Wednesday 29 April 2020

"हासिल" के रणविजय सिंह उर्फ़ इरफ़ान खान को कौन भूल सकता है

अभिनेता इरफ़ान खान को श्रद्धांजलि 

हासिल से इरफान ने किया अभिनय का मुकाम हासिल 

  • गौरव तिवारी
सहसा विश्वास नहीं होता है. अपनी तरह के अनूठे और अकेले अभिनेता इरफ़ान खान चले गए. वे बीमार थे. एक मुश्किल कैंसर से जूझ रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वे इस लड़ाई को जीत जायेंगे. लेकिन जैसे परदे पर उनके अभिनय में कुछ भी निश्चित नहीं होता, वे अचानक चले गए. 

इस खबर के साथ ही फिल्म "हासिल" की याद हो आई. इलाहाबाद का होने और छात्र-राजनीति में दिलचस्पी होने के कारण मुझे सबसे पहले "हासिल" का रणविजय सिंह यानी इरफ़ान खान की ही याद आई. साल 2003 में आई इलाहाबादी तिग्मांशु धूलिया की सुपरहिट फिल्म "हासिल" का रणविजय सिंह भले ही पर्दे पर मर गया लेकिन वो किरदार आज भी हम जैसे लाखों दर्शकों के आंखों के सामने है। इसी किरदार से इरफान खान ने बॉलीवुड में अपनी अलग शख्सियत बनाई। 

एशिया के सबसे पुराने छात्रसंघ ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय) की छात्र राजनीति पर बनी फ़िल्म हासिल में इरफान खान ने छात्रनेता (खलनायक) रणविजय सिंह का किरदार निभाया है। इलाहाबाद विवि के छात्रसंघ की राजनीति को 7 वर्ष तक लगातार जीने के बाद अपने अनुभव के आधार पर यह विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि रणविजय सिंह का किरदार इलाहाबाद विवि के छात्रनेताओं की वास्तविकता के बहुत करीब दिखता है। 

फ़िल्म के एक दृश्य में इरफान खान दौड़ते हुए बम बनाकर चला देते हैं। ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले एक छात्रनेता इलाहाबाद विवि के हॉलैंड हॉल हॉस्टल में रहते थे जिनकी कहानियां मैंने अपने सीनियरों से खूब सुनी हैं। इसके अलावा इस फिल्म में इरफान के बोलने का ढंग इलाहाबादी छात्रनेताओं से हूबहू मिलता है। कहते हैं कि अच्छा अभिनेता वाही होता है जो अपने किरदारों की खाल के अन्दर घुस जाए. इरफ़ान "हासिल" के रणविजय सिंह की खाल में घुस गए थे.  

फ़िल्म के एक दृश्य में वोट के लिए हॉस्टल में आरती घुमाने की प्रथा को मैंने खुद 2014 से 17 तक देखा है। आरती घुमाना इविवि के हॉस्टलों में सन 2017 तक चुनावी राजनीति और जातिवादी गोलबंदी एक प्रथा रही है।
इस प्रथा में हॉस्टल के कमरे-कमरे जाकर हॉस्टल के दबंग छात्रनेता आम छात्रों को आरती की थाली पर कसम दिलाते थे कि "मैं कसम खाता हूँ कि अमुक छात्रनेता को वोट दूंगा"। यह परंपरा मतदान होने की रात को निभाई जाती थी। 

फ़िल्म में रणविजय सिंह (इरफान खान) एक ऐसी लड़की को चाहने लगता है जो किसी और आम छात्र को चाहती है। रणविजय सिंह द्वारा उस छात्र को अपहरण कराकर बुलाने और धमकाने जैसा दृश्य इलाहाबाद की उस वास्तविक स्थिति को दर्शाता है जिसे मैंने खुद 2014 से 18 तक अनेकों बार देखा है। कहने की जरूरत नहीं है कि रणविजय सिंह के किरदार के लिए इरफान खान को 2004 में फिल्मफेयर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार मिला था। 

अलविदा अभिनेता इरफ़ान ख़ान!

इरफान खान ने अपने बॉलीवुड कैरियर की शुरुआत वर्ष 1998 में फ़िल्म 'सलाम बॉम्बे' से की थी। इसके अलावा उन्होंने आस्कर जीतनेवाली फ़िल्म "स्लमडॉग मिलियनेयर" (2008) में पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार भी निभाया था। "नॉक आउट" (2010), "बिल्लू बारबर" (2009), "पार्टीशन" (2007) जैसी फिल्मों से इरफान ने सिनेमा जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। 

लेकिन सच यह है कि 2003 में आई फ़िल्म "मकबूल" में मकबूल के किरदार में और 2003 में ही आई फ़िल्म "हासिल" में रणविजय सिंह के किरदार में इरफान खान ने अपने अभिनय का एवरेस्ट दिखा दिया था। 

इरफान पिछले साल (2019) लंदन से इलाज करवाकर लौटे थे और लौटने के बाद वो कोकिलाबेन अस्पताल के डॉक्टरों की देखरेख में ही ट्रीटमेंट और रुटीन चेकअप करवा रहे थे। फ़िल्म 'अंग्रेज़ी मीडियम' की शूटिंग के दौरान भी उनकी तबीयत बिगड़ जाया करती थी। हाल ही में इरफ़ान ख़ान की मां सईदा बेगम का जयपुर में निधन हो गया। लॉकडाउन की वजह से इरफ़ान अपनी मां की अंतिम यात्रा में शरीक नहीं हो पाए थे और वीडियो कॉल के ज़रिए ही उन्होंने मां के जनाज़े में श‍िरकत की थी। 

अफ़सोस मां की मृत्यु के सिर्फ चार दिन बाद ही हरफ़नमौला अभिनेता इरफान खान का आज बुधवार (29 अप्रैल 2020) को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में 54 वर्ष की उम्र निधन हो गया। इरफान 2018 से न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (एक विशेष प्रकार का कैंसर) नामक बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें मंगलवार को कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 

इरफान ने ट्वीट करके खुद अपनी बीमारी के बारे में बताया था। उन्होंने ट्वीट किया था कि "ज़िंदगी में अचानक कुछ ऐसा हो जाता है, जो आपको आगे लेकर जाता है। मेरी ज़िंदगी के पिछले कुछ दिन ऐसे ही रहे हैं। मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी हुई है लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और ताक़त ने मुझमें उम्मीद जगाई है।" बीमारी के बारे में पता चलते ही इरफ़ान ख़ान इलाज के लिए लंदन चले गए थे। इरफ़ान वहां क़रीब एक साल रहे और फिर मार्च 2019 में भारत लौटे थे। 

कलाकार इरफ़ान खान की जीवन यात्रा 

इरफ़ान खान का पूरा नाम इरफ़ान अली खान था। इरफ़ान का जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर (राजस्थान) में हुआ था। इरफान ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। 23 फरवरी 1995 को इरफान ने कलाकार और नाट्यकर्मी सुतपा सिकंदर से शादी की थी। इरफान के दो बेटे बाबिल खान और अयान खान हैं। 

इरफ़ान की कई फिल्में हैं जिसमें उन्होंने शानदार अभिनय किया है. 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म "पान सिंह तोमर" में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला था। 2008 में इरफान को फ़िल्म "लाइफ इन ए मेट्रो" के लिए फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने इरफान खान को 2011 में अभिनय के क्षेत्र में 'पद्म पुरस्कार' से सम्मानित किया। 

इरफान बालीवुड की 30 से ज्यादा फिल्मों मे अभिनय कर चुके हैं। इरफान ने हॉलीवुड में भी ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर और द अमेजिंग स्पाइडर मैन जैसी फिल्मों में भी काम करके अपनी अलग पहचान बनाई। इरफान ने फिल्मों के अलावा धारावाहिकों में भी काम किया। इरफान ने 1994 में सीरियल 'द ग्रेट मराठा नजीबुद्दौला' में रोहिल्ला सरदार और 1992 में सीरियल 'चाणक्य' में सेनापति भद्रसाल का किरदार निभाया था। 

लेकिन "हासिल", "पान सिंह तोमर" के अलावा "पीकू", "लंचबाक्स", "हिंदी मीडियम", "करीब-करीब सिंगल", "नेमसेक", "लाईफ आफ पाई" "हैदर" और "तलवार" जैसी कई फिल्मों में उनका अभिनय हमेशा याद किया जाएगा. 

फिल्म अभिनेत्री स्मिता पाटिल की तरह इरफ़ान भी उस समय चले गए जब वे अपने अभिनय के उरूज पर थे और उनका सबसे बेहतर काम आना बाकी था. सचमुच, उन्हें भुलाना मुश्किल होगा.  

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