Thursday 23 April 2020

कोरोना संकट में भी महिलाओं के खिलाफ बढ़ती घरेलू हिंसा और सोशल मीडिया पर भद्दे मीम की भरमार भारतीय समाज की किस बीमारी की ओर इशारा करती है

प्रिय पुरुषों, इस लॉकडाउन में हिंसा और फूहड़ मजाक करने के बजाय महिलाओं के काम में सहभागी बनिए- वर्कफ्रॉम होम से वर्कफ्रॉम होम के लिए
  • आनंद कुमार 

देश में कोरोना के प्रकोप के बीच लॉकडाउन 3 मई तक कुल 40 दिनों तक चलनेवाली है। इस बीच दो तरह की खबरें महिलाओं के संदर्भ में आ रही हैं। पहला घरेलू हिंसा से जुड़े मामले बढ़ रहे हैं और दूसरा, सोशल मीडिया
पर महिलाओं के खिलाफ भद्दे मीम और जोक्स की गंदगी बजबजा रही है। इन दोनों वायरसों का संक्रमण कोरोना से भी तेज फैल रहा है। दोनों वायरस का एक ही नाम है- 'पितृसत्ता'। 

कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति शारीरिक रूप से बीमार हो रहा है, लेकिन पितृसत्ता से संक्रमित व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत पहले से बीमार है। लॉकडाउन का जब इतिहास लिखा जाएगा, तब ये भी लिखा जाएगा कि महिलाएं कोरोना के दौर में एक और जंग लड़ रही थीं और वो था पितृसत्ता के जरिये ताकत पानेवाला घरेलू हिंसा और अपमानजनक मजाक। 

पितृसत्ता का एक रूप घरों में बैठा शारीरिक-मानसिक हिंसा कर रहा है, तो दूसरा रूप सोशल मीडिया के दुनिया में ऑनलाइन तरीके से महिला की योग्यता को भद्दे मीम और जोक्स से अपमानित कर रहा है। यह सब उस देश में हो रहा है जहां प्रधानमंत्री ने महिला दिवस के मौके पर महिलाओं को सम्मान देते हुए अपना सोशल मीडिया अकाउंट्स उन्हें समर्पित कर दिया था। 

लॉकडाउन में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले 

सबसे पहले घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले पर गौर करना जरूरी हो जाता है क्योंकि ये हमारे समाज की आधी आबादी से जुड़ा हुआ मामला है। कोरोना संक्रमण से ज्यादा तेज घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। लॉकडाउन के वजह से लोग अपने घरों में बन्द हैं लेकिन इन बन्द घरों से घरेलू हिंसा की खबरें लगातार आ रही हैं। सरकार हर रोज कोरोना के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सूचना दे रही है और कोरोना से संक्रमित मरीजों का युद्धस्तर पर इलाज हो रहा है। लेकिन सरकार घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों को नियंत्रित कर पाने में वह असफल साबित हो रही है। 

राष्ट्रीय महिला आयोग ने देशव्यापी घरबंदी से पहले और बाद के 25 दिनों में विभिन्न शहरों से मिली शिकायतों के आधार पर यह दावा किया है कि घरेलू हिंसा के मामले 95 फीसदी बढ़ गए हैं। लॉकडाउन से पहले महिला आयोग को घरेलू हिंसा के 123 शिकायतें मिली थीं। वहीं लॉकडाउन के दौरान घरेलू उत्पीड़न के 239 मामले दर्ज
हुए हैं। 

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष का कहना है कि घरेलू हिंसा की शिकायतें ज्यादातर उत्तर भारत से मिली हैं, इनमें दिल्ली, यूपी और पंजाब राज्य से सबसे ज्यादा शिकायतें मिली हैं। घर बैठे पुरुष तनाव के कारण अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं। स्पष्ट तौर पर ये वही उत्तर भारत है जहां शादी को पवित्र रिश्ता माना जाता है और अपने संस्कृति पर गर्व करने का स्वांग किया जाता है। 

सवाल उठता है कि ये कैसा पवित्र रिश्ता और संस्कृति है,जहां लॉकडाउन के दिनों में भी महिलाओं को अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। जब पूरा विश्व कोरोना संकट से साझी लड़ाई रहा है तब भी महिलाएं अपने घर के चाहरदीवारी में दोहरी मार झेल रही हैं। पहला संकट उन महिलाओं के लिए 24 घण्टे साथ में रह रहे उनके पति हैं जो पितृसत्तावादी मानसिकता के पोषक हैं और अपनी पत्नी पर कुंठित होकर पितृसत्ता का डंडा चला रहे हैं। महिलाएं इससे बचने के लिए घरों की लक्ष्मण रेखा भी पार नहीं कर सकती हैं। 

ऐसा नहीं है कि घरेलू हिंसा से जुड़ी खबरें सिर्फ भारत से ही आ रही हैं बल्कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में भी घरेलू उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच विश्व और अरब क्षेत्र में घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं और उन्हें कई सामाजिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है।
  
ये वही विश्व है जिसने हाल ही में लैंगिक समानता के थीम पर महिला दिवस मनाया था। शायद मनाया नहीं था, मनाने का नाटक किया था। लॉकडाउन के दिनों में ऐसी तस्वीरें हमारे समाज को आईना दिखाती है कि अभी हम लैंगिक समानता के लक्ष्य से बहुत दूर हैं। समाज से लेकर सरकारों तक को कानून बनाने से पहले सामाजिक जागरूकता पैदा करना होगा। तब उसे कानून के बंधन में बांधना सही रहेगा। अन्यथा महिला सशक्तिकरण के नाम पर बड़े-बड़े आयोजन व्यर्थ है। घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों से स्पष्ट हो रहा है कि महिलाएं घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। 

अच्छी बात यह है कि इस मामले में इतने दिनों से सोई हुई सरकार ने अब सुध लिया है। राहत की बात यह है कि सरकार के तरफ से पीड़ित महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिया गया है और इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी हस्तक्षेप किया है। ऐसे में, जरूरी है कि समाजसेवी संगठन को सरकार के साथ मिलकर पत्नियों को प्रताड़ित वाले पुरुषों की काउंसलिंग करने की और जरूरत पड़ने पर कानूनी कार्रवाई करने की। घरेलू हिंसा से निपटने के लिए हेल्पलाइन नंबर उतना कारगर नहीं होगा, अगर ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए सरकार सख्त कदम नहीं उठाती है। 

लॉकडाउन में सोशल मीडिया पर शेयर होते भद्दे मीम और जोक्स 

अब आते हैं दूसरे मामले पर यानी सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ फैलते भद्दे मीम और जोक्स पर। ऐसे मीम और जोक्स की रफ्तार कोरोना से कई गुना तेज है। महिलाओं को प्रताड़ित करने का ये तरीका घरेलू हिंसा से ज्यादा भयावह है क्योंकि घरेलू हिंसा के ज्यादातर मामलों में पुरूष या उसके घर वाले सहयोग करते हैं। लेकिन मीम और जोक्स की ऑनलाइन दुनिया में महिलाओं के खिलाफ कुंठित सोच रखने वालों की कमी नहीं हैं। ऑनलाइन महिलाओं को प्रताड़ित करने में पुरुषों का बड़ा तबका आगे है। 

उदाहरण के लिए, वेबसाइट 'पंजाब केसरी' के मुताबिक टि्वटर पर कृष्णा नाम के एक यूजर ने लिखा,‘‘पहले घर
में पति-पत्नी के बीच कहा जाता था-सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर ऑफिस जाना है और अब कह रहे हैं- सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर बर्तन धोना, झाडू-पोंछा भी करना है।'' इस ट्वीट को 2 हजार से अधिक लोगों ने लाइक और शेयर किया है।कहने की जरूरत नहीं है कि ट्वीट शेयर करने वाले कुंठित मानसिकता से ग्रस्त हैं। 


इसी तरह के एक और मीम पोस्टर पर गौर करिए। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाथ जोड़ कर आग्रह करते हुए दिखाया गया है। मीम में कहा गया है-

"महिलाओं से निवेदन है कि शांत रहें, जिससे पुरूष घर में रह सकें" 


क्या ऐसे मीम महिलाओं की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाते हैं? अगर पहुँचाते है तो समाज अपने स्तर पर कार्रवाई क्यों नहीं करता है? लेकिन उलटे हो यह रहा है कि ऐसे भद्दे मीम फारवर्ड किए जा रहे हैं.  

जब लॉकडाउन के दिनों में लोग घर पर हैं तो इसी तरह के कई मीम सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर ये मीम महिलाओं के शरीर पर भद्दी टिप्पणी करते हैं और महिला की योग्यता पर कटाक्ष करते नजर आते हैं। देखने में तो मीम या जोक्स सामान्य हास्य-व्यंग्य जैसे नजर आते हैं लेकिन इनका उद्देश्य स्पष्ट होता है- महिलाओं को कम करके आंकना. ऐसे मीम या जोक्स शेयर करने वालों की मानसिकता पितृसत्ता से ग्रसित होती हैं और ये कुंठित लोग पितृसत्तात्मक व्यवस्था के पोषक होते हैं। ज्यादातर मीम में महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है और उन्हें मूर्ख, लड़नेवाली और परेशान करनेवाली बताया जाता है। 

ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन के दिनों में ही ऐसे मीम बन रहे हैं और उसे घिनौनी मानसकिता के साथ शेयर किया जा रहा हैं। इससे पहले भी महिलाओं पर ओछी टिप्पणी करते हुए बहुत से मीम सोशल मीडिया पर नजर आते रहे हैं। 

सोशल मीडिया अकाउंट्स जैसे फेसबुक, व्हाट्सऐप या इंस्टाग्राम के फैमिली ग्रुप में अक्सर ऐसे जोक्स या मीम देखने को मिलते हैं जो लड़कियों को लालची, घमंडी या चरित्रहीन के नजरिए से दिखाने की कोशिश करते हैं। लड़कों को असहाय और पीड़ित दिखाया जाता हैं। गौर करने वाली बात है कि ये सभी मैसेज/मीम/जोक्स हमारे करीबी रिश्तेदार ही भेजते हैं जो उम्र में बड़े और कथित रूप से शिक्षित कहलाना पसंद करते हैं। 

कई फैमिली ग्रुप में पत्नियों के खिलाफ बड़ी मात्रा में जोक्स/मीम शेयर किए जाते हैं। ऐसे मीम में पत्नियों को क्रूर, लालची, पति को हमेशा परेशान करने वाली और पति के लिए सिरदर्द बनने वाली के रूप में दिखाया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि ये मीम या जोक्स महिला को 'वस्तु' के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

एक मीम में दिखाया गया है कि लॉकडाउन में पति मजबूर है पत्नी के साथ रहने के लिए। अजीब विडंबना है कि मीम में पति को पीड़ित दिखाया जाता है और पत्नी जुल्म करने वाले के किरदार में रहती है और उसी घर से घरेलू हिंसा की भी खबर आती है जिसमें पति अपने पत्नी को प्रताड़ित करता है। 

जरा कल्पना करिए कि ऐसे मीम और जोक्स का उन बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा जो फैमिली ग्रुप का हिस्सा हैं। जब उस ग्रुप में तथाकथित बड़े लोग अपने संकीर्ण मानसकिता का प्रचार करते हैं। ऐसे में, यह संभावना है कि बच्चे भी धीरे-धीरे इसी संकीर्ण मानसकिता के गिरफ्त में आ जाएँ। 

ऐसे सामग्री को आप मजाक कहके गंभीरता से नहीं लेने की वकालत कर सकते हैं। गौरतलब है कि मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि हम अक्सर मजाक में वो बाते कह देते हैं जो हम वास्तविकता में सोचते हैं, लेकिन सही समय और स्थिति न मिलने की वजह से हम वो बाते नहीं कर पाते हैं। अनुकूल माहौल मिलते ही हम वो बाते मजाक के रूप में सामने रख देते हैं। 

यकीन मानिए इसे मजाक मान के नकारा नहीं जा सकता है, ऐसी सामग्री रूढ़िवादी मानसिकता को बढ़ावा देती है। ऐसे हास्य मीम या चुटकले लैंगिक भेदभाव और महिला हिंसा की पैरवी करते हैं। ऐसे में यह हमारा फर्ज बनता है कि ऐसी भद्दे मीम या जोक्स को फारवर्ड करने या उसमें रस लेने के बजाय उसका विरोध करते हुए
रिपोर्ट करें। अगर कोई शख्स ऐसे जोक्स सुना रहा है तो कड़ा प्रतिकार करिए। उस शख्स को समझाइए कि मनोरंजन के नाम पर महिला के खिलाफ फूहड़ चुटकले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। इससे ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जमीन तैयार होती है.  

पुरुषों से करबद्ध निवेदन है

पुरुषों को मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि आपको बहुत दिनों बाद भाग-दौड़ की जिंदगी से राहत मिली है। घर पर परिवार संग खुशियां मनाइए। बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने पत्नी संग खुद पर भी लीजिए। पत्नी के संग घर के काम में सहयोग करिए। पत्नी के जज्बात को समझिए, एक स्त्री के खालीपन को अपने प्यार से भरिए। घर पर बैठकर अपनी जीवन संगिनी संग परिवार के सुनहरे भविष्य के लिए योजना बनाइए। इस लॉकडाउन में हिंसा और फूहड़ मजाक करने के बजाय उनकी सहभागी बनिए- वर्कफ्रॉम होम से वर्कफ्रॉम होम के लिए तक। 

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान के छात्र हैं। सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर लिखना पसंद करते हैं।)

1 comment:

  1. First Paragraphg is Quite well structured, But I am totally Disagree with last paragrapgh.


    या तो जिसने ये ब्लॉग लिखा है, उसे मेमे के बारे में ठीक से पता नहीं, या फिर जान कर लिखा है । मेमे सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखे जाते हैं, ऐसी चीजों को जद्दा लोड लेकर नहीं देखना चाहिए ।


    Chill Karo, Life your Life .....अब हर जगह सीरियस रहोगे, तो उम्र से पहले मर जाओगे ।

    कितने सारे कॉमेडियंस कितने अच्छे अच्छे मेमे बना रहें हैं । जिसने भी लिखा है, थोड़ा सा क्रिएटिव बनो, गांव से बाहर निकलो, जमाना बदल चुका है।

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