Monday 4 May 2020

मर्डर मिस्ट्री के राज परत दर परत खोलती फ़िल्म है मिस सीरियल किलर

फिल्म समीक्षा 




फ़िल्म- मिस सीरियल किलर

लेखक/निर्देशक - शिरीष कुंदर

निर्माताफ़राह खान

कलाकार - जैकलीन फर्नांडिस, मनोज बाजपेई, मोहित रैना  जैन मैरी

कहां देख सकते हैं - नेटफ्लिक्स पर

जोनर - थ्रिलर


शुभम शर्मा


फिल्म के बारे में


महाभारत कहानियों का खजाना है। इस किताब में एक कहानी है जिसको भारतीय महिलाएं एक व्रत के तौर पर जिंदा रखे हुए हैं। वह कहानी है सती सावित्री की, इनकी कहानी वनपर्व में बताई गई है। कहानी ये है कि एक राजकुमारी थी, जिनकी सत्यवान नाम के एक युवक से शादी हो जाती है। सत्यवान की उम्र कम होती है और वह जल्दी मर जाता है। जब वह मरता है यानि उसके प्राण जब छूटते हैं, तो हिंदू धर्म में बताए गए मौत के देवता यमराज खुद उसके प्राण लेने आते हैं। जब वह उसके प्राण लेकर जा रहे होते हैं तो सावित्री उनसे जिरह करती है और युक्ति लगाकर अपने पति के प्राण बचा लेती है।

भारत में इस कहानी को महिलाओं के भारी तादाद में सावित्री नाम रखने से जोड़कर देखा जा सकता है। इस पात्र की याद में देश में महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं ताकि उनके पति की उम्र बढ़ जाए। मिस सीरियल किलर की कहानी भी इसी भारतीय नजरिये से पेश की गई है। मर्द सीरियल किलर तो पच जाता है लेकिन महिला सीरियल किलर कहां हो सकती है भला? वह तो त्याग की मूर्ति है ! फिल्म इन्हीं सारी चीजों के इर्द-गिर्द घूमती है। 



इस फिल्म में जैकलीन फर्नांडिस ने सोना का किरदार निभाया है और उनके पति डॉक्टर मृत्युंजॉय मुखर्जी के रोल में हैं मनोज बाजपेयी। मृत्युंजॉय उर्फ जॉय एक मैटरनिटी होम चलाते हैं और उनकी पत्नी सोना एक पुलिसवाले इमरान शाहिद (मोहित रैना) से परेशान हैं। इमरान और सोना की अतीत में नजदीकियां होती हैं इमरान, जॉय को जेल भेजने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है। वो कामयाब भी होता है लेकिन फिर कहानी में ऐसा मोड़ आता है कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा बैठते हैं।

यहां हीरोइन अपने पति को बचाने के लिए खुद हत्यारी बनने को राजी है। बस यही फिल्म की कहानी है। वह अपने पति को बचा पाती है या नहींमिस सीरियल किलर कैसे अपने पति के लिए सब कुछ करती है, यह फिल्म देखने पर ही आपको पता चलेगा।

इस फिल्म में फिल्मकार इतनी परतों में कहानी दिखाते हैं कि खुद कंफर्टेबल नहीं लगते वैसे अकाउंट की भाषा में एक अनुपात होता है, जिसे त्याग-कर अनुपात यानि सेकरीफाइज रेशियो कहते हैं। इसमें कंपनी के साझेदार अपने लाभ को त्याग देते हैं, जिसे बाकी के साझेदारों के बीच बांट दिया जाता है । फिल्म की मुख्य पात्र उसी अनुपात से घिरी दिखती हैं। चूंकि फिल्म एक घंटे ४६ मिनट की है, तो उसमें डिटेलिंग साफ नहीं दिखती है। कुछ सीन बहुत बढ़िया बन गए हैं, वही दूसरे सीन निराश करते हैं।

जैसे जैकलीन सोना का किरदार जब एक लड़की को पकड़ने जाता है तो वह सीन देखकर रोमांच बन पड़ता है क्योंकि तवाइकेंडो में ब्लैक बेल्ट किसी लडंकी का अपहरण करना आसान नहीं है।

परफ़ॉर्मेंस


फिल्म की मुख्य भूमिका में सोना (जैकलीन फर्नांडिस) कुछ सीन में प्रभावी दिखी हैं, वह अपनी आई कैंडी की छवि को यहां तोड़ती सी दिखती हैं। फिल्म में एक्शन करते हुए वह नैचुरल लगती हैं। एक सीन जिसमें वह चिल्लाती हुए बड़बड़ाती हैं, काफी अच्छा बन पड़ा है। इसके बावजूद उनकी डायलॉग डिलिवरी की समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है। उनकी हिंदी बोलने में दिक्कत स्क्रीन पर साफ छलकती है।

वहीं दूसरे अदाकारों में मनोज बाजपेई काफी बेहतर रहे हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स पूरा उनके ही जिम्मे है, इसलिए वह देखने लायक है। फिल्म की एडिटिंग में जो कलर कॉम्बिनेशन उभरकर सामने आया है, जैसे एक सीन में एकदम से हरे और लाल रंग का खेल दिखता है, तो लगता है कि रंगमंच पर कोई ड्रामा देख रहे हों। बाकी अदाकार भी औसत रहे हैं।

कमजोर पक्ष


फिल्म का कमजोर पक्ष शिरीष कुंदर हैं। वह फिल्म के डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर, एडिटर और म्यूजिक स्कोर देने वाले भी खुद हैं। इतनी जिम्मेदारी खुद करने में वह खुद से ही कॉम्पीटिशन करते दिखते हैं। ऐसा माना जाता है फिल्म निर्देशक के नजरिए से बनती है, वहीं रंगमंच में लेखक की स्क्रिप्ट सबसे ऊपर होती है। फिल्म में उनका स्क्रिप्ट राइटर, निर्देशक के ऊपर बैठा नजर आता है। वह थिएटर कि तर्ज पर फिल्म बनाने की कोशिश करते दिखे हैं। हद से ज्यादा क्रिएटिवटी बनावटीपन दिखती है।

जैकलीन के घर में उनकी फोटो का अंबार, बाहर बरामदे तक में उनकी पेंटिंग फेक लगती है। कहते है "राइटिंग इज ऑल अबाउट थिंकिंग लिखना पूरे तरीके से सोचना है, वह कहानी को अच्छे से बता नहीं पाए हैं। जैसे सोनिया कहां पढ़ाती है, यह क्लियर नहीं है। सोनिया के माता-पिता सर्जन हैं, इसलिए उन्हें डॉक्टर दामाद ही चाहिए। वहीं उनकी बेटी खुद को टैटू आर्टिस्ट बोलती है। यह कुछ बातें हैं जो साफ नहीं होतीं।

क्यों देखें


यह नेटफ्लिक्स पर रिलीज इस साल की पांचवीं इंडियन ओरिजनल फिल्म है। इससे पहलेघोस्ट स्टोरीज़’, ‘ये बैले’, ‘गिल्टीऔरमस्काभी चुकी हैं। फिल्म में सिनेमेटोग्राफी काफी सही है। सुंदर लोकेशन्स को दिखाया गया है। जैसे एक सीन है, जिसमें सोना अपने पति जॉय के कंप्यूटर में वकील का नंबर ढूंढ रही है, तो फ्रेम में एक तरफ दो आंखों की पेंटिंग दिखती है, तो उसी फ्रेम में एक तरफ एक मूर्ति जिसके मुंह पर उंगली रखी है, नजर आती है। फिल्म के इमोशंस, सेट डिजाइन में दिखते हैं।


ट्रेलरhttps://youtube/kwTNtpx13ZE



थ्रिलर और सस्पेन्स से भरपूर है मिसेज सीरियल किलर


मृत्युंजय चौधरी


नेटफ्लिक्स पर चुकी मिसेज सिरियल किलर का निर्देशन शिरीष कुंदर ने किया है। इसके पहले वह जोकर, जान--मन और कृति जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। मिसेज सीरियल किलर एक थ्रिलर, सस्पेन्स और ट्रेजेडी से भारी हुई फ़िल्म है। इस फ़िल्म की अवधि 116 मिनट है। जिन लोगों को इस तरह की फिल्में पसन्द हैं, उन्हें ये फ़िल्म आखिर तक बांध कर रखेगी। 

इस फ़िल्म की शुरुआत में जैकलीन फर्नांडिस एक लड़की को टॉर्चर करते हुए दिखाई देती हैं। यह देखकर आप सोचने लगेंगे की आखिरकार वो ऐसा क्यों कर रही हैं? और फिर यही सीन आपको फ़िल्म के बीच मे दिखाई देता है, तब आपको पता चलता है कि ऐसा वो क्यों कर रही थीं।



फ़िल्म की कहानी 


मिसेज सोना मुखर्जी (जैकलीन फर्नांडिस) के घर पुलिस इंस्पेक्टर (महेश रैना) आते हैं और उनके घर से कुछ सामान चुरा कर ले जाते हैं, जिसे सोना देख लेती है, फिर भी कुछ कर नही करती। घर मे घुसने और निकलने के बीच मिसेज मुखर्जी और इंस्पेक्टर के बीच बहस होती है, जिससे यह पता चलता है कि इन दोनों के बीच किसी समय कोई कोई रिश्ता जरूर था। उसके दूसरे ही दिन डॉ मृत्युंजय मुखर्जी (मनोज बाजपेयी) के किसी पुराने घर से छः लाशें मिलती हैं, जिसके आधार पर डॉ मुखर्जी को एक सिरियल किलर के रूप में गिरफ्तार कर लिया जाता है। जो कत्ल हुए रहते हैं, वे सभी एक ही तरह से हुए रहते हैं। जिनका कत्ल हुआ था, वे सभी लड़कियां शादी से पहले गर्भवती रहती हैं। उन सभी का गर्भपात कर बुरी तरह से कत्ल किया गया होता है। डॉ मृत्युंजय मुखर्जी एक गायनाकॉलोजिस्ट हैं, जिनके ऊपर सीधा शक पुलिस का जाता है। 

अदालत में डॉ मुखर्जी के ऊपर इंस्पेक्टर उन सबूतों के आधार पर आरोप लगाता है, जिसे वह डॉ मृत्युंजय के घर से चुरा कर लाता है। इस तरह डॉ मृत्युंजय को जेल हो जाती है। 

इतना देखने पर साफ दिखाई देता है कि डॉ मृत्युंजय को इन कत्लों के लिए फंसाया गया हैं। फिर अपने पति को बेगुनाह साबित करने के लिए सोना क्या-क्या करती हैं, ये देखते ही बनता है। असल मे सीरियल किलर कौन है और वह ये सब क्यों करता है, ये जानने के लिए आपको ये फ़िल्म पूरी देखनी पड़ेगी।
बात करें कहनी की तो कहानी अंत तक बांध कर रखती है। कुछ जगह के दृश्य आपको विचलित भी कर सकते है। पूरे फ़िल्म में एक जगह एक ऐसा दृश्य है, जहाँ पर सोना ब्रेड पर क्लोरोफार्म डालकर एक कुत्ते को खिला कर ये देखना चाहती है कि उसके ऊपर क्लोरोफार्म का क्या असर होता है। वहीं उसके पहले एक ऐसा दृश्य आता है, जिसमें वह किसी मेडिकल कॉलेज में स्टूडेंट्स को पढ़ाती हुई नजर आती है, जो कुछ अजीब सा लगता है।

अदाकारी


सभी कलाकारों ने बखूबी अपने किरदार को एक्ट किया किया है। हालांकि जैकलीन अपने किरदार से पूरी तरह से संतुष्ट नही कर पाती हैं। कुछ जगहों पर उनका एक्ट नाटकीय लगता है। मनोज बाजपेयी अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाते नजर आते हैं। इंस्पेक्टर बने महेश रैना ने भी अपने किरदार को बहुत अच्छे निभाया है। फ़िल्म के डायलॉग अच्छे हैं लेकिन कोई जुबान पर शायद ही चढ़ पाए।

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