Monday 4 May 2020

एन राम क्यों कहते हैं कि मीडिया को भी ज़िम्मेदार और जवाबदेह होना होगा?

संपादक नरसिम्हन राम के 75वें जन्मदिन (4 मई) पर विशेष 

बोफ़ोर्स से राफ़ाल तक खोजी पत्रकारिता के 50 वर्षों का सफ़र है एन राम का जीवन 
  • गौरव तिवारी 

साल था 1987. केंद्र में कांग्रेस की सबसे भारी बहुमत की सरकार थी. लेकिन 'द हिन्दू' के पत्रकार-संपादक नरसिम्हन राम, लोकप्रिय नाम एन. राम को जरा भी डर नहीं लगा जब उन्होंने बोफ़ोर्स तोप सौदे में घूस लेने की खोजी रिपोर्टें छापनी शुरू कीं. उस समय एन. राम 42 साल के थे. जब उस समय की राजीव गाँधी सरकार ने प्रेस का मुंह बंद करने के लिए एक कड़ा मानहानि कानून लाने की कोशिश की तो दिल्ली में कुलदीप नैयर जैसे वरिष्ठ पत्रकारों के साथ एन. राम भी सड़कों पर उतरने में नहीं हिचके. 
 
एक बार फिर वर्ष 2019 जब मुख्यधारा की पत्रकारिता चाटुकारिता और दलाली में व्यस्त थी, अखबारों और चैनलों के बीच सत्ता का संरक्षण पाने की होड़ मची हुई थी और सच बोलने और छापने के खिलाफ भय का माहौल था, तब 'द हिन्दू' के एन. राम ने रॉफेल फाइटर जेट सौदे से जुड़ी गंभीर जानकारियों और दस्तावेजों को सामने लाकर सरकार की भारी किरकिरी कर दी. एन राम तब तक 74 बसंत देख चुके थे.   

बीते कल यानी 4 मई को एन राम का 75वां जन्मदिन था. उन्होंने इन बीते 75 सालों में भारतीय पत्रकारिता को बहुत कुछ दिया है. उनकी पत्रकारिता में साहस के साथ विवेक, तर्क, सरोकार और मूल्यों के प्रति गहरी और अगाध आस्था दिखाई देती है. 50 साल से अधिक के अपने पत्रकारीय जीवन में एन. राम ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन वे अपने मूल्यों पर हमेशा टिके रहे. 

एन राम कहते हैं कि आज पत्रकारों के लिए निडरता नंबर एक की आवश्यकता है। सत्यापन, सटीकता, सटीकता के लिए जुनून, समझदारी और जांच एक उत्कृष्ट पत्रकार बनने के लिए आवश्यक प्रमुख गुण हैं। राम फील्ड रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर भी जोर देकर कहते हैं कि यह डिजिटल टूल के आगमन के कारण बदल गई है लेकिन डिजिटल उपकरणों की सहायता के बाद भी फ़ील्ड रिपोर्टिंग आवश्यक है, विशेष रूप से तथ्यों को सत्यापित करने के लिए। डिजिटल उपकरण पत्रकारिता के क्षेत्र में कड़ी मेहनत का विकल्प नहीं हो सकते। 

एन राम का मानना है कि छात्रों को पत्रकार बनने से पहले पत्रकारिता की समझ रखनी चाहिए। वे कहते हैं कि पत्रकारिता के छात्रों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पत्रकारिता कैसे काम करती है? मीडिया को पारदर्शी और जवाबदेह होना चाहिए, खासकर मौजूदा स्थिति में जहां पत्रकारिता के प्रति विश्वास की कमी हो रही है। बोफोर्स घोटाले के समय की तुलना में आज जांच एजेंसियों द्वारा किसी घोटाले का उजागर करने की इच्छा गिरावट पर है। यह जांच एजेंसियों की निडरता में कमी के साथ साथ उस वर्तमान राजनीतिक स्थिति का भी परिचायक है जहां जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जाता है। प्रेस की स्वतंत्रता पर कानूनों को संशोधित किया जाना चाहिए। 

अपनी युवावस्था के दौरान तमिलनाडु की ओर से रणजी ट्रॉफी में विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर खेलने वाले एन राम का जन्म 4 मई 1945 को ब्रिटिश भारत के मद्रास में हुआ था। उन्होंने स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से जुड़कर छात्र राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग भी लिया।उल्लेखनीय है कि एन राम उस संयुक्त
परिवार के हिस्सा हैं जो 'द हिन्दू' समूह के अखबारों और पत्रकारों का मालिक है. इस मायने में वे 'द हिन्दू' के मालिक हैं लेकिन उनमें और दूसरे मालिक-संपादकों में बहुत फर्क है. वे मूलतः पत्रकार हैं. हिंदी के जानेमाने पत्रकार और संपादक एस पी सिंह कहा करते थे कि देश में सिर्फ तीन मालिक संपादक बेहतरीन पत्रकार भी हैं- 'टेलीग्राफ' के अवीक सरकार, 'द हिन्दू' के एन राम और 'इंडिया टुडे' के अरुण पुरी.  

राम ने 1977 में 'द हिंदू' में एसोसिएट एडिटर के रूप में अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी और फिर 1980 में द वाशिंगटन में कॉरेस्पोंडेंट बने। फिलहाल, एन राम दैनिक अंग्रेजी अखबार "द हिंदू" के पूर्व मुख्य संपादक और द हिन्दू ग्रुप की पब्लिशिंग कंपनी के चेयरमैन हैं। राम द हिंदू, फ्रंटलाइन, बिजनेसलाइन के पूर्व एडिटर-इन-चीफ भी रहे हैं। राम ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, चेन्नई से बी.ए. और इतिहास में एमए (प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई) किया। कोलंबिया विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से तुलनात्मक पत्रकारिता में शिक्षा हासिल की।

एन राम ने भारत की विदेश नीति और परमाणु नीति के पहलूओं, भारत की आर्थिक और राजनीतिक संप्रभुता पर बाहरी दबाव, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग, भारत में सांप्रदायिकता और कट्टरवाद की चुनौती, श्रीलंका के जातीय संकट और भारत के साथ बातचीत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज में मीडिया की भूमिका जैसे प्रमुख विषयों पर गहन पत्रकारिता की है।

राम ने बोफोर्स हथियारों के भ्रष्टाचार के घोटाले की जांच (जो द हिंदू ने की) का नेतृत्व किया। उनकी इस जांच को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने 2012 में अपने शताब्दी समारोह के दौरान 50 महान रिपोर्टों में शामिल किया था। 1980-81 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ हुए भारत के विवादास्पद 5 बिलियन की विस्तारित फंड सुविधा (EFF) का विस्तृत जांच और विश्लेषण भी किया था।

1990 में भारत सरकार ने एन राम को पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रशंसनीय काम करने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। 1990 में ही राम को एशियन इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट ऑफ़ द ईयर और रामनाथ गोयनका अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। 2002 में उन्हें पहला जेआरडी टाटा अवार्ड मिला। 2005 में श्रीलंका की सरकार ने राम को श्रीलंका रत्न (श्रीलंका का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान) से सम्मानित किया। 2018 में राम को पत्रकारिता के प्रति उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) द्वारा प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राम ने व्हाई स्कैम्स हियर टू स्टे, आर.के. नारायण: द अर्ली इयर्स और राइडिंग द न्यूक्लियर टाइगर जैसी चर्चित किताबें भी लिखी। उनके शोध प्रकाशनों में "द न्यूक्लियर डिस्प्यूट: एन इंडियन पर्सपेक्टिव" और "एन इंडिपेंडेंट प्रेस एंड एंटी-हंगर स्ट्रैटेजीज: द इंडियन एक्सपीरियंस" प्रमुख हैं।

एन राम 2011 में पटियाला में आयोजित भारतीय इतिहास कांग्रेस के 72 वें सत्र में के समकालीन भारत विभाग के अध्यक्ष चुने गए जहां उन्होंने "समकालीन भारत में समाचार मीडिया की बदलती भूमिका" पर व्याख्यान दिया। वह एशियन कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज्म (ACJ), चेन्नई के साथ मीडिया डेवलपमेंट फाउंडेशन (एमडीएफ) के संस्थापक ट्रस्टी और कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के बोर्ड ऑफ विजिटर्स के सदस्य हैं। एन राम सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के प्रचार के लिए समर्पित संगठन राष्ट्रीय एकता परिषद के पूर्व सदस्य भी हैं।

भ्रष्टाचार और प्रेस की स्वतंत्रता पर एन राम के विचार

भ्रष्टाचार ने समाचार मीडिया और पत्रकारिता को भी प्रभावित किया है। जब तक कि हम में से कोई भी इस विषय को गहराई से नहीं समझता है, हम केवल दूसरों पर उंगली उठाते रहेंगे और पत्रकारिता के पेशे को साफ नहीं कर पाएंगे। भारतीय समाचार मीडिया में प्रेस की स्वतंत्रता पर राम का कहना है कि कानूनों की अनुचित रूप से की गई व्याख्याओं का अक्सर गलत इस्तेमाल किया जाता है ताकि अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रभाव डाल समाज में असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा सके। 

एन. राम के मुताबिक, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा को सभी नागरिकों द्वारा सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में लिया जाना चाहिए। स्वतंत्रता सामाजिक जिम्मेदारी के साथ आती है और यह बात प्रेस और अन्य समाचार माध्यमों पर भी उतनी ही लागू होती है, जितना कि हर नागरिक पर। भ्रष्टाचार के इस दौर में पेशेवर पत्रकारिता के मूल कार्यों, मानकों और मूल्यों की रक्षा और पुनरोद्धार करना, लोकतंत्र, सार्वजनिक हित और अखबार उद्योग के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। समाचार पत्र अपने विशाल और विविध पाठकों के संबंध में कई भूमिकाएँ निभाते हैं। इन भूमिकाओं में से कुछ में गिरावट आई है और कुछ में दूर हो गई है या बस समय के साथ बदल गई हैं लेकिन गंभीर और स्वतंत्र पत्रकारिता के दो केंद्रीय कार्य निरंतर बने हुए हैं। पहला विश्वसनीय-सूचनात्मक और दूसरा आलोचनात्मक-खोजी।

खोजी पत्रकारिता पर एन राम के विचार
 
खोजी पत्रकारिता के दौरान मीडियाकर्मियों यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक कोई मसला/मुद्दा/विषय जनहित न हो, कहानी के शख़्स के निजी जीवन को सार्वजनिक करने से बचना चाहिए। हमने अफ़गानिस्तान में कुछ ननों के निजी जीवन का ख़ुलासा करने वाले दस्तावेजों को जारी नहीं किया क्योंकि वो ज़रूरी नहीं था लेकिन रॉफेल के दस्तावेजों में कुछ भी निजी नहीं था, इसमें केवल सौदे का विवरण शामिल था। 

क्या आज के दौर में सच्चाई को सामने लाने के लिए मीडिया संस्थानों के बीच भी होड़ है? इस प्रश्न पर एन राम
कहते हैं कि उस दौर में कोई डरता (सत्ता से) नहीं था। जब हमने बोफोर्स घोटाले के बारे में खुलासे किए तो दूसरे मीडिया संस्थानों को भी उसे छापने के लिए बाध्य होना पड़ा लेकिन आज का वक्त अलग है। एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थानों के दफ्तरो पर आयकर विभाग का छापा पड़ता है। अब मीडिया बदल गई है। अगर सरकारी विज्ञापनों को ना छापा जाए तो फायदा और भी कम हो जाएगा। पहले प्रिंट मीडिया से 70-80 फीसदी तक लाभ आता था लेकिन वक्त के साथ डिजिटल मीडिया ने काफी कुछ बदल दिया है।

डिजिटल मीडिया में समाचार पढ़ने के लिए एक न्यूनतम राशि लगाई जानी चाहिए लेकिन किसी भी मीडिया में इतनी हिम्मत नहीं कि वो ऐसा कर सकें। जल्द ही अख़बारों का सर्कुलेशन भी कम हो जाएगा और टेलीविज़न मीडिया को ऐसा लगता है कि राष्ट्रवाद की जीत होगी।

एन राम को जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं! उम्मीद है कि वे आगे भी भारतीय पत्रकारिता को राह दिखाते रहेंगे. 

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