Wednesday 6 May 2020

लवस्टोरी के जरिए कश्मीर का दर्द उभारने की कोशिश है ‘शिकारा’

फ़िल्म समीक्षा


ऋषभ देव


"हम आएंगे अपने वतन और यहीं पर दिल लगाएंगेयहीं के पानी में हमारी राख बहाई जाएगी”


ये डायलाॅग कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करने के लिए काफी है, लेकिन अगर आप यही सोचकर शिकारा मूवी देखेंगे तो थोड़ा निराश होंगे। शिकारा एक कश्मीरी जोड़े की लवस्टोरी है, जिसमें कश्मीरी पंडितों का विस्थापन है, कुछ उनके हालात दिखाए गए हैं और कुछ बाद की जिंदगी। ये सब कुछ सिमटा रहता है शांति और शिव की लव स्टोरी में, जो अपने घर जाना चाहते हैं- शिकारा।

कहानी


फिल्म शुरू होती है एक रिफ्यूजी कैंप से, जहां सब सो रहे हैं। उस सन्नाटे में एक ही आवाज रही है- टाइपराइटार की। कुछ ही मिनटों में कहानी के दोनों किरदारों को दिखा दिया जाता है, शिव और शांति। दोनों बूढ़े हो चुके हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलने आगरा जाते हैं। वहीं से कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है, कश्मीर। कैसे शिव और शांति मिलते हैं? उनकी शादी और कुछ किरदार, जो मूवी में कुछ देर के लिए ही दिखाई देते हैं। कुछ ही मिनटों में ये सब कुछ दिखा दिया जाता है।

ये कहानी वैसे तो है शिव और शांति के 30 साल लंबे प्रेम की, जिन्हें अपने घर से भी बेइंतहा प्यार है।आपको जाना होगा यहां से, कश्मीर हमारा है’, 'सिर ढंको, फरमान नहीं पढ़ा हमारा, ऐसे ही कुछ डायलॉग्स और दृश्य से उस समय के कश्मीर के माहौल को दिखाने की कोशिश की गई है। फिर वो रात दिखाई जाती है, जब घाटी में आग ही आग होती है। कश्मीरी पंडितों के घरों को जलाया जाता है। उसके बाद लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़कर जम्मू जाते हैं। ये सब कुछ बहुत जल्दी में दिखाया जाता है। थोड़ा और विस्तार से उस रात की कहानी को बताया जा सकता था 


लाखों लोग जम्मू के शरणार्थी कैंप में रहने लगते हैं। साल दर साल कैंप अच्छा हो जाता है लेकिन कश्मीर पर कोई बात ही नहीं दिखाई जाती। उस समय की राजनीति और आतंकवाद को और ना शरणार्थी कैंप को। मूवी में एक सीन है जिसमें शिव अपने पुराने दोस्त लतीफ से मिलता है। तब लतीफ कहता है- हम लोग एक-दूसरे को मारते रहेंगे और जिन्होंने हमारे हाथ में बंदूक पकड़ाई है, वे चुनाव जीतते रहेंगे।’ फिल्म में बीच-बीच में कुछ कविताएं इमोशनल और प्लस प्वाइंट के रूप में जरूर आती हैं। वो कविता तो सबको बेहद प्यारी लगेगी, जब गाड़ी से शिव और शांति वापस कश्मीर आते हैं और बैकग्राउंड में एक कविता चलती-रहती है। इसके अलावा कश्मीर के लोकसंगीत और कल्चर को शादी और गानों के ज़रिए फ़िल्म में बख़ूबी दिखाया गया है। ये फिल्म शिव और शांति की लवस्टोरी के लिए याद की जाएगी, जिसमें शिव, शांति के एक वायदे को पूरा करने के लिए अपने घर को बेचता है। वो घर जिसे वो शिकारा कहते हैं। जब दोनों अपने घर को कई सालों बाद देखने जाते हैं तो वो दृश्य भावुक कर देता है। 

किरदार


लीड रोल में शिव का किरदार किया है आदिल खान ने। आदिल ने अच्छी एक्टिंग की है। उनके एक्सप्रेशन्स प्रभाव डालते हैं। उनको स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। उससे ज्यादा अच्छा लगता है सादिया को देखना। सादिया ने इस मूवी में शांति का किरदार निभाया है। इन्होंने एक्टिंग बहुत अच्छी की है। मूवी में दोनों की जोड़ी कमाल लग रही है।

शिकारा को डायरेक्ट किया है, विधु विनोद चोपड़ा ने। आप इस फिल्म को अमेजन प्राइम पर देख सकते हैं। मूवी बहुत खराब नहीं है, देखी जा सकती है लेकिन कुछ कमियों की आलोचना भी जरूरी है। मूवी कुछ-कुछ बिखरी हुई-सी लगती है। ये तो पूरी तरह से कश्मीर के दर्द को बता पाती है और  ही पूरी तरह से लव स्टोरी है। इसमें कुछ प्रेम है, कुछ नफरत है और कुछ दर्द है, अपने शिकारा तक पहुंच पाने का। फिल्म के आखिर तक पहुंचने से पहले एक डायलाॅग है, जो इस फिल्म का पूरा तो नहीं, कुछ-कुछ मौजूं जरूर है। उस सीन में शांति, शिव से कहती है- ‘‘सारी उम्र बीत गई ना, पता ही नहीं चला’’!!

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