आज अपने बारे में फैलाई गई फर्जी खबरों और वीडियो के कारण आम मुसलमान निशाने पर हैं और डर के साए में जीने को मजबूर है
- शबनाज़ खानम
कभी आज़ादी की लड़ाई के वक्त अंग्रेजो ने हिन्दुस्तान में “फूट डालो, राज करो”
की नीति अपनाई थी. मुस्लिम विरोध को खत्म करने के लिए हिन्दुस्तानी आवाम को दो हिस्सों
में बांटने का काम किया था जिससे जंग-ए-आज़ादी कई वर्षो तक के लिए कमज़ोर पड़ गयी थी.
अंग्रेजों से तो आज़ादी मिल गयी मगर ऐसा लगता है कि उनकी अपनाई नीति हिंदुस्तान में
आज तक चल रही है.
चाहे मसला एन आर सी, एन पी आर, सी ए ए का रहा हो या
हाल में तबलीगी जमात का- मुस्लिम
समुदाय काफी सुर्खियों में रहा है. देश में अभी कोरोना
जैसी महामारी के फैलाव और बढ़ते खतरे के बावजूद भी मुसलमानों और इस्लाम का मुद्दा इतना
गरम है जितना कि शायद ही पहले कभी था. सच यह है कि आज इसे और भी ज्यादा उछाला जा रहा
है.
पिछले कुछ दिनों में ऐसी अनेक घटनाएँ हुई हैं जिससे लोगों के दिलों
में एक तरह का खौफ बैठ गया है. पिछले दिनों जिस तरह से जामिया में हंगामा और दिल्ली
के कई इलाकों में दंगे हुए, उनका असर पूरे देश के लोगों खासकर मुस्लिम समाज पर पड़ा
है.
देश के हालात इतने गंभीर हैं, कोरोना के बढ़ते खतरे से देश में
चिंता का माहौल है, लाकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था और कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा
है, लाखों-लाख लोगों की रोजी-रोटी दाँव पर लग गई है जिनमें हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई
सभी समुदायों के गरीब-मजदूर शामिल हैं. कहा जा रहा है कि यह इतना बड़ा संकट है
जितने पिछले कई दशकों में देश या दुनिया ने नहीं देखा.
लेकिन अफ़सोस यह कि फिर भी देश के मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा
है, तरह-तरह के फ़र्जी वीडियो
सोशल मीडिया पर वायरल किये जा रहे हैं, कोरोना भारत में कब से
फैलना शुरू हुआ, ये बात सबको पता है मगर जब से तबलीगी जमात वाला मामला सामने आया है, उस समय से देश में मुस्लिम समुदाय को लेकर एक अलग ही नजरिया बना लिया गया
है. क्या यह सच नहीं है कि तबलीगी जमात का मामला इसीलिए सुर्ख़ियों में ज्यादा आया क्योंकि
उसमें शामिल लोग मुसलमान थे?
अब हालत यह है कि जमातियों को बदनाम करने के लिए बहुत से फोटोशाप
से फर्जी “फोटो” और वीडियो वायरल किये जा रहे हैं जिसमें मुस्लिम युवकों को बर्तन चाटकर
कोरोना फैलाने की बात कही गयी है जबकि फैक्ट चेकिंग वेबसाईट आल्ट न्यूज की जाँच में
पता चला कि वो दो साल पुराना वीडियो था. वहीँ जमातियों की छींक कर कोरोना फैलाने वाली
वीडियो का निजामुद्दीन से कोई सम्बन्ध नहीं था. फिरोजाबाद में मेडिकल टीम और एम्बुलेंस
पर पथराव करने की खबर फैलाई गई जिसका बाद में खुद फिरोजाबाद पुलिस ने खंडन किया.
ऐसे ही जमातियों के आइसोलेशन वार्ड में ही शौच करने जैसी गलत बातों
को फैलाया गया. मुसलमानों के खिलाफ सबके दिल में इतनी ज्यादा नफरत भर दी गयी है कि
खुद मुसलमान अपने ही देश में डर के साये में रहने लगा है. इसी तरह एक और फर्जी
वीडियो में यह फैलाया गया कि
आप खुद पढ़िए कि मुसलमानों को निशाना बनाते हुए कैसे फर्जी खबरें और वीडियो फैलाए जा रहे हैं:
या फिर आप आल्ट न्यूज की वेबसाईट पर जाकर ऐसी दर्जनों फर्जी ख़बरों की हकीकत पढ़ सकते हैं:
लेकिन इस सबका नतीजा यह हुआ है कि आम मुसलमान में बहुत डर बैठ गया है. वह अपनी
सही बात कहने से भी डरने लगा है. दूसरी ओर, देश के कई हिस्सों से ऐसी ख़बरें आ रही
है कि मुस्लिम ठेला-रेहड़ी लगानेवालों को पीता जा रहा है, उन्हें हिन्दू मुहल्लों
में घुसने नहीं दिया जा रहा है. ऐसा लगता है कि कोरोना से ज्यादा तेजी और खतरनाक
तरीके से फर्जी ख़बरों और उसके जरिये साम्प्रदायिकता का जानलेवा वायरस फ़ैल रहा है.
अभी कुछ दिन पहले मैंने इसी ब्लॉग पर एक आर्टिकल “बीमारी का कोई धर्म
नहीं होता” लिखा था, उस आर्टिकल में किसी भी धर्म को बुरा नहीं
कहा गया था, फिर भी कुछ लोगों ने मुझे फ़ोन किया और कहने लगे
कि, “ये क्या लिख दिया तुमने.” उनका कहना
था कि आपकी बात तो ठीक ही है पर इस वक़्त देश में मुसलमानों को लेकर हर बात बहुत फैलाई
जा रही है इसलिए ऐसे वक़्त में चुप रहना ही सही है. उनको तो मैंने समझाकर बात खत्म कर
दी, मगर मैं खुद सोच में पड़ गयी कि इतना डर क्यों?
आखिर इस देश में किसी भी धर्म के लोगों के रहने का जितना हक है, उतना
ही मुसलमानों को है. फिर यह डर क्यों? इस मुददे को क्यों ख़त्म नहीं कर दिया जाता है? इधर के गांवों में
डर का ये आलम है कि उनको ये लगता है कि अगर हम को कोरोना हो गया तो पता नहीं हमारे
साथ क्या किया जायेगा? कई लोगों से बात की तो पता चला कि वो ये सोच रहे हैं कि अगर
उन्हें कोरोना हुआ तो पता नही ये लोग हमारा ईलाज कराएंगे या क्या करेंगे? उनकी बातों
मे डर था. ऐसे में, आप खुद ही सोचिए कि अगर कोई बीमार हुआ भी तो वह डर की वजह से अस्पताल
ही नही जाएगा. ऐसे मे क्या होगा?
आज हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि मुसलमानों को ये बताना पड़ता है कि
वो भी अच्छे हैं, अभी कुछ दिन पहले हमारे अमरोहा में ही पुलिस पर फूलों की बरसात की गयी, ये बताने के लिए कि हम भी साथ हैं. देश के अच्छे-बुरे वक़्त में सब साथ देते
हैं, देश के लिए हिन्दू-मुस्लिम सब शहीद होते हैं. इस देश के
लोग बहुत भोले हैं, इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है
कि पिछले कुछ दिनों में इन्होंने कोरोना को भी एक त्योहार की तरह मनाया है. इनको जिधर
मोड़ दिया जाये, ये मुड़ जाते हैं और इनको हिन्दू-मुसलमान के झगड़े की ओर मोड़ने का काम
मीडिया का बड़ा हिस्सा दिन-रात कर रहा है.
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, मगर अब ज़्यादातर एक तरफ़ा चीजों को सामने लाया जा रहा
है. ऐसा नहीं है कि किसी दूसरे धर्म की सभाएं नहीं हुई हैं मगर उनका किसी ने कुछ ख़ास
जिक्र ही नहीं किया. गलती और लापरवाही किसी से भी हो सकती है लेकिन गलत सिर्फ एक ही
समुदाय को दिखाना तो वास्तव में, बाकी लोगों को उस समुदाय के खिलाफ भड़काना होता है.
इन सब से बचने का आसान तरीका है कि चीजों को तर्क से समझने की कोशिश करें.
हमको चाहिए कि हम हिन्दू या मुस्लिम या किसी भी धर्म को अपने तजुर्बे से समझे, उसकी अच्छाई
या बुराई का फैसला अपने तजुर्बे, सच्चाई और तथ्यों से करने की कोशिश करें नाकि मीडिया
खासकर सोशल मीडिया/व्हाट्सएप्प के ज़रिये फैलाए गए झूठ से. आज ये समझना बहुत जरूरी
हो गया है कि अच्छे और बुरे लोग हर धर्म
और समुदाय में होते हैं लेकिन इसके आधार पर पूरी “कौम”
को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
चिंता की बात यह है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो हिन्दू, मुस्लिम से डरेगा
और मुस्लिम, हिन्दू से! लेकिन कोई देश ऐसे डर और नफरत के साये में कई जी सकेगा?
इससे हमारा देश कोरोना के संकट और फिर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जद्दोजहद
में कामयाब कैसे होगा?
Bahut hi achcha likha hai aur haqeeqat se rabaroo karwaya hai...
ReplyDeleteGood job☺️
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