रेखाचित्रों को समीक्षक उत्कृष्ट कला की श्रेणी में रखते हैं। 

सत्यजीत रे की बाल मनोविज्ञान पर जबरदस्त पकड़ थी और यह उनकी फेलूदा सीरीज में दिखता है जो बच्चों के लिए जासूसी कहानियों की एक श्रृंखला है। कैलीग्राफी में भी सत्यजीत रे बहुत कुशल थे। बंगाली और अंग्रेजी के उन्होंने कई टाइपफेस डिजाइन किए थे। रे रोमन और रे बिजार नाम के उनके दो अंग्रेजी टाइपफेसों ने तो साल 1971 में एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था। 

साहित्य और सिनेमा 


भारतीय सिनेमा के इतिहास में साहित्यिक रचनाओं का फिल्मी रूपांतरण अक्सर आलोचना का केंद्र बन जाता है। लेकिन सत्यजीत रे के मामले में ऐसा नहीं हुआ। विभूती भूषण बंधोपाध्याय द्वारा लिखित पाथेर पांचाली हो या प्रेमचंद की कहानी पर बनी शतंरज के खिलाड़ी, सत्यजीत रे की फिल्में इस चलन की अपवाद रहीं हैं 

पाथेर पांचाली को तो पूरे विश्व की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है। शतरंज के खिलाड़ी के बारे में उनका कहना था कि अगर उनकी हिंदी भाषा पर और अच्छी पकड़ होती, तो यह फिल्म दस गुना बेहतर हो सकती थी।

फिल्मी दुनिया को दिए नायाब हीरे


सत्यजीत रे के बारे में राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके और पाथेर पंचाली के अभिनेता सौमित्र चट्टोपाध्याय ने अपने एक साक्षात्कार में बताया-पता नहीं अगर वो नहीं होते तो मेरा क्या होता। मैं कभी फिल्मी दुनिया के इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता।

उनके पास अच्छे अभिनेता को तलाशने की अचूक नजर थी। वह पहली ही नजर में अच्छे अभिनेता को पहचान लेते थे।’ यह बात काफी हद तक सही भी है। आज भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के कई शानदार अभिनेताओं को सत्यजीत रे ने ही ढूंढकर निकाला है। इनमें शर्मिला टैगोर, रवि घोष, जया भादुड़ी और अर्पना सेन जैसे बड़े कलाकारों का नाम शामिल है।

32 राष्ट्रीय पुरस्कार

सत्यजीत रे के नाम 32 राष्ट्रीय पुरस्कार हैं। इसके अलावा उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी कई पुरस्कार मिले हैं। इनमें ऑस्कर (ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंटभी शामिल है। सत्यजीत रे विश्व सिनेमा इतिहास में दूसरे ऐसे फिल्मकार थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में उनकी फिल्म पाथेर पांचाली को बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट में शामिल किया गया था। आज भी सत्यजीत रे की फ़िल्मों की छाप गाहे-बगाहे कई फ़िल्मों पर दिख जाती है। फ़िल्में रे का जुनून थीं और जीवनभर वह इसी में खोए रहे। विश्वसिनेमा के इस करिश्माई जादूगर को हमारा नमन।

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