Monday 13 April 2020

सत्यजीत रे से लेकर विमल रॉय तक सबके चहेते थे बलराज साहनी

पुण्यतिथि पर विशेष

फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' में उनके किरदार ने किसानों और गरीबों के दर्द के साथ हर आम आदमी का नाता जोड़ दिया

  • मानसी समाधिया 
हिंदी सिनेमा ने अपने सौ साल से लम्बे इतिहास में एक बेहतरीन अभिनेता और कलाकार दिए हैं जिन्होंने अपने अभिनय से न सिर्फ लोगों का दिल जीता बल्कि हिंदी सिनेमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया. बलराज साहनी उन्हीं चुनिंदा अभिनेताओं में से एक हैं लेकिन वे सबसे अलग भी थे. वे स्टार नहीं थे लेकिन अभिनय के चमकते सितारे थे. उनका चेहरा बोलता था. उनके अभिनय में जो गहराई, विविधता, संवेदनशीलता और भावप्रवणता थी, वह बहुत कम नायकों में दिखती है. उन्होंने भारतीय सिनेमा को कुछ ऐसी फ़िल्में दीं जो मील की पत्थर साबित हुईं. उनकी कई फ़िल्में वैश्विक सिनेमा के पटल पर भी याद की जाती हैं. 

आज उन्हीं बलराज साहनी की 47वीं पुण्यतिथि है जिन्होंने भारतीय सिनेमा को पहली यथार्थवादी फिल्म "दो बीघा जमीन" दी. इस फिल्म ने देश में किसानों की तकलीफ़ और उनके उजड़ने के दर्द और फिर उनके गाँव से निकलकर शहर में पहुँचने और वहां शोषण, अपमान और अमानवीयता झेलने को जिस शिद्दत से सिनेमा के परदे पर जीया, वह आज भी आपका दिल चीर देती है. 

बलराज साहनी का जन्म 1 मई 1913 को रावलपिंडी में हुआ था. उनका बचपन का नाम युधिष्ठिर साहनी रखा गया। उस जमाने में नाम अक्सर हिंदू देवमाला से रखे जाते थे। लेकिन गांव वालों और संबंधियों को यह नाम जंचा नहीं और नाम बदलकर रखा गया बलराज साहनी कौन जानता था कि यह नाम आगे चलकर हिंदी सिनेमा जगत की दीवारों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 

धर्म के आधार पर पढ़ाई से किया इनकार
बलराज साहनी के पिता हरबंसलाल साहनी एक व्यापारी थे। आर्यसमाजी परिवार से होने के नाते बलराज का दाखिला उन्होंने गुरूकुल में करा दिया पर बलराज धर्म के आधार पर शिक्षा ग्रहण करने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने पिता से यह बात कही, जिन्होंने इस पर थोड़ी नाराजगी जताई। 

आखिरकार बलराज का दाखिला डीएवी में करा दिया गया। बलराज ने मैट्रिक पास कर कॉलेज भी डीएवी से ही किया। कॉलेज के दौरान वह देश और समाज में चल रही गतिविधियों से और ज्यादा परिचित हुए। उस वक्त पूरे देश में आजादी का बिगुल बजा हुआ था। बलराज लोगों की परेशानी, देश और समाज की समस्याओं को लेकर संवेदनशील थे, सो इस दिशा में उन्होंने सोचना और काम करना शुरु कर दिया। 

बाद में बलराज साहनी रावलपिंडी से पत्नी के साथ कलकत्ता गए, जहां उन्होंने शांतिनिकेतन में टैगोर के विश्वभारती विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और हिंदी शिक्षक के रूप पदभार संभाला। बलराज साहनी की भाषा पर पकड़ बेहद अच्छी थी। यहाँ आकर वह आजादी से जुड़े मसलों पर सक्रिय रहने लगे। फिर साल 1938 में महात्मा गांधी से जुड़े और अगले ही साल वह इंग्लैंड में BBC की हिंदी सेवा में रेडियो अनाउंसर के रूप में कार्यरत हो गए। BBC के साथ रहते हुए उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध भी कवर किया।

सुपरस्टार बनने का सफर

साल 1943 में वे इंग्लैंड से भारत लौट आए, जिसके बाद उन्होंने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) से जुड़कर अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की उनकी पत्नी दमयंती पहले से ही IPTA में अभिनेत्री के तौर पर पहचान बना चुकीं थीं। बलराज साहनी की पहली फिल्मइंसाफसाल 1946 में रिलीज हुई। इसके बादधरती के लाल’, ‘बदनामीऔर अन्य फिल्मों में उन्होंने काम किया। साल 1947 में रिलीज हुई फिल्मगुड़ियाकी नायिका उनकी पत्नी दमयंती ही थीं।

जीत लिए लाखों दिल
दो बीघा ज़मीनफिल्म ने बलराज को शंभू महतो के रूप में पूरे देश से जोड़ दिया। बिमल रॉय की साल 1953 की इस क्लासिक फिल्म में एक आम आदमी और उसकी जीवन के लिए लड़ाई को लोगों ने ख़ुद से कनेक्ट किया। फ़िल्म का वह शंभू, जिसे अपनी ही जमीन की एक मुट्ठी मिट्टी ना मिल सकी, उसने देश के लाखों दिलों में अपने लिए जगह बना ली थी। 

सत्यजीत रे ने इस फिल्म के बारे में कहा था कि दो बीघा जमीन वह पहली भारतीय फिल्म है, जिसने सही अर्थ में सामाजिक यथार्थ को पर्दे पर दिखाया है रे को साहनी के साथ काम नहीं कर पाने का भी मलाल था। आगे चलकर फिल्म ने कान फिल्म फेस्टिवल में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।


इसके बाद बलराज साहनी ने टैगोर द्वारा लिखी गई क्लासिककाबुलीवाला’, ‘सोने की चिड़िया’, ‘एक फूल दो मालीऔरवक्तसमेत कई अन्य फिल्मों में काम किया।वक्तफिल्म का गाना मेरी जोहरा जबीं” को आज भी सराहा  और याद किया जाता है।

मजदूरों के लिए जेल गए

बलराज साहनी को गरीबों और मजदूरों से बड़ी आत्मीयता थी। वह हमेशा ही मजदूरों के हितों की बात करते थे। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहे मजदूरों के हित में कई मसले उठाए। वह आम आदमी के दुख और तकलीफों को भलीभांति समझते थे। इसका असर उनके अभिनय में साफ झलकता था। इसलिए ही उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला मेथड एक्टर भी कहा जाता है। वह शायद एकमात्र ऐसे अभिनेता होंगे, जिन्हें मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने के कारण जेल भेजा गया हो।  

बेटे परीक्षित को दी सीख
बलराज के बेटे परीक्षित साहनी बड़े पर्दे का एक जाना-माना चेहरा हैं। अपने पिता के बारे में क्विंटको दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि पिता बलराज की तमाम फिल्मों में से उनकी सबसे पसंदीदा फिल्मगर्म हवाहै। 

इसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्होंने दो फिल्मों में पिता बलराज के साथ काम किया। हालांकि यह दोनों ही फिल्में रिलीज नहीं हो सकीं पर एक फिल्म थी, जिसमें में वह ऊधम सिंह के किरदार में थे और बलराज साहनी महात्मा गांधी का किरदार निभा रहे थे। शूटिंग के दौरान एक सीन में उन्हें पिता से अपशब्द कहकर उनपर थूकना था। परीक्षित इस सीन से बेहद असहज थे। तब पिता बलराज ने उन्हें सीख दी कि सेट पर एक एक्टर बस अपना किरदार निभा रहा होता है। परीक्षित साहनी ने पिता बलराज साहनी को याद करते हुए एक किताब भी लिखी है नॉन कन्फर्मिस्ट : मेमोरीज़ ऑफ माय फादर बलराज साहनी



बेटी की मौत से लगा बड़ा झटका

बलराज साहनी की बड़ी बेटी का नाम शबनम साहनी था। वह बलराज को अपने तीनों बच्चों में सबसे अधिक प्रिय थीं। वह एक खराब दौर से गुजर रही थीं। अपनी शादी से नाखुश शबनम अपने पिता के साथ आकर रहने लगी थीं और कुछ समय बाद साल 1972 में उन्होंने इस दुख से हारकर अपना जीवन खत्म कर लिया। शबनम के जाने का गुनहगार बलराज साब मन ही मन ख़ुद को मान बैठे। इसके बाद वह टूट गए।

दुनिया को आखरी सलाम

बलराज साब ने अपनी फिल्मगर्म हवाके रिलीज होने के सिर्फ एक दिन पहले दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने अपने जीवन के आखरी दिन तक फिल्मों में काम किया। क्विंट को दिए इंटरव्यू में उनके बेटे परीक्षित साहनी ने बताया है कि अपने आखिरी समय में बलराज साब ने क्या कहा 

बलराज साब ने कहा कि वह अपने जीवन से संतुष्ट हैं और लोग उनकी मौत का ग़म ना करें। उनकी इच्छा थी कि उनके पार्थिव शरीर पर कोई फूल ना डाले और ना ही किसी प्रकार का कोई कर्मकांड किसी पंडित से कराए। बलराज साहनी कम्युनिस्ट विचारधारा से खासे प्रभावित थे, इसलिए उनकी बस इतनी ही इच्छा थी कि उनकी अंतिम यात्रा में लाल झंडा शामिल हो और उनके पास लेनिन की पुस्तक रखी जाए। उनकी इस इच्छा का पालन किया गया। 


आज बलराज साहनी की पुण्यतिथि है। वह एक बेहतरीन कलाकार होने के साथ-साथ एक नायाब इंसान भी थे। उन्होंने अपने अभिनय से पात्रों को पर्दे पर जीवंत कर दिया। 

एक बोनस सलाह 

आपने बलराज साहनी पर लेख पढ़ लिया. लाकडाउन भी चल रहा है. ऐसे में, चाहें तो बलराज साहनी की फिल्म " दो बीघा जमीन" देख सकते हैं. यह फिल्म यूट्यूब पर है:


और हाँ, गंभीर सिनेमा में आपकी दिलचस्पी है तो "गर्म हवा" देखना न भूलिए जो भारत विभाजन पर अब तक की सबसे बेहतरीन और मार्मिक फिल्म है. यह भी यूट्यूब पर है:

और एक सवाल 

यह बताना मत भूलिएगा कि बलराज साहनी की कौन सी फ़िल्में आपकी पसंदीदा फ़िल्में हैं? 

1 comment:

  1. Do bigha jameen or garm hava sabse are best movie of balraj sahani to understand current situation of India during partion of India and ek phool do Mali is very lovely movie to understand humanity of a human .
    My best movie is Do bigha sahani

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