Tuesday 31 March 2020

बांग्लादेश का वीज़ा रोकने से कोलकाता में क्या है प्रभाव?

कोलकाता के एक हिस्से की अर्थव्यवस्था का कोरोना ने किया हाल-बेहाल, बांग्लादेशी लोग हैं जिनका मुख्य आधार
  • देवेश मिश्र
कोरोना को फैलने से रोकने और उससे बचाव की कोशिशों के तहत 15 मार्च को बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और नेपाल के नागरिकों का भारत भ्रमण का वीज़ा भी रद्द कर दिया गया जिससे उनके नागरिकों की भारत में आने पर रोक लग गई है. इस कारण  कोलकाता शहर में कोरोना वायरस के डर की वजह से बांग्लादेशी व्यवसायियों और पर्यटकों के साथ-साथ बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये यहाँ आनेवाले बांग्लादेशी नागरिकों का आना फिलहाल पूरी तरह से बंद हो गया है.

कोलकाता शहर में मुख्य रूप से हावड़ा, बाघाजतिन, पाटुली, ईएम बाइपास, शान्तिपार्क और गाँगुली बगान ऐसे इलाक़े हैं जहाँ बांग्लादेश से सबसे ज़्यादा लोग आते हैं. यहाँ का पूरा लोकल बाजार और स्थानीय रोज़गार बांग्लादेश से आने वाले पर्यटकों और अस्पताल में इलाज कराने आये लोगों पर निर्भर है. इन इलाक़ों में मुख्य रूप से नारायण हॉस्पिटल, RTIICS(रवीन्द्रनाथ टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियक साइंस), पीयरलेस हॉस्पिटल और सबसे बड़ा AMRI हॉस्पिटल है. AMRI की तीन शाखायें- मुकुन्दपुर, ढ़ाकुरिया और साल्ट लेक इलाक़े में हैं.   

रिपोर्टों और स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, इन अस्पतालों में सबसे ज़्यादा यानी लगभग 80% मरीज़ बांग्लादेश से आते हैं. इस पूरे इलाक़े का रोज़गार इन्हीं मरीज़ों और उनके साथ आये उनके रिश्तेदारों पर टिका हुआ है. मरक़िज स्ट्रीट, सदर स्ट्रीट और शान्ति पार्क इलाक़े में लगभग हर घर में आपको गेस्ट हाउस और छोटे-छोटे होटल मिल जायेंगे. इनका पूरा व्यवसाय ही बांग्लादेशियों के भरोसे चलता है.

अब चूँकि बांग्लादेश से आने वाले नागरिकों के वीज़ा और यात्रा रोक लगा दी गई है तो यहाँ के हॉस्पिटल और लोकल रोज़गार जैसे रिक्शा, कपड़ा बाजार, रेस्टोरेन्ट, होटल और गेस्ट हाउस के बिजनेस पर बुरा प्रभाव पड़ा है. यहाँ मरीज़ों की संख्या लगभग 80 फीसदी तक कम हो चुकी है. कोरोना वायरस से बचाव के लिये ज़्यादातर बस, ट्रेन और फ्लाइट्स भी कैंसिल हैं.  पीयरलेस हॉस्पिटल के पास मेडिकल स्टोर चलानेवाले शुभंकर का कहना है कि जब से बांग्लादेश बॉर्डर बंद हुआ है, ये पूरा इलाक़ा ही ख़ाली हो गया है. पहले जहां पीयरलेस हॉस्पिटल के नेत्र चिकित्सा विभाग में 100-150 मरीज़ एक दिन में देखे जाते थे, वहीं अब एक भी मरीज़ नहीं है.

दुखी शुभंकर निराशा के साथ कहते हैं, “पिछले चार दिन के अंदर उनका एक लाख रुपये से ऊपर का नुक़सान हो गया है. ग्राहकों के न आने से न सिर्फ सेल काफ़ी गिर गया है बल्कि काफ़ी नुक़सान हो रहा है. पहले जहाँ एक दिन में 20000 - 25000 रुपये का बिजनेस कर लेते थे ,वो अब घटकर दो-तीन हज़ार रुपये का रह गया है.”

कोलकाता के इस इलाक़े में ये हाल सिर्फ़ शुभंकर का ही नहीं है बल्कि लगभग सभी मेडिकल स्टोर मंदी से गुजर रहे हैं, कुछ तो बंद भी हो गये हैं. एक और मेडिकल स्टोर संचालक पंकज बताते हैं कि यहाँ लोकल मरीज़ इलाज कराने कम आते हैं. इस इलाक़े के सभी हॉस्पिटल और मेडिकल स्टोर बांग्लादेशी मरीज़ों के भरोसे ही चलते हैं. सोमवार के बाद से (जबसे वीज़ा सम्बन्धी नियम लागू हुए हैं) यहाँ मरीज़ों की संख्या 90% तक कम हो गई है. उनका कहना है कि लगभग 50000- 60000 रुपये का उनका प्रतिदिन का नुक़सान हो रहा है. अगर कुछ दिनों तक ऐसा ही रहा तो दुकान बंद कर घर बैठना पड़ेगा. 

इस पूरे इलाक़े में लगभग 30 से ऊपर मेडिकल स्टोर होंगे और इसी तरह कोलकाता के अलग-अलग हिस्सों में भी मेडिकल स्टोर सहित तमाम छोटी-छोटी दुकानें हैं. स्थानीय दुकानदारों से बातचीत में यह आकलन उभरकर सामने आता है कि प्रतिदिन भारी नुकसान हो रहा है और पिछले चार दिन के अंदर लगभग 3 करोड़ से ज़्यादा का नुक़सान हो चुका है. 

मुकुन्दपुर स्थित पीयरलेस हॉस्पिटल में आम दिनों में काफ़ी भीड़ रहती थी. यहाँ रोज़ इलाज कराने वाले मरीज़ों की संख्या लगभग 300 से ज्यादा रहती थी. लेकिन जबसे कोरोना वायरस का आतंक फैला है, बांग्लादेशी मरीज़ों की आवाजाही रुकी है और यहाँ भी सन्नाटा पसर गया है. हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुदीप्तो भट्टाचार्य ने बताया कि हॉस्पिटल के अंदर मरीज़ों की संख्या में काफ़ी कमी आई है. उनके मुताबिक़ मरीज़ों की संख्या लगभग 50% से ज़्यादा कम हो गई है जिसमें बांग्लादेशी मरीज़ों की तादाद सबसे ज़्यादा है. हालाँकि हॉस्पिटल को हो रहे नुक़सान के बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया.

कोरोना वायरस से निपटने के लिये अपने हॉस्पिटल की तैयारियों के बारे में उन्होंने बताया कि सभी सरकारी मेडिकल एडवाइज़री को फ़ॉलो किया जा रहा है. ओपीडी और आईपीडी में सभी मरीज़ों की गहन जाँच की जा रही है.  यही हाल बाक़ी अस्पतालों का भी है जहां मरीज़ों की तादाद में बड़ी तेज़ी से कमी आई है.  RTIICS हॉस्पिटल में पहले रोज़ाना 200 के लगभग बांग्लादेशी मरीज़ इलाज कराने आते थे लेकिन अब वहाँ 100 से भी कम मरीज़ हैं. जो बचे भी हैं उन्हें भी वापस भेजा जा रहा है.
शान्ति पार्क और इससे जुड़े बाक़ी इलाक़ों में जहाँ तमाम गेस्ट हाउस, लॉज और होटल हैं वहाँ भी सन्नाटा पसरा है. 

इन इलाक़ों में बांग्लादेशी मरीज और उनके साथ आये रिश्तेदार ठहरते हैं. उनके न आने से इन होटलों और रेस्टॉरेंट्स में भी खामोशी छा गई है. शान्ति पार्क में अंजलि गेस्ट हाउस की मालकिन ने बताया कि उन लोगों की पूरी कमाई सिर्फ़ गेस्ट हाउस से होती है. जबसे ये समस्या शुरू हुई है कस्टमर आने बिल्कुल बंद हो गये हैं. उनका कहना है कि लोकल लोग और बाक़ी हिस्से के लोग तो किराये में रुकते नहीं है, लगभग सारे किरायेदार बांग्लादेशी होते हैं. 

उनके घर में लगभग 17 कमरे हैं जिनमें से सिर्फ़ दो ही भरे हैं और कुछ दिन में वो भी ख़ाली हो जायेंगे क्योंकि 3 दिन के अंदर गेस्ट हाउस खाली करने के सरकारी आदेश हैं. उनके घर में कुल 7 लोग हैं जिसमें से 3  लोग मरीज़ हैं. उनकी एक बेटी भी है जो उच्च माध्यमिक में पढ़ती है. इतने लोगों का सारा खर्च सिर्फ़ गेस्ट हाउस के भरोसे था, सब कुछ एक बार में ही बंद हो जाने से बहुत परेशानी हो रही है. मरीज़ों के आने से ही हमारा घर चलता है, अब हम कहाँ जायें, क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा है.

लगभग यही हाल सभी होटलों का है जिनमें मरक़िज स्ट्रीट और सदर स्ट्रीट के होटल भी हैं. यहाँ लगभग 60%  से ज़्यादा किरायेदारों की संख्या कम हो गई है. मरक़िज स्ट्रीट में कपड़े की दुकान चलाने वाले अमित ने बताया कि कल परसों से सिर्फ़ 10- 12 कस्टमर ही दुकान में आये हैं. पहले जहां रोज़ाना 100 के लगभग कस्टमर आते थे, अब एकदम सन्नाटा छा गया है. अमित की दुकान में भी ज़्यादातर बांग्लादेशी कस्टमर ही आते थे. 

कलकत्ता होजरी एसोसिएशन के एक सदस्य अनिर्बान ने बताया कि खुदरा व्यापार में बड़े स्तर पर गिरावट हुई है. बाज़ार में लोगों का आना और ख़रीददारी कम हुई है. बांग्लादेशी पर्यटक और इलाज के सिलसिले में आये लोग उनके बड़े ग्राहक होते थे. पर अब वो भी नहीं आ रहे जिससे कई दुकानें बंद होने की कगार पर हैं.

कलकत्ता में बड़ी तादाद में बांग्लादेशी छात्र भी रहते हैं जो मेडिकल, इंजीनियरिंग और तमाम यूनिवर्सिटीज में पढ़ते हैं. कोरोना वायरस के प्रभाव में उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. शिक्षण संस्थानों को बंद किया जा रहा है और छात्रों को वापस जाने के लिये कहा जा रहा है. ऐसे में, विदेशी छात्र घर ख़ाली कराने की समस्या का सामना कर रहे हैं.

बांग्लादेश के एक छात्र ह्रदय, बाघाजतिन में रहते हैं और यहाँ पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बॉर्डर बंद किये जाने और आवाजाही रुक जाने से बहुत समस्या हो रही है. उनके पास पैसे भी ख़त्म हो गये हैं और जो भी ब्रोकर पहले यहाँ बांग्लादेशी करेंसी के बदले भारतीय करेंसी उपलब्ध कराते थे, वो भी बंद हो गया है. ह्रदय बॉर्डर तक जाकर करेंसी एक्सचेंज करवा कर लाये हैं. ह्रदय और उनके साथ आई सिंजोय दोनों साथ रहते हैं. उन्होंने बताया कि अगर जल्दी ही ये सब ख़त्म नहीं हुआ तो उन्हें पढ़ाई छोड़कर घर जाना पड़ेगा.

जॉर्ज टेलीग्राफ इंस्टीट्यूट की एक प्रोफ़ेसर का कहना है कि ये बहुत दुविधा की स्थिति है. एक तरफ़
लोगों के रोज़गार और छात्रों की पढ़ाई का नुक़सान भी हो रहा है पर दूसरी तरफ इस महामारी की चपेट में लोग न आयें, ये भी ध्यान रखना है. आख़िर ये सब लोगों की सुरक्षा के लिये ही किया जा रहा है.

महामारी जब भी आती है तो इसका प्रभाव सिर्फ़ स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता बल्कि रोज़गार, अर्थव्यवस्था, बाज़ार सब कुछ इसकी चपेट में आते हैं. पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस(COVID-19) से पैदा हुई समस्याओं से जूझ रही है. भारत की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ रहा है. इस वैश्वीकृत दुनिया में लोग, शहर और देश रोजगार और कारोबार के लिए एक-दूसरे पर लगातार निर्भर होते गए हैं. ख़ासकर निम्न मध्यमवर्गीय रोज़गार बहुत बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. 

कोलकाता इसका अपवाद नहीं है.

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